ईसाई समुदाय के सर्वोच्च धर्मगुरु, पोप फ्रांसिस का निधन हो गया है। वे 88 वर्ष के थे और लंबे समय से गंभीर बीमारियों से जूझ रहे थे। पोप फ्रांसिस का निधन वेटिकन सिटी स्थित उनके निवास 'कासा सांता मार्ता' में हुआ।
वेटिकन सिटी: ईसाई समुदाय के सबसे बड़े धर्मगुरु, पोप फ्रांसिस, का आज (21 अप्रैल) को 88 वर्ष की आयु में निधन हो गया है। वह पिछले कुछ समय से गंभीर रूप से बीमार चल रहे थे, और वेटिकन सिटी ने सोमवार को उनके निधन की आधिकारिक जानकारी दी। पोप फ्रांसिस का जन्म अर्जेंटीना में हुआ था और वे पहले लैटिन अमेरिकी धर्मगुरु थे, जिन्हें वर्ष 2013 में कैथोलिक चर्च का सर्वोच्च पद, पोप की उपाधि प्राप्त हुई थी।
उनकी पोप के रूप में पदवी ग्रहण करने के बाद, उन्होंने चर्च के सुधार और समाज में समानता, गरीबों और निचली जातियों के लिए अपनी आवाज़ उठाने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए।
पोप फ्रांसिस का असली नाम और बचपन
पोप फ्रांसिस का असली नाम जॉर्ज मारियो बेरगोलियो था। उनका जन्म 17 दिसंबर 1936 को अर्जेंटीना के ब्यूनस आयर्स में हुआ था। उनके माता-पिता इटली से आए प्रवासी थे। उनके पिता एक अकाउंटेंट थे, और मां गृहिणी थीं। बेरगोलियो का बचपन साधारण था, लेकिन उनका रुझान धार्मिक जीवन की ओर शुरू से ही था। उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा के दौरान विज्ञान की पढ़ाई की, लेकिन उनके मन में एक गहरी आस्थागत भावना और ईश्वर के प्रति आकर्षण बढ़ता गया।
धार्मिक जीवन की शुरुआत
जॉर्ज बेरगोलियो ने 1958 में 21 साल की आयु में जेसुइट समुदाय से जुड़कर एक धार्मिक जीवन की शुरुआत की। 1969 में वे पादरी बने और इसके बाद स्पेन में धर्म की गहरी शिक्षा ली। उनका धार्मिक जीवन पूरी तरह से सेवा, करुणा और न्याय पर आधारित था। धीरे-धीरे उनका नाम चर्च में गहराई से जाना जाने लगा, और 1973 में उन्हें अर्जेंटीना में जेसुइट समुदाय का प्रमुख बना दिया गया।
पोप बनने की यात्रा
पोप फ्रांसिस के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण मोड़ 2013 में आया, जब उन्हें कैथोलिक चर्च का 266वां पोप चुना गया। वे पहले लैटिन अमेरिकी पोप थे, साथ ही पहले जेसुइट भी। उनका नाम फ्रांसिस रखा गया, जो सादगी, सेवा और गरीबों के प्रति प्रेम के प्रतीक थे। यह चुनाव इसलिए भी महत्वपूर्ण था क्योंकि बेनेडिक्ट XVI ने स्वेच्छा से इस्तीफा दिया था, और एक जीवित पोप के बाद उनका चुनाव हुआ था। पोप फ्रांसिस के चुने जाने का क्षण चर्च में ऐतिहासिक था, क्योंकि उन्होंने एक नया दृष्टिकोण और सेवा की नीति को अपनाया था।
पोप फ्रांसिस के कार्यकाल की प्रमुख पहल
पोप फ्रांसिस ने अपने कार्यकाल में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए, जो न केवल चर्च बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक संदेश थे। उन्होंने धार्मिक जीवन को सरल और सशक्त बनाने के लिए कई सुधार किए।
1. शरणार्थियों के पैर धोने की परंपरा
