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दिल्ली दरबार में तेजस्वी यादव, कांग्रेस को संदेश या नई सियासी रणनीति? जानें यात्रा के क्या हैं मायने

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तेजस्वी यादव की आज दिल्ली में कांग्रेस के शीर्ष नेताओं राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे से होने वाली मुलाकात को महज एक औपचारिक भेंट कहकर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, खासकर तब जब बिहार विधानसभा चुनाव कुछ ही महीनों दूर है।

Tejaswi Yadav: दिल्ली की राजनीतिक फिजा आज कुछ अलग सी है। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव राजधानी पहुंच चुके हैं और उनका कांग्रेस के शीर्ष नेताओं राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे से मिलने का कार्यक्रम है। आरजेडी खेमे से यह मुलाकात औपचारिक बताई जा रही है, लेकिन बिहार की राजनीति के जानकार इसे सिर्फ शिष्टाचार की बैठक मानने को तैयार नहीं हैं। खासकर तब, जब राज्य में 2025 के विधानसभा चुनाव की आहट सुनाई देने लगी है और महागठबंधन के भीतर ‘सीएम फेस’ को लेकर असमंजस और बयानों का दौर तेज़ हो चला है।

बिहार कांग्रेस को सिग्नल देने दिल्ली पहुंचे तेजस्वी?

हाल ही में बिहार कांग्रेस के कई नेताओं ने सार्वजनिक रूप से महागठबंधन में नेतृत्व को लेकर आवाज़ें उठाई हैं। कोई तेजस्वी यादव के नाम पर चुप्पी साधे हुए है, तो कुछ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने की वकालत कर रहे हैं। इन सबके बीच आरजेडी के लिए स्थिति असहज होती जा रही है। ऐसे में तेजस्वी यादव का दिल्ली दौरा सीधे तौर पर एक राजनीतिक मैसेज के तौर पर देखा जा रहा है – कि अब महागठबंधन में लुका-छुपी और पब्लिक पोस्टरिंग नहीं चलेगी।

एजेंडे में क्या-क्या हो सकते हैं मुद्दे?

1. मुख्यमंत्री पद पर एक राय: तेजस्वी चाहते हैं कि कांग्रेस नेतृत्व साफ-साफ ऐलान करे कि महागठबंधन का चेहरा वही होंगे। बार-बार स्थानीय कांग्रेस नेताओं की ओर से बयानबाज़ी से असमंजस फैलता है।

2. सीट बंटवारे की बातचीत की शुरुआत: 2020 में कांग्रेस को 70 सीटें दी गई थीं, लेकिन उसके प्रदर्शन पर सवाल उठे थे। इस बार कांग्रेस और सीटें मांग रही है, लेकिन आरजेडी शायद ही इतनी उदारता दोहराए। लिहाज़ा इस मुद्दे पर शुरुआती बातचीत जरूरी है।

3. संघर्ष की एकजुट रणनीति: एनडीए के खिलाफ एकजुट मोर्चा तैयार करने को लेकर साझा रैली, घोषणापत्र और प्रचार रणनीति पर भी बातचीत हो सकती है।

दिल्ली में गरम, पटना में सन्नाटा

दिल्ली में जहां तेजस्वी यादव कांग्रेस आलाकमान से मिलकर गठबंधन को ‘संभालने’ की कोशिश कर रहे हैं, वहीं पटना में कांग्रेस की प्रदेश इकाई इस मुलाकात पर मौन साधे बैठी है। इससे यह और स्पष्ट होता है कि दोनों दलों के बीच कई चीज़ें अब भी साफ-साफ तय नहीं हैं। तेजस्वी की इस बैठक के बाद क्या कांग्रेस अपने नेताओं को ‘टाइट’ करेगी? क्या सीट शेयरिंग पर कोई रूपरेखा बन पाएगी? और सबसे ज़रूरी – क्या कांग्रेस खुलकर तेजस्वी को महागठबंधन का चेहरा मानेगी?

इन सवालों के जवाब फिलहाल धुंध में हैं, लेकिन तेजस्वी यादव की दिल्ली यात्रा ने इतना तो तय कर दिया है कि बिहार में 2025 का चुनाव अब केवल भाजपा बनाम महागठबंधन नहीं रहेगा, बल्कि यह एकजुटता बनाम असमंजस की जंग भी होगी।

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