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राष्ट्रीय पुस्तकालयाध्यक्ष दिवस 2025: किताबों और ज्ञान के संरक्षक को सलाम, जानें इस दिन का महत्व

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आज के दौर में जहां हर चीज़ डिजिटल होती जा रही है, वहां भी एक चीज़ ऐसी है जो हमेशा अहम रहेगी – वो है ज्ञान। और इसी ज्ञान को सहेजने, संभालने और सही लोगों तक पहुंचाने का काम करते हैं पुस्तकालयाध्यक्ष। हर साल 16 अप्रैल को देशभर में राष्ट्रीय पुस्तकालयाध्यक्ष दिवस मनाया जाता है, ताकि उनके इस योगदान को याद किया जा सके और उन्हें सम्मान दिया जा सके।

क्यों खास है ये दिन?

16 अप्रैल का दिन खासतौर पर उन लोगों को समर्पित है जो पुस्तकालयों की जिम्मेदारी उठाते हैं। ये सिर्फ किताबों को अलमारी में सजाने का काम नहीं है, बल्कि सही जानकारी को सही व्यक्ति तक पहुंचाना, लोगों को पढ़ने के लिए प्रेरित करना और हर उम्र के लोगों को सीखने में मदद करना, इनका असली काम होता है।

पुस्तकालयाध्यक्षों का काम जितना शांत दिखता है, उतना ही जिम्मेदारी भरा भी है। वो हर दिन छात्रों, शोधकर्ताओं, आम लोगों और बुजुर्गों तक ज्ञान की रोशनी पहुंचाने का जरिया बनते हैं।

कौन थे डॉ. एस. आर. रंगनाथन?

भारत में पुस्तकालयों की नींव मजबूत करने वाले महान व्यक्ति थे डॉ. एस. आर. रंगनाथन। उन्हें भारत में पुस्तकालय विज्ञान का जनक कहा जाता है। उन्होंने पुस्तकालयों को सिर्फ किताबों का अड्डा नहीं, बल्कि ज्ञान और सीखने का केंद्र बनाया। उनकी याद में ही 12 अगस्त को "नेशनल लाइब्रेरी डे" मनाया जाता है, लेकिन 16 अप्रैल को विशेष रूप से उन लोगों के लिए चुना गया है जो इन लाइब्रेरीज़ को संभालते हैं – यानी पुस्तकालयाध्यक्ष।

छात्रों के लिए लाइब्रेरी की अहमियत

एक स्टूडेंट के लिए लाइब्रेरी किसी खजाने से कम नहीं होती। चाहे बोर्ड एग्जाम की तैयारी करनी हो या कोई रिसर्च प्रोजेक्ट, लाइब्रेरी और उसमें मदद करने वाले पुस्तकालयाध्यक्ष हमेशा साथ होते हैं। वे छात्रों को बताने में मदद करते हैं कि कौन-सी किताब किस टॉपिक के लिए सही है, कौन-सी वेबसाइट भरोसेमंद है, और किन स्रोतों से उन्हें असली जानकारी मिलेगी। आज जब गूगल पर हजारों जवाब आते हैं, तब एक लाइब्रेरियन ही होता है जो सही रास्ता दिखाता है।

ग्रामीण भारत में उम्मीद की किरण

भारत के गांवों में जहां इंटरनेट या डिजिटल सुविधा सीमित है, वहां पुस्तकालय और पुस्तकालयाध्यक्ष शिक्षा की असली उम्मीद बनते हैं। कई राज्यों ने गांवों में छोटे-छोटे पुस्तकालय शुरू किए हैं, जहां लोग आकर पढ़ सकते हैं, अखबार देख सकते हैं, और कंपटीशन की तैयारी कर सकते हैं। ऐसे जगहों पर काम करने वाले पुस्तकालयाध्यक्ष लोगों को पढ़ाई के प्रति जागरूक करने का काम करते हैं। वो बच्चों को किताबों की ओर खींचते हैं और गांवों में शिक्षा का माहौल तैयार करते हैं।

सरकार की कोशिशें

सरकार भी अब पुस्तकालयों को डिजिटल बनाने की दिशा में काम कर रही है। नेशनल डिजिटल लाइब्रेरी, ई-पाठशाला, और डिजिटल इंडिया जैसी योजनाओं से लोगों को मोबाइल और कंप्यूटर के ज़रिए पढ़ने की सुविधा मिल रही है। इसके अलावा अब कई कॉलेज और यूनिवर्सिटी में लाइब्रेरी एंड इंफॉर्मेशन साइंस जैसे कोर्स भी हैं, जिससे युवा इस क्षेत्र में करियर बना सकते हैं।

इस साल के कार्यक्रम

हर साल की तरह इस बार भी राष्ट्रीय पुस्तकालयाध्यक्ष दिवस पर कई जगह खास कार्यक्रम हो रहे हैं। स्कूलों, कॉलेजों और पब्लिक लाइब्रेरीज़ में बुक एग्ज़ीबिशन, पुस्तक चर्चा, सेमिनार, और लाइब्रेरी वर्कशॉप का आयोजन किया जा रहा है। कुछ जगहों पर ऑनलाइन वेबिनार भी हो रहे हैं, जिनमें विशेषज्ञ यह चर्चा कर रहे हैं कि आने वाले वक्त में पुस्तकालयों की भूमिका क्या होगी और टेक्नोलॉजी के साथ कैसे कदम से कदम मिलाया जा सकता है।

किताबों की दुनिया में खो जाने वाले ये शांत स्वभाव के लोग असल में समाज के असली हीरो हैं। वो बच्चों में पढ़ने की आदत डालते हैं, बुजुर्गों को नई जानकारियां देते हैं और युवाओं को करियर बनाने की राह दिखाते हैं। राष्ट्रीय पुस्तकालयाध्यक्ष दिवस पर हमें याद रखना चाहिए कि जितना सम्मान हम डॉक्टर, इंजीनियर या शिक्षक को देते हैं, उतना ही सम्मान इन ज्ञान के संरक्षकों को भी मिलना चाहिए। क्योंकि यही लोग हैं जो हमारे समाज को सोचने, समझने और आगे बढ़ने की ताकत देते हैं।

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