साल 2016 में, पोप फ्रांसिस ने शरणार्थियों के पैर धोने की परंपरा की शुरुआत की, जो उनके मानवीय दृष्टिकोण को दर्शाता था। शरणार्थियों के पैर धोकर उन्होंने यह संदेश दिया कि सभी इंसान समान हैं और सेवा का कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। यह उनका एक ऐतिहासिक कदम था, जो दुनिया भर में धर्म और सहिष्णुता के संदेश को फैलाता था।
2. कुकर्मों पर माफी मांगना
2018 में पोप फ्रांसिस ने आयरलैंड में चर्च के कुकर्मों पर सार्वजनिक माफी मांगी। पोप फ्रांसिस ने स्वीकार किया कि चर्च के कुछ पादरी और धर्मगुरुओं ने बच्चों के साथ यौन शोषण किया था। उन्होंने इस अत्याचार को स्वीकारते हुए इसके खिलाफ सख्त कदम उठाने की वचनबद्धता जताई और इस पर कड़ा विरोध किया।
3. यौन शोषण रिपोर्टिंग की अनिवार्यता
2019 में पोप फ्रांसिस ने एक महत्वपूर्ण आदेश जारी किया, जिसके तहत सभी पादरियों और धार्मिक व्यक्तियों को यौन शोषण के मामलों की रिपोर्ट करना अनिवार्य कर दिया। यह कदम चर्च में पारदर्शिता और जिम्मेदारी बढ़ाने के उद्देश्य से उठाया गया था। इसके बाद 2023 में यह नियम आम चर्च नेताओं पर भी लागू कर दिया गया था।
4. धार्मिक सुधार और समावेशिता
पोप फ्रांसिस ने अपने कार्यकाल में चर्च में सुधारों को लागू किया, जो समावेशिता और विविधता का सम्मान करते थे। उन्होंने चर्च को और अधिक महिला सशक्तिकरण और युवाओं के प्रति सहानुभूति के लिए प्रेरित किया।
सामाजिक न्याय और पर्यावरण संरक्षण
पोप फ्रांसिस ने अपनी चिंता का विषय न केवल चर्च और ईसाई धर्म, बल्कि समाज और पर्यावरण भी बनाया। उनके द्वारा जारी किए गए दस्तावेज़ 'लौदातो सी' में पर्यावरण की रक्षा और पृथ्वी के प्रति जिम्मेदारी की बात की गई थी। पोप ने पर्यावरणीय संकट को लेकर दुनिया भर में जागरूकता फैलाने की कोशिश की और यह समझाया कि धरती हमारी माता है, और हमें इसे बचाने के लिए अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभानी होगी।
पोप फ्रांसिस का जीवन धर्मों के बीच संवाद और वैश्विक शांति के लिए समर्पित था। उन्होंने मुस्लिम, यहूदी और अन्य धार्मिक नेताओं के साथ मिलकर शांति और सहिष्णुता के संदेश दिए। उनका मानना था कि दुनिया में शांति तभी संभव है जब हम एक-दूसरे के धर्म और संस्कृति का सम्मान करें।
पोप फ्रांसिस का निधन: शोक और श्रद्धांजलि
पोप फ्रांसिस के निधन के बाद, दुनियाभर के नेताओं और आम नागरिकों ने शोक व्यक्त किया है। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट किया, "पोप फ्रांसिस का निधन एक अपूरणीय क्षति है। उनका जीवन सेवा, करुणा और शांति का प्रतीक था।" फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों और इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी ने भी पोप फ्रांसिस के योगदान को श्रद्धांजलि दी।
पोप फ्रांसिस की मृत्यु के बाद, वेटिकन सिटी ने उनके अंतिम संस्कार की तैयारी शुरू कर दी है। अब चर्च का अगला पोप चुनने के लिए कॉन्क्लेव की प्रक्रिया शुरू होगी।