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वैशाख में शिवलिंग पर क्यों चढ़ाई जाती है गलंतिका? जानें पौराणिक मान्यता और वैज्ञानिक रहस्य

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हिंदू धर्म में भगवान शिव को "देवों के देव महादेव" कहा गया है और उनके पूजन का विशेष महत्व है। शिवलिंग को शिव का प्रतीक स्वरूप माना जाता है, जिस पर जल चढ़ाने मात्र से भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि गर्मियों के महीनों, खासकर वैशाख और ज्येष्ठ में मंदिरों और घरों में स्थापित शिवलिंग के ऊपर एक छोटा छेद युक्त कलश (गलंतिका) क्यों बांधा जाता है? इसके पीछे न केवल गहरी धार्मिक आस्था जुड़ी है, बल्कि एक दिलचस्प पौराणिक कथा और वैज्ञानिक तर्क भी मौजूद है।

गलंतिका क्या है?

गलंतिका एक छेददार मटकी या कलश होती है, जिसे शिवलिंग के ठीक ऊपर इस प्रकार स्थापित किया जाता है कि उससे निरंतर बूंद-बूंद जल गिरता रहे। यह प्रक्रिया शिव अभिषेक का एक अत्यंत महत्वपूर्ण और शीतलता प्रदान करने वाला उपाय मानी जाती है।

समुद्र मंथन और विषपान से जुड़ी है परंपरा

पौराणिक कथा के अनुसार, जब देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया, तब चौदह रत्नों के साथ एक विषपात्र भी प्रकट हुआ। इस भयंकर कालकूट विष से तीनों लोकों में संकट उत्पन्न हो गया। तब भगवान शिव ने समस्त सृष्टि की रक्षा के लिए इस विष का पान किया। कहा जाता है कि यह विष उनके गले में स्थायी रूप से अटका रह गया, जिससे उनका कंठ नीला हो गया और वे नीलकंठ कहलाए।

वैशाख व ज्येष्ठ माह में तापमान अत्यधिक बढ़ जाता है, जिससे माना जाता है कि शिव के गले में स्थित विष की गर्मी भी तीव्र हो जाती है। इस कारण, शिवलिंग को ठंडक देने के लिए गलंतिका से बूंद-बूंद जलधारा टपकाई जाती है ताकि उनका तापमान संतुलित रहे और सृष्टि में शांति बनी रहे।

धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व

गलंतिका कोई साधारण पात्र नहीं है। यह विशेष रूप से मिट्टी, तांबे या धातु से बनी होती है और इसके भीतर ठंडा जल भरकर शिवलिंग के ऊपर बांधा जाता है। यह प्रक्रिया अभिषेक का ही एक रूप है, जो शिवलिंग को निरंतर शीतलता प्रदान करता है। यह भी मान्यता है कि गलंतिका से जल चढ़ाने से भक्त के सारे पाप धुल जाते हैं और उसे पुण्य की प्राप्ति होती है। इस जलधारा में आस्था की गहराई और श्रद्धा की ठंडक दोनों समाहित होते हैं।

महाकालेश्वर मंदिर में गलंतिका की विशेष परंपरा

उज्जैन स्थित श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में हर वर्ष वैशाख और ज्येष्ठ माह में विशेष गलंतिका बांधी जाती है। इस वर्ष भी 13 अप्रैल से गलंतिका लगाई गई है जो सुबह 6 बजे से शाम 5 बजे तक भगवान महाकाल पर जल चढ़ाती रहेगी। यह गलंतिका 11 मिट्टी के कलशों से जुड़ी होती है जिन पर भारत की 11 पवित्र नदियों के नाम अंकित रहते हैं: गंगा, यमुना, सरस्वती, गोदावरी, नर्मदा, सिंधु, कावेरी, क्षिप्रा, शरयू, गण्डकी, और अलखनंदा। इस प्रतीकात्मक प्रणाली से यह माना जाता है कि जैसे समस्त पवित्र नदियों का जल शिवलिंग पर चढ़ रहा है।

आज जब जल संरक्षण और पर्यावरण संतुलन जैसे मुद्दे वैश्विक चिंता का विषय बने हुए हैं, ऐसे में गलंतिका की यह परंपरा हमें जल की महत्ता, प्राकृतिक संतुलन और आध्यात्मिक अनुशासन की ओर आकर्षित करती है। शिवलिंग पर गिरती जलधारा न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह सिखाती है कि प्रकृति और पूजा साथ चलें, तभी सृष्टि का संतुलन बना रह सकता है।

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