सुप्रीम कोर्ट ने कार्यपालिका में दखल के आरोपों पर टिप्पणी की। जस्टिस बीआर गवई ने कहा– हम राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकते, हम पहले ही आलोचना झेल रहे हैं।
Delhi News: न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच बढ़ते टकराव ने सियासी घमासान को जन्म दिया है। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश बीआर गवई ने इस पर टिप्पणी की है, जो अगले महीने मुख्य न्यायाधीश की कुर्सी पर बैठने वाले हैं। गवई ने पश्चिम बंगाल हिंसा पर सुनवाई के दौरान कहा कि न्यायपालिका कार्यपालिका के काम में हस्तक्षेप नहीं करेगी।
पश्चिम बंगाल हिंसा पर सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट में पश्चिम बंगाल में हो रही हिंसा के खिलाफ याचिका दायर की गई थी, जिसमें अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने हिंसा पर नियंत्रण पाने के लिए अर्धसैनिक बलों की तैनाती की मांग की। इसके बाद उन्होंने अदालत से केंद्र सरकार को सुरक्षा बलों की तैनाती करने और हिंसा की जांच के लिए एक पैनल गठित करने का आदेश देने का अनुरोध किया।
सुप्रीम कोर्ट का बयान: हस्तक्षेप करने का आरोप
सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर प्रतिक्रिया देते हुए जस्टिस बीआर गवई ने कहा, "क्या आप चाहते हैं कि हम राष्ट्रपति को आदेश दें?" उन्होंने आगे कहा, "हम पर पहले ही कार्यपालिका के काम में हस्तक्षेप का आरोप लगाया जा चुका है।"
न्यायपालिका के फैसलों पर बीजेपी नेताओं की प्रतिक्रिया
बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, "अगर सुप्रीम कोर्ट ही सारे फैसले करेगा तो संसद भवन को बंद कर देना चाहिए।" उनका यह बयान विवाद का कारण बना और कई विपक्षी नेताओं ने निशिकांत के खिलाफ कार्रवाई की मांग की।
सुप्रीम कोर्ट की नजर सत्ताधारी दल के नेताओं पर
सुप्रीम कोर्ट ने इस पूरे मामले पर ध्यान रखते हुए स्पष्ट किया कि न्यायपालिका को कार्यपालिका के काम में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। जस्टिस गवई का कहना है कि सत्ताधारी दल के नेताओं द्वारा दिए गए बयानों पर कोर्ट की पूरी नजर है।
क्या था पूरा मामला?
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए राष्ट्रपति और राज्यपाल को आदेश दिया था कि वे किसी भी बिल को अनिश्चितकाल के लिए रोक नहीं सकते। इस आदेश के बाद बीजेपी नेताओं ने इस पर आपत्ति जताई थी।