एक बार की बात है, एक व्यक्ति अपने जीवन से बेहद परेशान हो गया था। उसका जीवन बचपन से ही संघर्षों से भरा था। पिता का साया सिर से उठ चुका था और छोटी उम्र में ही मां, भाई-बहनों की जिम्मेदारी उसके कंधों पर आ गई थी। जैसे-तैसे बड़ा हुआ, लेकिन जीवन ने चैन से जीने का मौका ही नहीं दिया। काम-धंधे में असफलता, पारिवारिक उलझनें, आर्थिक तंगी और निजी रिश्तों में कड़वाहट—हर कदम पर उसे लगता था कि जैसे किस्मत उसके खिलाफ ही है।
वह हर संभव कोशिश करता रहा, लेकिन नतीजा हमेशा उल्टा ही निकला। हर बार उम्मीद से आगे बढ़ता, लेकिन सामने एक नई परेशानी खड़ी हो जाती। इन तमाम झंझावतों से तंग आकर एक दिन वह एक प्रसिद्ध संत के पास पहुंचा और कहा, 'गुरुदेव, मैं बहुत दुखी हूं। मेरी ज़िंदगी में चैन का एक पल भी नहीं है। क्या आप मुझे अपना शिष्य बना सकते हैं? मुझे मार्गदर्शन की ज़रूरत है।'
संत ने उसकी आंखों में झांकते हुए कहा, 'अगर तुम सच में मेरी शरण में आना चाहते हो, तो पहले मेरे साथ चलो।' यह कहकर वे उसे पास बहती नदी के किनारे ले गए। वहां पहुंचकर संत ने कहा, 'हमें ये नदी पार करनी है।'इतना कहकर वे वहीं खड़े हो गए।
कुछ देर तक दोनों चुपचाप खड़े रहे। फिर उस व्यक्ति ने संत से पूछा, 'गुरुदेव, हम खड़े क्यों हैं? अगर नदी पार करनी है तो आगे बढ़ना चाहिए न?' संत ने बड़ी शांति से कहा, 'हम इंतजार कर रहे हैं कि ये नदी सूख जाए। जब पानी सूख जाएगा, तब हम इसे आसानी से पार कर लेंगे।'
उस व्यक्ति को संत की बात अजीब लगी। उसने थोड़े हैरान होकर पूछा, 'गुरुदेव, ये कैसे संभव है? नदी तो यूं ही बहती रहती है। इसका पानी खुद-ब-खुद कैसे सूखेगा?'
संत मुस्कराए और बोले, 'यही बात तो मैं तुम्हें समझाना चाहता हूं। जीवन की परेशानियां भी इस नदी की तरह हैं। अगर तुम यह सोचते रहोगे कि जब सारी समस्याएं खुद-ब-खुद खत्म होंगी, तब जीवन में आगे बढ़ोगे, तो फिर तुम कभी आगे नहीं बढ़ पाओगे। जैसे यह नदी बिना पार किए पार नहीं होती, वैसे ही जीवन की बाधाएं बिना हिम्मत के खत्म नहीं होतीं।'
उन्होंने आगे कहा, 'हर समस्या के बीच से रास्ता निकालकर चलना ही असली जीवन है। अगर तुम खड़े रहोगे, तो हर बार एक नई मुश्किल तुम्हें रोक देगी। लेकिन अगर तुम चलते रहोगे, तो धीरे-धीरे रास्ते भी बनेंगे और समाधान भी मिलते जाएंगे।'
संत की बातें व्यक्ति के दिल में उतर गईं। उसने महसूस किया कि अब तक वह सिर्फ बैठकर अपनी किस्मत को कोसता रहा और समाधान का इंतजार करता रहा। लेकिन आज उसे समझ में आया कि ज़िंदगी को बदलने के लिए रुकना नहीं, चलना ज़रूरी है। उस दिन से उसकी सोच ही नहीं, उसका जीवन भी बदल गया।
अब वह हर चुनौती को हिम्मत से स्वीकार करता, हर मुश्किल का डटकर सामना करता और रुकने के बजाय एक-एक कदम आगे बढ़ता। उसका जीवन भले पूरी तरह समस्याओं से मुक्त न हो पाया हो, लेकिन अब वह परेशानियों के आगे झुकता नहीं था।
यह छोटी सी कथा हमें भी यही सिखाती है कि मुश्किलें जीवन का हिस्सा हैं। उन्हें देखकर रुक जाना ही असली हार है। अगर हम सोचते रहें कि पहले सब कुछ आसान हो जाए, तभी कुछ करेंगे, तो फिर ज़िंदगी वहीं रुक जाएगी। लेकिन अगर हम हिम्मत से कदम आगे बढ़ाएं, तो रास्ते खुद बनते जाएंगे।
जैसे बहती नदी का पानी कभी नहीं रुकता, वैसे ही हमारी कोशिशें भी लगातार बहती रहनी चाहिए। मंज़िल दूर सही, लेकिन चलने से ही पहुंचेगी। इसलिए याद रखिए – परेशानियों से डरिए मत, उनका सामना कीजिए। रुकिए मत, चलते रहिए… क्योंकि सफर वहीं खत्म होता है, जहां हम रुक जाते हैं।