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भगवान राम की अंगूठी और हनुमान जी की अद्भुत यात्रा, एक रहस्यमयी कहानी

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भगवान राम की अंगूठी का रहस्य जानने के लिए हनुमानजी को नागलोक तक यात्रा करनी पड़ी। जब उन्होंने अंगूठी के बारे में जाना, तो वे पूरी तरह हैरान रह गए। प्रभु राम के पास लौटने पर उन्हें एक नया रहस्य समझ में आया, जो उनके लिए अप्रत्याशित था।
 
क्या आपने कभी सोचा है कि भगवान श्रीराम की एक साधारण सी अंगूठी में कितनी गहरी गाथा छुपी हो सकती है? क्या आपने सुना है कि हनुमान जी, जो अपने प्रभु श्रीराम के प्रति अगाध भक्ति रखते हैं, ने इस अंगूठी के माध्यम से एक रहस्यमयी यात्रा की, जिसमें कालचक्र और अवतारों का अद्भुत रहस्य उजागर हुआ? आइए, इस पौराणिक कथा के माध्यम से हम हनुमानजी की उस यात्रा को जानें, जहां भक्ति और दिव्यता के गहरे रहस्यों से हमारा साक्षात्कार होता है।
 
भगवान श्रीराम की अंगूठी का रहस्य
 
अयोध्या की पवित्र भूमि पर भगवान श्रीराम का राज्य था, जो पूरी दुनिया में न्याय, धर्म और समृद्धि का प्रतीक था। श्रीराम ने अपनी जीवनलीला पूरी की और जब समय आया, तो उन्होंने यमराज को संदेश भेजा कि वे उन्हें लेने आ सकते हैं। लेकिन यमराज अयोध्या में प्रवेश करने से संकोच कर रहे थे। इस कारण भगवान श्रीराम ने एक विशेष योजना बनाई, ताकि हनुमान जी को एक दिव्य कार्य सौंपा जा सके, जो एक अद्भुत रहस्य से जुड़ा था।
 
हनुमानजी को भेजा गया एक दिव्य कार्य
 
भगवान श्रीराम ने एक दिन अपनी अंगूठी को महल की एक छोटी सी दरार में गिरा दिया। फिर उन्होंने हनुमान जी को बुलाकर कहा, 'हनुमान, मेरी अंगूठी दरार में गिर गई है, क्या तुम उसे खोज सकते हो?' हनुमान जी, जो भगवान श्रीराम के प्रति पूरी तरह समर्पित थे, बिना किसी सवाल के उस दरार में प्रवेश कर गए। लेकिन यह दरार सिर्फ एक साधारण छेद नहीं था, बल्कि यह एक रहस्यमयी द्वार था, जो पाताल लोक (नागलोक) की गहराईयों तक जाता था।
 
पाताल लोक में हनुमान जी की मुलाकात नागराज वासुकी से
 
पाताल लोक पहुंचते ही, हनुमान जी की मुलाकात नागराज वासुकी से होती है। वासुकी, जो नागलोक के राजा थे, ने हनुमान जी का सम्मानपूर्वक स्वागत किया और पूछा, 'हे पवनपुत्र, आपने पाताल लोक आने का कारण क्या है?'हनुमान जी ने विनम्रता से उत्तर दिया, 'हे नागराज, मेरे प्रभु श्रीराम की अंगूठी आपके लोक में गिर गई है, और मैं उसे ढूंढने आया हूं।'
 
अंगूठियों का रहस्यमयी पर्वत
 
नागराज वासुकी ने हनुमान जी को एक विशाल गुफा में ले जाकर वहां रखी हुई अंगूठियों का ढेर दिखाया। हनुमान जी हैरान हो गए क्योंकि उन सभी अंगूठियों पर "श्रीराम" का नाम अंकित था। हनुमान जी ने वासुकी से पूछा, 'इन सभी अंगूठियों पर तो श्रीराम का नाम लिखा है, इनमें से असली अंगूठी कौन सी है?" तब नागराज वासुकी ने मुस्कुराते हुए कहा, "यह सब श्रीराम की अंगूठी ही हैं। यह एक लीला है और यही रहस्य अब तुम्हारे सामने खुला है।'
 
कालचक्र और अवतारों का रहस्य
 
नागराज वासुकी ने हनुमान जी को बताया कि ये सभी अंगूठियां कालचक्र का प्रतीक हैं। हर युग में श्रीराम का अवतार होता है, और उनकी अंगूठी पाताल लोक में आ गिरती है। हनुमान जी हर युग में उन्हें खोजने आते हैं, और यह चक्र अनंतकाल से चलता रहता है। यह रहस्य सृष्टि के अनंतता और समय के निरंतर चक्र का प्रतीक है। इस प्रकार, श्रीराम की अंगूठी केवल एक भौतिक वस्तु नहीं, बल्कि समय और ब्रह्मांड के गहरे रहस्यों का प्रतीक बन गई थी।
 
हनुमान जी की वापसी और श्रीराम से अंतिम संवाद
 
हनुमान जी जब पाताल लोक से लौटे, तो उन्होंने देखा कि अयोध्या में भगवान श्रीराम अपने दिव्य धाम जाने की तैयारी कर रहे थे। हनुमान जी दौड़ते हुए उनके पास गए और उनके चरणों में गिरकर बोले, 'प्रभु, क्या मैं आपके साथ नहीं जा सकता? मुझे आपके बिना इस पृथ्वी पर एक पल भी असहनीय लगेगा।'
 
भगवान श्रीराम ने हनुमान जी को उठाया और कहा, हनुमान, तुम्हारा कार्य अभी खत्म नहीं हुआ है। तुम्हें कलियुग में मेरी लीला में सहभागी बनना है। जब मैं श्रीकृष्ण रूप में अवतार लूंगा, तब भी तुम्हारी उपस्थिति जरूरी होगी। तुम अजर और अमर हो, और तुम्हें धरती पर धर्म की रक्षा करनी है।
 
कालचक्र का रहस्य और हनुमान जी की अमरता
 
हनुमान जी की यात्रा हमें यह सिखाती है कि जीवन और मृत्यु का चक्र निरंतर चलता रहता है। यह सृष्टि का अनंतता और नियति का प्रतीक है। हनुमान जी ने अपनी भक्ति और समझ में परिपक्वता प्राप्त की। उन्होंने अपने जीवन को भगवान श्रीराम की सेवा और धर्म की रक्षा के लिए समर्पित किया। यह कथा हमें यह भी सिखाती है कि भक्ति केवल सेवा नहीं, बल्कि समझ, श्रद्धा और आत्मसमर्पण से की जाती है।
 
इस कथा के माध्यम से हमें यह समझने का अवसर मिलता है कि भगवान श्रीराम की अंगूठी केवल एक भौतिक वस्तु नहीं है, बल्कि यह एक गहरे ब्रह्मांडीय रहस्य का प्रतीक है। यह कालचक्र, अवतारों और समय के अनंत चक्र को दर्शाती है। हनुमान जी की भक्ति और समर्पण का उदाहरण हमें यह सिखाता है कि सच्ची भक्ति केवल सेवा में नहीं, बल्कि गहरी समझ, श्रद्धा और आत्मसमर्पण में निहित होती है।

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