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खनिजों की जंग, अमेरिका की मुश्किल और भारत का सुनहरा अवसर; वैश्विक शक्ति संतुलन में नया मोड़

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Subkuz.com की विशेष रिपोर्ट

आज की वैश्विक राजनीति और भू-रणनीति (geopolitics) में पारंपरिक युद्ध की जगह अब संसाधनों की जंग ने ले ली है। हथियारों की यह जंग अब गोला-बारूद से नहीं, बल्कि दुर्लभ खनिजों (Rare Earth Elements) और तकनीकी वर्चस्व से लड़ी जा रही है। चीन और अमेरिका के बीच चल रही इस संसाधन युद्ध में अब एक नया मोड़ आ गया है, जिसने न केवल अमेरिका की नींव को हिला दिया है बल्कि भारत के लिए एक ऐतिहासिक अवसर भी खोल दिया है.

1. अमेरिका की मुश्किल: सैन्य और तकनीकी आधार डगमगाया

F-35 जैसे अत्याधुनिक हथियारों पर संकट: अमेरिका का गर्व माने जाने वाला F-35 फाइटर जेट, हाई-टेक मिसाइल सिस्टम, और परमाणु पनडुब्बियाँ इन सभी में दुर्लभ खनिजों की भारी मात्रा में जरूरत होती है। चीन द्वारा दुर्लभ खनिजों के निर्यात को नियंत्रित करने की नीति ने अमेरिका की सैन्य तैयारी को गहरी चोट दी है।
टेक्नोलॉजी सेक्टर में भी संकट: सेमीकंडक्टर, इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs), ग्रीन एनर्जी, और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ये सभी सेक्टर दुर्लभ खनिजों पर निर्भर हैं। अमेरिका की बड़ी टेक कंपनियाँ अब आपूर्ति शृंखला की असुरक्षा से जूझ रही हैं।

2. चीन की रणनीति: दुर्लभ खनिज बनेंगे भू-राजनीतिक हथियार

चीन, जो दुनिया का सबसे बड़ा Rare Earths निर्यातक है, ने अब इन खनिजों को लाइसेंस और राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के अधीन कर दिया है। इसका अर्थ है कि अब वह तय करेगा कि कौन से देश को कितना और कब खनिज मिलेगा।

चीन की नीति का उद्देश्य क्या है?

• भू-राजनीतिक दबाव: अमेरिका और उसके सहयोगियों को तकनीकी क्षेत्र में झुकाना
आर्थिक जवाबी हमला: अमेरिका की चिप और AI सेक्टर पर लगाए गए बैन का पलटवार
 रणनीतिक प्रभुत्व: भविष्य की वैश्विक शक्ति संरचना में अपनी स्थिति मजबूत करना

3. वैश्विक संकट में भारत के लिए स्वर्णिम अवसर

भारत के पास क्या है?

भारत में लगभग 7 मिलियन टन से अधिक Rare Earth Element के भंडार हैं, जो तटीय क्षेत्रों (ओडिशा, केरल, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु) और पूर्वोत्तर में स्थित हैं।

भारत की नीतियाँ: अवसर की तैयारी

 ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान के तहत खनिज क्षेत्र को बढ़ावा
 कोर क्रिटिकल मिनरल्स लिस्ट का निर्माण
भारत-ऑस्ट्रेलिया-जापान की Supply Chain Resilience Partnership (SCRP) में सक्रिय भूमिका

विदेशी निवेश को आकर्षित करने का मौका

अब समय है कि भारत विदेशी कंपनियों को रिफाइनिंग, प्रोसेसिंग और रिसर्च के लिए भारत में आमंत्रित करे। इससे न केवल आर्थिक लाभ होगा, बल्कि रणनीतिक बढ़त भी।

4. भारत की रणनीति क्या होनी चाहिए?

रिफाइनिंग टेक्नोलॉजी में आत्मनिर्भरता: भारत को Rare Earths की रिफाइनिंग तकनीक विकसित करनी होगी जिससे खनिजों का घरेलू उपयोग और निर्यात संभव हो सके।
Coastal SEZs और Green Mining Zones: विशेष आर्थिक क्षेत्र बनाकर, पर्यावरण के अनुकूल तकनीकों से खनिजों की खुदाई और प्रसंस्करण को प्रोत्साहन देना चाहिए।
भारत को वैश्विक Rare Earths Hub बनाने की पहल: भारत अपने खनिज भंडार का उपयोग करके एक ‘Rare Earths Innovation and Trade Hub’ बना सकता है, जहाँ प्रोसेसिंग, टेक डेवलपमेंट, और निर्यात सब एक जगह हों।

5. दुनिया की नजर भारत पर: आर्थिक, रणनीतिक और टेक्नोलॉजी केंद्र

Make in India को वैश्विक उड़ान: यदि भारत Tech और Defense कंपनियों को Rare Earths की सुनिश्चित आपूर्ति दे सके, तो ये कंपनियाँ भारत में अपने निर्माण संयंत्र लगाने को मजबूर होंगी। 
भारत बनेगा नया रणनीतिक साथी: अमेरिका, जापान, EU जैसे राष्ट्र अब भारत की ओर देख रहे हैं कि वह चीन के विकल्प के रूप में उभरे। इस समय भारत की भूमिका निर्णायक हो सकती है।

6. अमेरिका की स्थिति: कथित 'ग्लोबल बॉस' की हकीकत उजागर

प्रभाव खत्म होता वर्चस्व: एक समय था जब अमेरिका हर अंतरराष्ट्रीय विवाद में निर्णायक भूमिका निभाता था। लेकिन अब तकनीकी और आर्थिक युद्ध में उसकी निर्भरता और रणनीतिक कमजोरी उजागर हो रही है।
मूल्य आधारित राजनय की जगह स्वार्थ आधारित नीतियाँ: चीन और रूस को रोकने के नाम पर अमेरिका ने जिन देशों पर बैन लगाए, वही अब आपूर्ति संकट में उसके सबसे बड़े कारण बन गए हैं।

7. निष्कर्ष: भारत के लिए नेतृत्व का ऐतिहासिक क्षण

यह केवल एक आपूर्ति श्रृंखला की समस्या नहीं है, यह विश्व शक्ति संतुलन का पुनर्निर्माण है। भारत को इस मौके को केवल संसाधन बेचने तक सीमित नहीं रखना है, बल्कि उसे वैश्विक औद्योगिक और भू-रणनीतिक नेतृत्व की ओर बढ़ना होगा।

> '21वीं सदी में जो देश दुर्लभ खनिजों पर नियंत्रण रखेगा, वही तकनीक, सैन्य शक्ति और अर्थव्यवस्था का नेतृत्व करेगा। भारत इस दौड़ में आगे निकल सकता है, अगर वह अभी जाग गया।'

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