परशुराम जयंती हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण पर्वों में से एक है, जो हर साल वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। यह दिन भगवान विष्णु के छठे अवतार, परशुराम जी के जन्म के रूप में मनाया जाता है। भगवान परशुराम को उनके तप, शक्ति और विनाशक रूप के लिए जाना जाता है। इस दिन विशेष रूप से व्रत, पूजा और मंत्र जप के माध्यम से भगवान परशुराम की कृपा प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है।
इस वर्ष परशुराम जयंती के अवसर पर कुछ संदेह उत्पन्न हो रहा है, कि यह पर्व 29 अप्रैल को मनाया जाएगा या 30 अप्रैल को। आइए, हम इस लेख में विस्तार से परशुराम जयंती की तिथि, मुहूर्त और पूजा विधि पर चर्चा करते हैं, ताकि आप इस दिन का सही तरीके से पालन कर सकें।
परशुराम जयंती की तिथि और मुहूर्त
परशुराम जयंती की तिथि को लेकर अक्सर कंफ्यूजन रहता है क्योंकि यह तिथि हर साल पंचांग के आधार पर बदलती रहती है। इस वर्ष 2025 में परशुराम जयंती 29 अप्रैल, मंगलवार को मनाई जाएगी। हालांकि, इस दिन वैशाख शुक्ल तृतीया तिथि शाम 5 बजकर 32 मिनट पर शुरू होगी और यह रात के पहले पहर यानी प्रदोष काल में व्यापिनी होगी। इसी कारण इस वर्ष परशुराम जयंती 29 अप्रैल को मनाई जाएगी।
अगर हम शास्त्रों की बात करें, तो परशुराम जयंती के दिन प्रदोष काल का महत्व है। यह समय रात्रि के प्रथम पहर का होता है, जो भगवान परशुराम के जन्म का समय माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार, यदि तृतीया तिथि दो दिनों तक प्रदोष व्यापिनी हो, तो दूसरे दिन भी पूजा का महत्व होता है, लेकिन इस बार तृतीया तिथि केवल 29 अप्रैल को प्रदोष काल में व्यापिनी होगी।
इस कारण परशुराम जयंती 29 अप्रैल को ही मनाई जाएगी, जबकि 30 अप्रैल को यह तिथि प्रदोष काल में नहीं होगी, इसलिए इसे खास पूजा के लिए उपयुक्त नहीं माना गया।
परशुराम जयंती का इतिहास और महत्व
भगवान परशुराम, भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाते हैं। उनका जन्म मय्या रेणुका और ऋषि जमदग्नि के घर हुआ था। परशुराम का अवतार विशेष रूप से विनाशकारी और दुष्टों के संहार के लिए हुआ था। भगवान परशुराम ने पृथ्वी पर आकर अनेक राक्षसों, असुरों और अत्याचारियों का संहार किया। उनके पास एक धनुष और फरसा था, जो उनकी पहचान है। उनका नाम परशुराम, 'परशु' यानी फरसा और 'राम' यानी भगवान के रूप में प्रसिद्ध है।
भगवान परशुराम को उनका तपस्वी रूप और वेदों का ज्ञाता माना जाता है। उन्होंने ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए विवाह नहीं किया। उनकी तपस्या और कार्यों को देखकर उन्हें भगवान विष्णु का छठा अवतार माना गया, जो दुष्टों के विनाश के लिए आया था। भगवान परशुराम के बारे में यह मान्यता है कि वे अभी भी पृथ्वी पर निवास करते हैं और उनके आशीर्वाद से भक्तों को शक्ति और साहस मिलता है।
परशुराम जयंती पर पूजा विधि
परशुराम जयंती के दिन विशेष पूजा विधियों का पालन करने से भगवान परशुराम की कृपा प्राप्त होती है। इस दिन को लेकर बहुत सी विशेष बातें हैं, जिनका ध्यान रखते हुए पूजा की जाती है। आइए जानते हैं परशुराम जयंती की पूजा विधि के बारे में:
