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Banke Bihari Ji: अक्षय तृतीया पर होते हैं चरण दर्शन, जानें धार्मिक महत्व

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भारत के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक वृंदावन में स्थित बांके बिहारी जी का मंदिर न केवल अपनी भव्यता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहां की एक विशेष परंपरा के लिए भी। पूरे वर्ष भगवान के केवल मुख दर्शन होते हैं, लेकिन साल में सिर्फ एक बार, अक्षय तृतीया के शुभ अवसर पर ठाकुर जी के चरणों के दर्शन होते हैं। यह विशेष अवसर हर साल लाखों श्रद्धालुओं को अपनी ओर खींच लाता है। आइए जानते हैं इस अनूठी परंपरा के पीछे की पौराणिक कथा, धार्मिक मान्यता और उसका आध्यात्मिक महत्व।

बांके बिहारी जी कौन हैं?

बांके बिहारी जी भगवान श्रीकृष्ण के बालरूप माने जाते हैं। 'बांके' का अर्थ है 'त्रिभंग मुद्रा' यानी तीन स्थानों पर झुके हुए और 'बिहारी' यानी वृंदावन में विहार करने वाले। मंदिर में स्थापित विग्रह स्वयं स्वामी हरिदास जी की भक्ति से प्रकट हुए थे। बांके बिहारी मंदिर में ठाकुर जी के चरण आम दिनों में दर्शनार्थियों को नहीं दिखाए जाते। यह विशेष अवसर अक्षय तृतीया पर आता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान के चरणों के दर्शन मात्र से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

पौराणिक कथा: जब ठाकुर जी के चरण से निकली स्वर्ण मुद्रा

कहानी के अनुसार, स्वामी हरिदास जी भगवान की भक्ति में लीन रहते थे। जब वे निधिवन में ठाकुर जी की सेवा करते थे, उस समय उन्हें आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा। एक दिन प्रातःकाल जब वे प्रभु की सेवा हेतु उठे, तो उन्होंने ठाकुर जी के चरणों में एक स्वर्ण मुद्रा देखी। इसके बाद हर दिन ठाकुर जी के चरणों से एक स्वर्ण मुद्रा प्रकट होने लगी, जिससे वे सेवा, पूजा और भोग की व्यवस्था करते थे।

यह चमत्कारिक घटना यह संकेत देती है कि भगवान के चरणों से अनंत ऐश्वर्य की प्राप्ति संभव है। इसी कारण ठाकुर जी के चरणों को हमेशा पोशाक से ढककर रखा जाता है, ताकि यह दिव्य रहस्य आमजन के लोभ का विषय न बने। और वर्ष में केवल एक बार अक्षय तृतीया पर ही उन्हें दर्शनार्थ खोला जाता है।

धार्मिक मान्यता और श्रद्धा का पर्व

धार्मिक मान्यता के अनुसार, बांके बिहारी जी के चरण दर्शन मात्र से व्यक्ति के सभी पाप मिट जाते हैं और उसे जीवन में समृद्धि, सुख और शांति प्राप्त होती है। अक्षय तृतीया के दिन वृंदावन का माहौल अत्यंत भक्तिमय हो जाता है। मंदिर परिसर में भजन-कीर्तन, फूलों की सजावट और विशेष भोग की व्यवस्था होती है।

चरण दर्शन की प्रक्रिया

अक्षय तृतीया के दिन प्रातःकाल विशेष पूजा-अर्चना के बाद भगवान को श्रृंगार कर उनके चरणों को खोला जाता है। कुछ क्षणों के लिए भक्तों को चरण दर्शन का अवसर दिया जाता है और फिर उन्हें पुनः पोशाक से ढक दिया जाता है। यह क्रम पूरे दिन कई बार दोहराया जाता है ताकि अधिक से अधिक श्रद्धालु ठाकुर जी के चरणों के दर्शन कर सकें।

चरणों के दर्शन के महत्व

हिंदू धर्म में चरणों को विशेष महत्व दिया गया है। भगवान विष्णु के चरणों से गंगा निकली, भगवान शिव ने गंगाजल को अपने सिर पर धारण किया। ऐसी मान्यता है कि भगवान के चरणों से पवित्रता, कृपा और शक्ति का संचार होता है। ठाकुर जी के चरणों में पुष्प अर्पित करना, दंडवत प्रणाम करना और चरणामृत लेना हर भक्त के लिए अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है।

अक्षय तृतीया का महत्व

अक्षय तृतीया को 'अविनाशी तिथि' कहा जाता है। यह वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया को पड़ती है और इस वर्ष यह 30 अप्रैल 2025 को मनाई जाएगी। इस दिन किया गया कोई भी शुभ कार्य जैसे दान, पूजा, यज्ञ, विवाह, सोना खरीदना आदि अक्षय फल देने वाला होता है। अक्षय तृतीया का महत्व हिंदू धर्म में अत्यधिक पवित्र और महत्वपूर्ण है। इसे "अखातीज" भी कहा जाता है और यह वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। 

अक्षय तृतीया का दिन विशेष रूप से शुभ माना जाता है और यह समय शुभ कार्यों के लिए अत्यधिक उपयुक्त होता है। आइए जानते हैं इस दिन के महत्व को विस्तार से:

1. अक्षय का अर्थ और धार्मिक महत्व

'अक्षय' का अर्थ होता है नष्ट न होने वाला। इस दिन किए गए सभी कार्यों का फल कभी नष्ट नहीं होता, बल्कि हमेशा बढ़ता रहता है। यह तिथि विशेष रूप से दान, पुण्य, और शुभ कार्यों के लिए अत्यंत उत्तम मानी जाती है। इस दिन किसी भी अच्छे कार्य की शुरुआत की जाती है तो उसका प्रभाव जीवनभर बना रहता है।

