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दिल्ली स्कूलों में विकलांगता की पहचान के लिए शिक्षा निदेशालय का स्क्रीनिंग अभियान, जानें पूरी जानकारी

दिल्ली स्कूलों में विकलांगता की पहचान के लिए शिक्षा निदेशालय का स्क्रीनिंग अभियान, जानें पूरी जानकारी
अंतिम अपडेट: 9 घंटा पहले

दिल्ली में शिक्षा विभाग हर साल स्कूलों में पढ़ने वाले सभी छात्रों की स्क्रीनिंग करता है ताकि विकलांग छात्रों की पहचान की जा सके। यह अभ्यास बच्चों की मानसिक और शारीरिक जरूरतों को पहचानने और उनपर ध्यान देने का एक अहम कदम है। 

एजुकेशन: दिल्ली के सभी सरकारी, सरकारी सहायता प्राप्त, गैर-सहायता प्राप्त निजी और स्थानीय निकायों द्वारा संचालित स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों के लिए एक अहम सूचना जारी की गई है। शिक्षा निदेशालय ने एक महत्वपूर्ण नोटिस जारी किया है, जिसमें यह बताया गया है कि इस वर्ष भी दिल्ली में विकलांगता की पहचान के लिए एक वार्षिक स्क्रीनिंग अभियान चलाया जाएगा। इस अभियान का उद्देश्य विकलांगता से संबंधित समस्याओं को समय पर पहचानना और बच्चों को उनकी शिक्षा में मदद करना है।

विकलांगता की पहचान से संबंधित अभियान

दिल्ली सरकार का यह प्रयास है कि प्रत्येक बच्चे की पढ़ाई में आ रही किसी भी प्रकार की कठिनाई को समय रहते पहचाना जाए, ताकि उनके लिए आवश्यक सहायता प्रदान की जा सके। शिक्षा विभाग द्वारा इस अभियान के तहत 21 प्रकार की विकलांगताओं की पहचान की जाएगी। इसके लिए सभी स्कूलों में एक विशेष प्रक्रिया का पालन किया जाएगा, जिससे बच्चों की शैक्षिक यात्रा को सरल और अधिक सुलभ बनाया जा सके।

यह अभियान विशेष रूप से विकलांग व्यक्तियों के अधिकार (आरपीडब्ल्यूडी) अधिनियम, 2016 के तहत किया जा रहा है, ताकि विकलांग बच्चों के लिए उपयुक्त शैक्षिक कार्यक्रमों का विकास और कार्यान्वयन किया जा सके।

स्क्रीनिंग प्रक्रिया की विस्तृत जानकारी

स्क्रीनिंग प्रक्रिया को दो मुख्य चरणों में विभाजित किया गया है:

1. चरण 1: क्लास टीचर द्वारा शुरुआती जांच

इस चरण में, प्रत्येक छात्र का अवलोकन किया जाएगा। यह प्राथमिक जांच होगी, जिसमें शिक्षक बच्चों में विकलांगता के लक्षणों का प्रारंभिक मूल्यांकन करेंगे। विशेष रूप से, ध्यान दिया जाएगा कि बच्चे को चलने, लिखने, खाने, बोलने, पढ़ने-लिखने में कोई समस्या तो नहीं हो रही। यदि शिक्षक को किसी बच्चे में विकलांगता के लक्षण नजर आते हैं, तो उसे अगले चरण के लिए चिन्हित किया जाएगा।

2. चरण 2: विशेष शिक्षक या काउंसलर द्वारा गहनता से जांच

इस चरण में, विशेष शिक्षक या काउंसलर द्वारा छात्र का गहन मूल्यांकन किया जाएगा। यह जांच तब की जाएगी, जब क्लास टीचर के द्वारा बच्चें को चिन्हित किया जाएगा। इस चरण में, विकलांगता के प्रकार और गहराई का मूल्यांकन किया जाएगा, और इसके आधार पर बच्चों के लिए शैक्षिक सहायता की योजना तैयार की जाएगी।

क्या करना होगा स्कूलों को?

  1. प्रशस्त (PRASHAST) मोबाइल ऐप का उपयोग: इस अभियान को सुचारु रूप से चलाने के लिए स्कूलों को प्रशस्त मोबाइल ऐप का उपयोग करना होगा, जो कि छात्रों की विकलांगता की पहचान करने और उसे रिकॉर्ड करने में मदद करेगा।
  2. माता-पिता से अनुमति लेना (NOC): किसी भी छात्र का मूल्यांकन करने से पहले, स्कूल को माता-पिता से NOC (No Objection Certificate) प्राप्त करना अनिवार्य होगा। यह सुनिश्चित करेगा कि माता-पिता को बच्चे की स्क्रीनिंग और संभावित उपचार के बारे में जानकारी हो।
  3. लिस्ट बनाना: जो छात्र विकलांगता के लक्षण दिखाते हैं, उनकी एक लिस्ट तैयार करनी होगी। यह लिस्ट भविष्य में बच्चों के उपचार और समर्थन के लिए आवश्यक होगी।
  4. समय पर रिपोर्ट तैयार करना: स्कूलों को समय पर रिपोर्ट तैयार करके भेजनी होगी, ताकि सभी छात्रों के डेटा को उचित तरीके से प्रोसेस किया जा सके।

जरूरी तारीखें

  • 30 अप्रैल, 2025: सभी शिक्षकों को टीचर्स ट्रेनिंग पूरी करनी होगी। इस ट्रेनिंग में उन्हें विकलांगता की पहचान और उसकी मदद के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी जाएगी।
  • 25 जुलाई, 2025: स्कूलों को अपनी स्क्रीनिंग प्रक्रिया पूरी करनी होगी। इसके बाद रिपोर्ट तैयार करके 31 जुलाई, 2025 तक District Co-ordinator को भेजनी होगी।

किन बातों पर ध्यान देना होगा?

स्कूलों को निम्नलिखित पहलुओं पर विशेष ध्यान देना होगा, ताकि विकलांगता की सही पहचान की जा सके:

  • बच्चों को चलने, लिखने और खाने में कोई कठिनाई तो नहीं हो रही।
  • बच्चों के बोलने में रुकावट या अस्पष्टता का सामना तो नहीं करना पड़ रहा।
  • पढ़ने और लिखने में परेशानी आ रही है या नहीं।
  • बच्चों का सामाजिक व्यवहार सामान्य है या नहीं।
  • बच्चों में अत्यधिक डर या काल्पनिक दुनिया में खोने जैसी समस्याएं तो नहीं हैं।

विकलांगता की पहचान के लाभ

इस अभियान का सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि विकलांग बच्चों को समय रहते शिक्षा के उचित अवसर मिल सकेंगे। शिक्षा विभाग का यह प्रयास है कि प्रत्येक बच्चे के जीवन में विकलांगता के कारण कोई रुकावट न आए। सरकार का मानना है कि यदि विकलांगता की पहचान जल्द हो जाती है, तो बच्चों के लिए उपयुक्त शैक्षिक कार्यक्रम तैयार किया जा सकता है और उन्हें उनकी पूरी क्षमता तक विकसित होने का अवसर मिलता है।

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