भाजपा सांसद निशिकांत दुबे एक बार फिर अपने विवादित बयानों को लेकर सुर्खियों में हैं। इस बार उन्होंने पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस.वाई. कुरैशी पर निशाना साधते हुए एक विवादित टिप्पणी की है।
Nishikant Dubey Targets S.Y. Quraishi: भारतीय राजनीति एक बार फिर तीखी बयानबाजी की आग में जलने लगी है। इस बार विवाद का केंद्र बने हैं भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के गोड्डा से सांसद निशिकांत दुबे और भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस.वाई. कुरैशी। निशिकांत दुबे ने एक बेहद तीखा और विवादित बयान देते हुए एस.वाई. कुरैशी पर आरोप लगाया कि वे अपने कार्यकाल में निष्पक्ष चुनाव आयोग के प्रमुख नहीं, बल्कि एक मजहबी एजेंडे को आगे बढ़ाने वाले "मुस्लिमों के आयुक्त" थे। दुबे के इस बयान के बाद राजनीतिक हलकों में बवाल मच गया है।
किस मुद्दे से भड़की आग?
इस पूरे विवाद की शुरुआत वक्फ अधिनियम को लेकर एस.वाई. कुरैशी के एक ट्वीट से हुई। उन्होंने लिखा, वक्फ अधिनियम निस्संदेह मुस्लिम ज़मीन हड़पने के लिए सरकार की एक खतरनाक और गलत योजना है। मुझे भरोसा है कि सुप्रीम कोर्ट इस पर सवाल उठाएगा। अफवाह फैलाने वाली मशीनरी ने अपना काम बखूबी किया है।
कुरैशी के इस ट्वीट के जवाब में निशिकांत दुबे ने बेहद आक्रामक लहजे में टिप्पणी करते हुए कहा, आप चुनाव आयुक्त नहीं, मुस्लिमों के आयुक्त थे। झारखंड के संथालपरगना में सबसे ज़्यादा बांग्लादेशी घुसपैठियों को वोटर आपके कार्यकाल में ही बनाया गया।
निशिकांत दुबे का इतिहास का हवाला
निशिकांत दुबे ने अपने बयान में न सिर्फ कुरैशी की भूमिका पर सवाल उठाए बल्कि भारत के इतिहास की ओर इशारा करते हुए एक सांस्कृतिक विमर्श भी छेड़ दिया। उन्होंने कहा, पैगंबर मुहम्मद साहब का इस्लाम भारत में 712 ईस्वी में आया था। उससे पहले यह भूमि हिंदू या उस आस्था से जुड़ी आदिवासी, जैन और बौद्ध धर्मावलंबियों की थी।
उन्होंने अपने गांव विक्रमशिला विश्वविद्यालय का भी उल्लेख किया, जिसे उन्होंने बताया कि बख्तियार खिलजी ने 1189 में जला दिया था। दुबे ने दावा किया, विक्रमशिला ने दुनिया को पहला कुलपति दिया - अतिश दीपांकर के रूप में। इतिहास पढ़ो, देश को जोड़ो, क्योंकि तोड़ने से पाकिस्तान बना था। अब बंटवारा नहीं होगा।
सुप्रीम कोर्ट पर भी तीखा हमला
ये पहला मौका नहीं है जब निशिकांत दुबे ने किसी संवैधानिक संस्था पर सवाल उठाए हों। इससे पहले उन्होंने देश की सर्वोच्च न्यायालय और मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना पर भी हमला बोला था। दुबे ने कहा था, देश में जितने भी गृह युद्ध जैसे हालात बन रहे हैं, उसके लिए सिर्फ और सिर्फ सुप्रीम कोर्ट और CJI जिम्मेदार हैं। कोर्ट अब अपनी सीमाएं लांघ रहा है। अगर हर बात पर सुप्रीम कोर्ट को जाना है तो संसद और विधानसभाएं बंद कर देनी चाहिए।
कुरैशी का शांतिपूर्ण जवाब
जहां एक ओर निशिकांत दुबे तीखी भाषा में हमलावर दिखे, वहीं दूसरी ओर एस.वाई. कुरैशी ने संयमित प्रतिक्रिया देते हुए कहा, क्योंकि यह मामला सीधे सुप्रीम कोर्ट से जुड़ा हुआ है और सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में है, लिहाजा इस पर अभी कोई टिप्पणी नहीं करूंगा। सुप्रीम कोर्ट पर नजर रहेगी कि वह क्या करती है।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
भाजपा खेमे में जहां दुबे के बयान को "साहसिक और सटीक" बताया जा रहा है, वहीं विपक्षी दलों और कई बुद्धिजीवियों ने इसे भारत के संवैधानिक मूल्यों पर हमला करार दिया है। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और आप जैसी पार्टियों ने दुबे के बयान की निंदा की है और चुनाव आयोग से कार्रवाई की मांग की है। वहीं सोशल मीडिया पर भी इस विवाद ने हलचल मचा दी है। जहां एक वर्ग दुबे के समर्थन में खड़ा दिखा, वहीं दूसरे पक्ष ने इसे समाज को बांटने की साजिश बताया।
संवैधानिक मर्यादा और लोकतंत्र का सवाल
इस तरह की बयानबाजी केवल व्यक्तियों तक सीमित नहीं रहती, बल्कि यह पूरे लोकतंत्र, संवैधानिक संस्थाओं और जनता के भरोसे को प्रभावित करती है। भारत जैसे लोकतंत्र में चुनाव आयोग और न्यायपालिका जैसी संस्थाएं संविधान की आत्मा मानी जाती हैं। अगर इन्हीं पर सवाल उठाए जाएंगे, वह भी सार्वजनिक मंच से और बिना ठोस सबूतों के, तो आम जनमानस के मन में भ्रम और अविश्वास फैलना तय है।