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अंबेडकर जयंती पर एकनाथ शिंदे की खामोशी: ठाणे से चैत्यभूमि तक नाराज़गी, जानें क्या है मामला

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महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर से हलचल देखने को मिल रही है, और इस बार वजह बने हैं उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की नाराजगी। डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर की जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में उन्हें भाषण देने का मौका नहीं मिला, जिससे उनका असंतोष एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है।

महाराष्ट्र: मुंबई की राजनीतिक सरगर्मियों में अचानक एक नाम फिर से सुर्खियों में है, एकनाथ शिंदे। महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री और शिवसेना (शिंदे गुट) के प्रमुख नेता शिंदे एक बार फिर अपनी 'खामोशी' के ज़रिए राजनीतिक हलकों में चर्चा का केंद्र बन गए हैं। मौका था डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर की जयंती का और मंच था, चैत्यभूमि का, जहां हर साल राज्य के बड़े नेता श्रद्धांजलि अर्पित करने के साथ-साथ अपने विचार रखते हैं। लेकिन इस बार मंच से शिंदे की आवाज़ नदारद रही।

कार्यक्रम में नहीं मिला बोलने का मौका, नाराज शिंदे पहुंचे ठाणे

अंबेडकर जयंती के अवसर पर मुंबई महानगरपालिका द्वारा आयोजित कार्यक्रम की पत्रिका में शुरू में उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और अजित पवार दोनों का भाषण तय था। लेकिन अंतिम समय में बदलाव कर केवल राज्यपाल सी. पी. राधाकृष्णन और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को बोलने का मौका दिया गया। यह बदलाव सिर्फ सूची में नहीं, बल्कि शिंदे की नाराजगी में भी दिखा। कार्यक्रम समाप्त होते ही वे सीधे अपने गृहनगर ठाणे रवाना हो गए।

ठाणे में किया 'चैत्यभूमि' वाला भाषण

ठाणे में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में एकनाथ शिंदे ने वही भाषण पढ़ा जो वे चैत्यभूमि पर देने वाले थे। यह प्रतीकात्मक लेकिन बेहद प्रभावशाली संदेश था – मंच से न सही, लेकिन वह अपने विचार और सम्मान डॉ. अंबेडकर को जरूर व्यक्त करेंगे। हालांकि शिंदे ने संवाददाताओं के सवालों का जवाब देते हुए कहा कि चैत्यभूमि आकर श्रद्धांजलि देना ही मेरे लिए गर्व की बात है, लेकिन उनकी शैली और स्थान परिवर्तन ने स्पष्ट कर दिया कि सब कुछ ठीक नहीं है।

नरम लहजा, लेकिन कड़ा संदेश?

शिंदे ने मंच पर मौन रहकर भी बहुत कुछ कह दिया। यह पहली बार नहीं है जब उन्हें नजरअंदाज किया गया हो। इससे पहले रायगढ़ में शिवाजी जयंती कार्यक्रम के दौरान भी उन्हें भाषण नहीं देना था, लेकिन देवेंद्र फडणवीस के हस्तक्षेप से आखिरी वक्त पर उन्हें मौका दिया गया। इस बार शायद ऐसा नहीं हुआ। लगातार हो रहे इन घटनाक्रमों ने सवाल खड़े कर दिए हैं – क्या शिंदे को महायुति में बराबरी का स्थान मिल रहा है?

एक दिन पहले ही शिंदे ने 'महायुति में फूट' की खबरों को अफवाह बताया था और कहा था कि हम काम करते हैं, शिकायत नहीं करते। लेकिन डैमेज कंट्रोल जैसा यह बयान अब और ज़्यादा सवाल खड़े कर रहा है। खबरें हैं कि शिंदे ने केंद्रीय नेतृत्व को अजित पवार के व्यवहार को लेकर शिकायत भी की है, हालांकि उन्होंने सार्वजनिक रूप से इससे इनकार किया है।

राजनीतिक संकेतों की बारीक पड़ताल

एकनाथ शिंदे भले ही सार्वजनिक रूप से शांत दिखाई दे रहे हैं, लेकिन उनके हालिया बयानों, हावभाव और मंच पर मौन रहकर प्रेस कॉन्फ्रेंस में भाषण पढ़ने की रणनीति ने यह साफ कर दिया है कि वह महायुति में अपनी स्थिति को लेकर सजग हैं। बार-बार मंच से दूर रखा जाना, राजनीतिक प्रतिष्ठा को चोट पहुंचा सकता है और शिंदे शायद यही संदेश देना चाह रहे हैं कि वे इसे यूं ही नहीं छोड़ेंगे।

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