अक्षय तृतीया को सभी प्रकार के शुभ कार्यों के लिए अत्यधिक शुभ माना जाता है। इस दिन किए गए दान और पुण्य कार्यों का फल अनंतकाल तक मिलता है, इसलिए इसे अक्षय तिथि कहा जाता है।

2. पौराणिक महत्व और कथाएं

अक्षय तृतीया का संबंध भगवान विष्णु और पार्वती जी से भी जुड़ा हुआ है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम का जन्म हुआ था, जो एक महान योद्धा और ब्राह्मण थे। उनके जन्म का दिन अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है और इस दिन विशेष रूप से पूजा और तपस्या करने का महत्व है। इसके अलावा, इस दिन युद्ध के भगवान परशुराम की पूजा भी की जाती है, जिनका जीवन त्याग, तपस्या, और कर्तव्य के पालन का प्रतीक था।

अक्षय तृतीया को सतयुग की शुरुआत का भी दिन माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, कृष्ण भगवान ने इस दिन भागवद गीता का उपदेश दिया था, जो पूरे विश्व के लिए एक अमूल्य धरोहर है। इसे संसार में शांति और धर्म की स्थापना के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।

3. अक्षय तृतीया का महत्व आर्थिक दृष्टिकोण से

अक्षय तृतीया के दिन विशेष रूप से सोने और चांदी की खरीदारी करने की परंपरा है। इस दिन सोना खरीदने से यह माना जाता है कि व्यक्ति को धन, संपत्ति और समृद्धि की प्राप्ति होती है और उसके पास कभी भी धन की कमी नहीं होती। इस दिन खरीदी गई धातुएं हमेशा बढ़ती हैं और कभी उनका मूल्य घटता नहीं है।

यह दिन व्यापारियों के लिए भी बहुत ही शुभ माना जाता है। वे इस दिन नए व्यापार की शुरुआत करते हैं या अपने पुराने व्यापार में वृद्धि के लिए योजना बनाते हैं। इस दिन किए गए व्यापारिक कार्यों का परिणाम हमेशा सकारात्मक होता है।

4. अक्षय तृतीया का महत्व जैन धर्म में

जैन धर्म में भी अक्षय तृतीया का विशेष महत्व है। इसे अक्षय तृतीया के नाम से जाना जाता है और इस दिन जैन धर्म के अनुयायी विशेष रूप से दान और साधना करते हैं। इसे श्रवण का दिन भी माना जाता है, जब जैन धर्म के अनुयायी विशेष पूजा-अर्चना करते हैं और पुण्य अर्जित करते हैं।

5. पवित्रता और पुण्य कार्यों के लिए उपयुक्त दिन

अक्षय तृतीया का दिन पवित्रता और पुण्य अर्जन का प्रतीक है। इस दिन तर्पण, पुजा-अर्चना, और दान करने से पुण्य मिलता है और जीवन में समृद्धि आती है। इस दिन विशेष रूप से गंगा स्नान करने की भी परंपरा है, जिससे व्यक्ति के सभी पाप समाप्त हो जाते हैं और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है।

6. अक्षय तृतीया का महत्व समाज में

अक्षय तृतीया का दिन समाज में सामूहिक जागरूकता फैलाने और समाज सेवा के कार्यों के लिए भी महत्वपूर्ण है। इस दिन समाज में शांति और समृद्धि की भावना को बढ़ावा देने के लिए लोग एक साथ मिलकर पूजा-अर्चना और दान करते हैं।

7. अक्षय तृतीया का महत्व मनोबल और मानसिक शांति में

इस दिन को मनोबल और मानसिक शांति के लिए भी उपयुक्त माना जाता है। जो लोग जीवन में समस्याओं का सामना कर रहे होते हैं, वे इस दिन विशेष रूप से ध्यान और साधना करते हैं, जिससे उनके मन को शांति मिलती है और समस्याओं का समाधान होता है।

8. अक्षय तृतीया और विवाह के अवसर

अक्षय तृतीया को विवाह के लिए भी अत्यंत शुभ माना जाता है। यह तिथि विवाह, नामकरण, गृह प्रवेश, और अन्य महत्वपूर्ण कार्यों के लिए अत्यधिक उपयुक्त मानी जाती है। इस दिन को विवाह और नए रिश्तों की शुरुआत के लिए विशेष रूप से सौभाग्यशाली माना जाता है।

चरण दर्शन के दिन क्या करें भक्त?

  • सुबह जल्दी उठें और स्नान कर व्रत रखें।
  • शुद्ध वस्त्र धारण करें और मंदिर पहुंचकर भगवान को पुष्प, फल, और मिठाई अर्पित करें।
  • बांके बिहारी जी के चरणों के दर्शन करें और मन में अपनी प्रार्थना करें।
  • चरणामृत ग्रहण करें और अपने घर के सभी सदस्यों के लिए भी लेकर जाएं।
  • गरीबों को दान करें और अन्न-जल वितरण करें।

आध्यात्मिक संदेश

हर वर्ष अक्षय तृतीया पर वृंदावन में लाखों की संख्या में श्रद्धालु उमड़ते हैं। प्रशासन की ओर से विशेष इंतजाम किए जाते हैं – जैसे ट्रैफिक कंट्रोल, पुलिस की तैनाती, मेडिकल सहायता, और श्रद्धालुओं के लिए भोजन-जल की व्यवस्था। बांके बिहारी जी के चरण दर्शन केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक अनुभव है। 

यह अवसर भक्त को यह सिखाता है कि ईश्वर की कृपा बिना कहे भी हमें वह सब प्रदान करती है जिसकी हमें आवश्यकता होती है। जो भक्त सच्चे भाव से ठाकुर जी के चरणों में सिर झुकाता है, उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती है।

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