ट्रंप ने भारत पर रूस से तेल खरीदने को लेकर टैरिफ लगाया, लेकिन उनके कार्यकाल में अमेरिका-रूस व्यापार 20% बढ़ा। पुतिन के खुलासे से अमेरिका के दोहरे रवैये पर सवाल उठे।
US India Trade: अमेरिका और भारत के रिश्तों में खटास का कारण बना राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का टैरिफ फैसला। भारत पर रूस से तेल खरीदने को लेकर दबाव डाला गया, लेकिन ट्रंप कार्यकाल में अमेरिका-रूस व्यापार 20% बढ़ा। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भी इसकी पुष्टि की। भारत ने इस कदम को अनुचित करार दिया।
अमेरिका-भारत संबंधों में खटास की वजह
पिछले कुछ दिनों से अमेरिका और भारत के बीच संबंधों में तनाव देखने को मिला है। इसकी मुख्य वजह अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का टैरिफ फरमान है। ट्रंप ने भारत पर 50% टैरिफ लगाने की घोषणा की। इसका कारण यह बताया गया कि भारत रूस से तेल खरीद रहा है और इससे यूक्रेन युद्ध में रूस को मदद मिल रही है।
भारत का मानना है कि यह फैसला पूरी तरह से राजनीतिक दबाव बनाने की कोशिश है। क्योंकि ऊर्जा सुरक्षा के लिए भारत को कई देशों से आयात करना पड़ता है।
ट्रंप का बयान और दोहरा रवैया
जहां एक तरफ भारत पर रूस से व्यापार करने को लेकर सख्ती दिखाई जा रही है, वहीं दूसरी ओर ट्रंप ने खुद यह स्वीकार किया कि उनके कार्यकाल में अमेरिका और रूस का व्यापार 20% बढ़ा।
15 अगस्त को ट्रंप ने कहा कि उनके दूसरे कार्यकाल के दौरान अमेरिका-रूस व्यापार में तेज वृद्धि दर्ज की गई। इसे "Trump 2.0" की उपलब्धि के रूप में पेश किया गया।
यानी भारत को दबाव में लाने की कोशिश की गई, लेकिन अमेरिका खुद रूस से आर्थिक रिश्ते मजबूत कर रहा था। यही अमेरिका का दोहरा रवैया है, जिस पर सवाल खड़े हो रहे हैं।
पुतिन का सीधा हमला
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भी इस पूरे मामले पर चुप्पी तोड़ी। अलास्का में शिखर सम्मेलन के दौरान उन्होंने कहा कि अमेरिका और रूस का द्विपक्षीय व्यापार 20% की दर से बढ़ा है। यह शुरुआत भले ही प्रतीकात्मक हो, लेकिन इसमें संभावनाएं अपार हैं। पुतिन ने आगे कहा कि निवेश, व्यापार, डिजिटल सेक्टर, हाई-टेक्नोलॉजी और अंतरिक्ष अन्वेषण जैसे क्षेत्रों में अमेरिका और रूस के बीच सहयोग की बड़ी संभावनाएं मौजूद हैं।
भारत की नाराजगी और विदेश मंत्रालय की प्रतिक्रिया
भारत ने अमेरिका के इस कदम पर नाराजगी जताई। विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यह निर्णय अनुचित है। भारत ने दो टूक कहा कि ऊर्जा सुरक्षा हर देश का अधिकार है और उसे अपनी आवश्यकताओं के अनुसार फैसले लेने का अधिकार है।
मंत्रालय ने अमेरिका के दोहरे मापदंड पर सवाल उठाते हुए कहा कि चीन और यूरोपीय संघ जैसे देश भारी मात्रा में रूस से तेल का आयात कर रहे हैं। लेकिन उन्हें किसी भी तरह का दंड नहीं झेलना पड़ा। इसके विपरीत भारत को अतिरिक्त टैरिफ का सामना करना पड़ा है।
प्रियंका चतुर्वेदी का बयान
शिवसेना (UBT) सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने भी सोशल मीडिया पर अमेरिका के रवैये की आलोचना की। उन्होंने लिखा कि पुतिन के अनुसार अमेरिका-रूस द्विपक्षीय गैस व्यापार में 20% की वृद्धि हुई है।
उन्होंने आंकड़े भी साझा किए। रूस के निर्यात बाजार में चीन की हिस्सेदारी 32% है जबकि यूरोपीय संघ की 62%। 2024 में यूरोपीय संघ का LNG आयात रूस से रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच जाएगा। यानी वास्तविक दबाव भारत पर बनाया जा रहा है जबकि बड़े देश बिना किसी रुकावट के रूस से कारोबार कर रहे हैं।
ग्लोबल एनर्जी मार्केट और भारत की स्थिति
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ऊर्जा आयातक है। बढ़ती आबादी और विकास की जरूरतों को पूरा करने के लिए भारत को सस्ती ऊर्जा की तलाश करनी पड़ती है। रूस से आयात भारत के लिए सिर्फ सस्ता विकल्प ही नहीं बल्कि स्थिर ऊर्जा आपूर्ति का भी स्रोत है।