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Nainital: उत्‍तराखंड हाई कोर्ट ने उठाए सवाल, रसूखदारों पर Bulldozer एक्शन क्यों नहीं?

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नैनीताल हाई कोर्ट ने विकासनगर में झुग्गी तोड़ने पर रोक लगाई और सरकार से पूछा कि रसूखदारों पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई। कोर्ट ने चयनात्मक एक्शन और सुनवाई न देने पर नाराजगी जताई।

Nainital High Court News: उत्तराखंड की धामी सरकार के अतिक्रमण हटाओ अभियान (Bulldozer Action) पर नैनीताल हाई कोर्ट ने बड़ा सवाल खड़ा किया है। कोर्ट ने देहरादून के विकासनगर में झुग्गीवासियों के घर तोड़ने पर अस्थायी रोक लगाते हुए पूछा है कि जब प्रभावशाली लोगों द्वारा भी अवैध निर्माण किया गया है, तो selective action क्यों हो रही है?

कोर्ट ने इस मामले में झुग्गीवालों को सुनवाई का पूरा मौका न देने पर नाराजगी जताई और सरकार को 15 अप्रैल 2025 तक स्थिति स्पष्ट करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने यह फैसला अवकाश के दिन एक विशेष सुनवाई के दौरान दिया, जिसे मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जी. नरेंद्र और जस्टिस आशीष नैथानी की खंडपीठ ने सुना।

हाई कोर्ट ने जताई Selective Action पर आपत्ति

Bulldozer Action को लेकर दायर याचिकाओं में बताया गया कि 5 अप्रैल को विकासनगर में 20 झुग्गीवासियों को अतिक्रमण हटाने के लिए केवल 3 दिन का समय दिया गया, जबकि एसडीएम रिपोर्ट के अनुसार, दो रसूखदारों ने भी नाले के पास अवैध निर्माण किया है। इन रसूखदारों पर न कोई कार्रवाई हुई और न ही उनके खिलाफ नोटिस जारी किए गए।

याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता अभिजय नेगी ने कोर्ट को बताया कि SDM की रिपोर्ट में रसूखदारों द्वारा नाले पर कॉम्प्लेक्स निर्माण का जिक्र है, लेकिन फिर भी उनके खिलाफ action नहीं हुआ। वहीं, कोर्ट ने यह भी पाया कि इन रसूखदारों की ओर से कोई वैध दस्तावेज भी प्रस्तुत नहीं किए गए हैं।

कोर्ट के सख्त निर्देश

High Court ने झुग्गीवासियों को दिए गए नोटिसों के क्रियान्वयन पर तत्काल रोक लगाई और स्पष्ट किया कि सरकार को यह बताना होगा कि एक ही क्षेत्र में दो तरह के मानदंड क्यों अपनाए गए। सरकार की ओर से महाधिवक्ता एस.एन. बाबुलकर और मुख्य स्थायी अधिवक्ता चंद्रशेखर रावत ने बताया कि नोटिस पहले भी जारी किए गए थे, लेकिन कोर्ट selective action से असंतुष्ट नजर आया।

पुराना आदेश भी Court के Record में

बता दें कि उत्तराखंड हाई कोर्ट पहले भी देहरादून में नालों और गधेरों पर हो रहे अवैध अतिक्रमण पर सख्त रुख दिखा चुका है। कोर्ट ने DGP को निर्देश दिए थे कि वह अतिक्रमणकारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर रिपोर्ट प्रस्तुत करें। साथ ही शहरी विकास सचिव को सीसीटीवी लगाने, खनन रोकने और अवैध मलबा फेंकने से रोकने के लिए public awareness campaigns चलाने का निर्देश दिया था।

इस मामले में कई जनहित याचिकाएं भी दायर हुई थीं। एक याचिका में कहा गया कि सहस्रधारा क्षेत्र में जलमग्न भूमि पर भारी निर्माण कार्य हो रहे हैं, जिससे जल स्रोतों के सूखने और पर्यावरणीय संकट का खतरा बढ़ रहा है। वहीं, दूसरी याचिका में कहा गया कि ऋषिकेश, डोईवाला, और विकासनगर जैसे इलाकों में नदी क्षेत्रों की 270 एकड़ भूमि पर अतिक्रमण हो चुका है, जिसमें बिंदाल और रिस्पना नदियों का क्षेत्र भी शामिल है।

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