कान फिल्म फेस्टिवल में शामिल होना किसी भी फिल्म, उसके कलाकारों और निर्माताओं के लिए गौरवपूर्ण क्षण होता है। यह न सिर्फ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान पाने का एक सुनहरा अवसर होता है, बल्कि भारतीय सिनेमा की विविधता और गुणवत्ता को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत करने का माध्यम भी बनता है।
एंटरटेनमेंट: दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित फिल्म समारोह के रूप में चर्चित कान्स फिल्म फेस्टिवल में इस बार महाराष्ट्र की फिल्म इंडस्ट्री ने चार मजबूत दावेदार भेजकर सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा है। संस्कृति और फिल्म के क्षेत्र में महाराष्ट्र सरकार के सहयोगी महाराष्ट्र फिल्म, रंगमंच एवं सांस्कृतिक विकास निगम (एमएफआरसीडीसी) द्वारा गठित विशेषज्ञ पैनल ने इस साल चार मराठी फिल्मों को चयनित किया है। महाराष्ट्र के सांस्कृतिक मामलों के मंत्री आशीष शेलार ने इन फिल्मों को बधाई देते हुए कहा कि यह मराठी सिनेमा की अंतरराष्ट्रीय पहचान को और मजबूती देगा।
चयनित चार फिल्में और उनका महत्व
1. फिल्म - स्थल
- निर्देशक: प्रवीण पाटील
- विषय: ग्रामीण समाज में अरेंज मैरिज की परंपराएं
स्थल एक संवेदनशील कथा है जो ग्रामीण भारत में पितृसत्ता, रंगभेद और सामाजिक रूढ़ियों को चुनौती देती है। फिल्म की मुख्य नायिका परंपरा के बोझ से जूझते हुए अपने हक़ की लड़ाई लड़ती दिखती है। मंत्री शेलार ने इसका चयन सामाजिक प्रासंगिकता का प्रमाण बताते हुए कहा, ग्रामीण समस्याओं को इतने बारीकी से पर्दे पर पेश करना आसान नहीं।
2. फिल्म - स्नो फ्लावर
- निर्देशक: गजेंद्र अहिरे
- विषय: रूस-कोंकण क्रॉस-कंट्री प्रेम कहानी
यह फिल्म साइबेरिया के बर्फीले परिदृश्य से शुरू होकर महाराष्ट्र के कोंकण के हरे-भरे तटीय इलाकों तक एक प्रेम कहानी का सफर बयां करती है। दो संस्कृतियों के किनारों को जोड़ने वाली यह फिल्म प्रेम, सांस्कृतिक संघर्ष और आत्म-खोज के भावों का मिलाजुला ताना-बाना पेश करती है।
3. फिल्म - खालिद का शिवाजी
- निर्देशक: सलमान खान
- विषय: धार्मिक पहचान और राष्ट्रीय प्रेरणा
खालिद नामक एक किशोर के दृष्टिकोण से यह फिल्म बताती है कि किस तरह धर्म के नाम पर अलगाव का सामना करते युवक को छत्रपति शिवाजी महाराज की कहानी से आत्मविश्वास और साहस मिलता है। शेलार ने इसकी सराहना करते हुए कहा, यह फिल्म एक ऐसे समाज का आइना है जहां भाईचारे की मजबूती सबसे बड़ी पूंजी है।
4. फिल्म - जूना फर्नीचर
- निर्देशक-अभिनेता: महेश मांजरेकर
- विषय: वरिष्ठ नागरिकों की चुनौतियां
वरिष्ठ नागरिकों के इर्द-गिर्द बुने गए इस सामाजिक ड्रामे में मास्टर फर्नीचर की कहानी के माध्यम से पीढ़ियों के बीच अंतर को दिखाया गया है। कैसे समय के साथ बदलते रिश्ते, सम्मान और अकेलापन बुजुर्गों को प्रभावित करते हैं—यह फिल्म इसी जत्थे को संवेदनशीलता से चित्रित करती है।
चयन प्रक्रिया और शेलार का संदेश
महाराष्ट्र फिल्म, रंगमंच एवं सांस्कृतिक विकास निगम ने 2016 से मराठी फिल्मों को कान्स तक पहुंचाने की प्रक्रिया शुरू की थी। इस वर्ष विशेषज्ञों ने पैनल बैठाकर दो अधिकारिक चयन (‘स्थल’, ‘स्नो फ्लावर’, ‘खालिद का शिवाजी’) और एक विशेष स्क्रीनिंग स्लॉट (‘जूना फर्नीचर’) के लिए सिफारिश की।
मंत्री आशीष शेलार ने इस अवसर पर कहा
कान्स में मराठी फिल्मों का यह समागम हमारे सिनेमा की विविधता और गुणवत्ता का प्रमाण है। चार फिल्मों के चयन से साबित होता है कि मराठी सिनेमा अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी उतना ही प्रभावी है जितना किसी बड़े उद्योग का।
कान्स का महत्व और मराठी सिनेमा की भूमिका
हर वर्ष मई में आयोजित यह महोत्सव दुनिया भर से फिल्मकारों, आलोचकों और सितारों को खींच लाता है। कान्स में शामिल होने का अर्थ केवल स्क्रीन पर जगह बनवाना नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर अपनी कला और सोच को मान्यता दिलाना है। मराठी फिल्में अक्सर सीमित बजट में सामाजिक मुद्दों को दर्शाती आई हैं, और अब कान्स के मंच पर इन्हें मिल रही जगह से उनकी पहुंच और प्रभाव दोनों बढ़ेंगे।
शेलार ने आगे कहा, मराठी सिनेमा समाज के इनसेट प्रश्नों जातिवाद, पितृसत्ता, अकेलापन पर जोर देता है। इन विषयों को कान्स जैसी प्रतिष्ठित जगह पर दिखाने का मतलब है कि हमारी कहानियां पूरे विश्व के दर्शकों से संवाद करेंगी।