- व्रत और संकल्प: परशुराम जयंती के दिन व्रत रखना अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है। इस दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और शुद्धता बनाए रखें। व्रत का संकल्प लेने से पहले ‘मम ब्रह्म त्वप्राप्तिकामनया परशुराम पूजन महं करिष्ये’ यह मंत्र बोलकर संकल्प लें। यदि संभव हो तो पूरे दिन मौन रहने का प्रयास करें।
- पूजा स्थान की तैयारी: पूजा के लिए एक स्वच्छ स्थान पर चौकी पर लाल या पीला वस्त्र बिछाएं और उस पर भगवान परशुराम की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। प्रतिमा पर चंदन, पुष्प, फल, मिठाई, नारियल, फरसा और अक्षत अर्पित करें।
- दीप जलाना: पूजा के दौरान भगवान परशुराम के सामने घी का दीपक जलाएं और उसे पूरे श्रद्धा भाव से अर्पित करें। दीपक का उजाला शुद्धता और ज्ञान का प्रतीक माना जाता है।
- मंत्र जप: भगवान परशुराम के मंत्रों का जाप करें। परशुराम जयंती के दिन विशेष रूप से ‘ऊं रां रां ऊं रां रां परशुहस्ताय नमः’ मंत्र का जाप किया जाता है। इसके अलावा, ‘ऊं जामदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि, तन्नो परशुराम प्रचोदयात्’ यह परशुराम गायत्री मंत्र भी बहुत प्रभावी माना जाता है।
- अर्घ्य देना: सायंकाल में फिर से स्नान करें और भगवान परशुराम की पूजा करें। इस दौरान ‘जमदग्नि सुतो वीर क्षत्रियान्तकर प्रभो, गृहाणार्घ्यं मया दत्तं कृपया परमेश्वर।।’ मंत्र का जाप करते हुए भगवान को अर्घ्य अर्पित करें। यह पूजा विधि पूरी श्रद्धा और निष्ठा से की जानी चाहिए।
- राम मंत्र का जाप: पूजा के बाद, रात में भगवान राम के मंत्र ‘राम राम रामेति रामे रामे मन्नोरमे’ का जाप करें। यह मंत्र विशेष रूप से भगवान परशुराम के साथ भगवान राम के जुड़ाव को प्रकट करता है और व्यक्ति की आस्थाओं को प्रबल बनाता है।
भगवान परशुराम के विशेष गुण
भगवान परशुराम का जीवन तप, बल, और धार्मिकता का आदर्श प्रस्तुत करता है। उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी दुष्टों और अत्याचारियों के खिलाफ संघर्ष करते हुए, धर्म की रक्षा की। भगवान परशुराम की छवि एक महान योद्धा और तपस्वी के रूप में सामने आती है। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि शक्ति का सही उपयोग तभी संभव है जब वह धर्म की रक्षा के लिए हो।
भगवान परशुराम का नाम इतिहास में उन योद्धाओं में लिया जाता है, जिन्होंने समाज में न्याय और समानता की स्थापना की। उनके द्वारा किए गए युद्ध केवल अत्याचार और भ्रष्टाचार के खिलाफ थे। यही कारण है कि उन्हें ‘धर्म रक्षक’ के रूप में पूजा जाता है।
परशुराम जयंती, भगवान परशुराम के जन्म के दिन को मनाने का एक अवसर है। यह दिन हमें धर्म, कर्तव्य और न्याय की दिशा में अपने कदम बढ़ाने की प्रेरणा देता है। इस दिन विशेष रूप से पूजा और व्रत के माध्यम से भगवान परशुराम की कृपा प्राप्त की जा सकती है। इस वर्ष 29 अप्रैल को परशुराम जयंती मनाई जाएगी, और इस दिन की पूजा विधि का पालन करके व्यक्ति अपने जीवन में समृद्धि और सफलता प्राप्त कर सकता है।