तुम्हारे प्यार जितनी तुम्हारी बातें भी क्रेज़ी हैं... कभी नॉर्मल रह सकती हो?
और जवाब में सुगम्या उसके गालों पर प्यारे-प्यारे चुंबनों की बारिश कर देती थी।
ये वही सुगम्या है, जो आजकल खामोशी से बीते लम्हों के बीच भटक रही है। कहने को लोग कहते हैं वक्त सब कुछ भुला देता है, लेकिन दिल और दिमाग कभी-कभी ऐसा गठजोड़ बना लेते हैं कि हर भूली-बिसरी चीज़ को फिर से सामने खड़ा कर देते हैं। जैसे ही वो आंखें बंद करती है, किसलय की यादें उसकी पलकों पर दस्तक देने लगती हैं।
कभी यादें उसके पास आकर चुपचाप बैठ जाती हैं। जब वो रसोई में बर्तन पटक-पटककर खुद को व्यस्त करने की कोशिश करती है, तब भी वे पीछे-पीछे चली आती हैं। कहीं भी जाओ, वो यादें पीछा नहीं छोड़तीं। और उन यादों में बस एक ही चेहरा होता है—किसलय।
किसलय—वो शख्स जिससे सुगम्या ने दीवानों की तरह प्यार किया। नहीं, सिर्फ प्यार नहीं... वह तो उसकी रूह का हिस्सा बन गया था। अगर कोई कहे कि सुगम्या अब किसलय से प्यार नहीं करती, तो ये झूठ होगा। क्योंकि वो तो अब भी उसी के ख्यालों में डूबी रहती है, बस कह नहीं पाती।
किसलय उसका आइडियल था। जब दोनों ने मंदिर में जाकर शादी की थी, तब वह किसी परियों की कहानी जैसा लगता था—सपनों वाला प्यार, साज-श्रृंगार, खुशियां ही खुशियां। किसलय कहता था,तुम्हारा प्यार मुझे डराता है सुकन्या। और वो हंसकर कहती, क्यों? लोग तो ऐसे प्यार के लिए तरसते हैं। और तुम हो कि बचने के लिए शेड ढूंढते फिरते हो, वो बातें, वो झप्पियां, वो चुंबनों की बारिश... सब अब भी याद हैं उसे।
सुगम्या के पापा को किसलय पसंद नहीं आया। वजह? वो शांत है, गंभीर है... और सुगम्या बहुत चंचल है, उसे कौन संभालेगा?
सुगम्या आगबबूला हो गई थी। तो क्या आप मुझे कैद करना चाहते हैं? क्या बेटी की खुशी मायने नहीं रखती?
उस रात उसने घर में भूचाल ला दिया और सुबह-सुबह सीधे किसलय के घर जा पहुंची। आज ही मुझसे शादी करो!
किसलय भौचक्का। मम्मी-पापा भी हक्के-बक्के।
लेकिन सुगम्या पीछे हटने वालों में से नहीं थी। उसने एलान कर दिया, मैं घर छोड़ आई हूं। अब वापस नहीं जाऊंगी।
किसलय डर गया था कि वो कोई ऊटपटांग कदम न उठा ले। उसने उसका हाथ थाम लिया और दोनों ने फेरे ले लिए। किसलय के घरवालों ने उसे बहू बनाकर दिल से अपनाया।
शादी के बाद सब अच्छा था। प्यार, सपोर्ट, आज़ादी... किसलय ने कभी कोई रोक-टोक नहीं की। सुगम्या की नौकरी, उसके सपनों को पूरा करने की छूट... हर चीज़।
लेकिन फिर भी एक अजीब सी खालीपन महसूस होने लगी। सुगम्या को खुद समझ नहीं आया कि क्या कम था। किसलय पूछता, कोई कमी है क्या? और उसके पास कोई जवाब नहीं होता।
धीरे-धीरे वह छोटी-छोटी बातों पर रूठने लगी। और हर बार किसलय प्यार से मनाता।
मगर एक दिन उसकी सास ने कह ही दिया, इतना सिर पर मत चढ़ाओ इसे। ये पहले से ही सरचढ़ी है।
सुगम्या ने सुन लिया, चुप रही। पर अंदर कुछ टूट गया। फिर बहन ने ताना मारा, ऑफिस में भी ऐसे ही रूठती हो क्या?
अब तो आग लग गई। “तुम कौन होती हो हमारे रिश्ते में बोलने वाली?”
परिवार नाराज़ हो गया। सास ने साफ कहा, अगर हमारा साथ नहीं पसंद तो अलग हो जाओ। किसलय चुप रहा। पहली बार उसने सुगम्या को नहीं मनाया।
सुगम्या नाराज़ होकर अपनी दोस्त के घर चली गई। फिर गेस्ट हाउस, फिर अकेला फ्लैट। आठ महीने बीत गए। पर यादें हर रोज़ दिल में दस्तक देती हैं।
फोन नहीं करती, उसका कॉल नहीं उठाती। क्योंकि ईगो आड़े आ जाता है।
कभी-कभी सोचती है, पापा सही तो नहीं थे? पर फिर याद आता है—किसलय उसे संभाल सकता था, क्योंकि वो प्यार करता है, शिद्दत से।
एक दिन दरवाज़े की घंटी लगातार बजती रही। सुगम्या ने थके मन से दरवाज़ा खोला। सामने किसलय खड़ा था, मुस्कराता हुआ।
बहुत हो गया तुम्हारा रूठना और मनमानी... अब मान भी जाओ।
सुगम्या फूट पड़ी। दौड़कर उसके सीने से लग गई।
पहले क्यों नहीं आए? उसकी आवाज़ में शिकायत नहीं, सुकून था।
कहानी का सार यही है- जब प्यार सच्चा हो, तो दूरियां भी हार मान जाती हैं। रूठने का मज़ा तब तक ही है, जब तक मनाने वाला हो। और किसलय तो हमेशा से उसका ‘मनाने वाला’ था... और रहेगा भी।