अमेरिका द्वारा भारतीय निर्यात पर 50% शुल्क लगाने के बाद प्रमुख निर्यात संगठनों ने RBI से राहत, ऋण स्थगन और प्राथमिकता क्षेत्र में ऋण बढ़ाने की मांग की है। निर्यातक चाहते हैं कि कर्ज की देय तिथियों में ढील दी जाए और बैंकिंग समर्थन बढ़ाया जाए, ताकि अमेरिकी शुल्क के असर को कम किया जा सके।
U.S. Tariff: भारत के प्रमुख निर्यातक संगठन आज RBI के वरिष्ठ अधिकारियों से मिले और अमेरिका द्वारा भारतीय निर्यात पर 50% शुल्क लगाने के बाद राहत की मांग की। निर्यातकों ने ऋण भुगतान पर स्थगन, एनपीए मानदंडों में ढील और प्राथमिकता क्षेत्र में ऋण बढ़ाने का आग्रह किया। बैठक में फियो, सीआईआई, फिक्की, एसोचैम और महाराष्ट्र चैंबर ऑफ कॉमर्स जैसी संस्थाएं शामिल थीं। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बताया कि सरकार निर्यातकों के समर्थन के लिए व्यापक पैकेज तैयार कर रही है।
निर्यातकों की मुख्य मांगें
निर्यातकों ने RBI से मांग की है कि वे ऋण भुगतान पर मॉरेटोरियम यानी स्थगन की सुविधा दें। इसके अलावा उन्होंने गैर-निष्पादित आस्तियों (एनपीए) के नियमों में ढील देने और बिना जुर्माना देय तिथि को आगे बढ़ाने का अनुरोध किया। निर्यातक संगठन यह भी चाहते हैं कि प्राथमिकता वाले ऋण क्षेत्र में एक उप-श्रेणी बनाई जाए ताकि निर्यातकों को अधिक ऋण उपलब्ध कराया जा सके।
अजय सहाय, फियो के महानिदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी, ने बताया कि निर्यातक मुख्य रूप से दो मांग कर रहे हैं। पहला, अमेरिकी शुल्क के असर से राहत और दूसरा, बैंकिंग संबंधित मुद्दों का समाधान। उन्होंने कहा कि अमेरिकी बाजार में निर्यात करने वाले कंपनियों के लिए एक वर्ष तक ऋण भुगतान पर रोक और एनपीए मानदंडों में ढील अत्यंत जरूरी है।
प्राथमिकता वाले ऋण क्षेत्र में सुधार की जरूरत
निर्यातकों ने RBI से आग्रह किया है कि प्राथमिकता वाले ऋण क्षेत्र के अंतर्गत एक उप-श्रेणी बनाकर निर्यात क्षेत्र को ज्यादा ऋण उपलब्ध कराया जाए। देश के सकल घरेलू उत्पाद में निर्यात का हिस्सा 20 फीसदी से अधिक है, लेकिन बैंकिंग ऋण का आवंटन निर्यातकों के लिए पर्याप्त नहीं है। इस वजह से निर्यातक बैंकों से अधिक सहायता की मांग कर रहे हैं।
भारतीय इंजीनियरिंग निर्यात संवर्धन परिषद के चेयरमैन पंकज चड्ढा ने कहा कि परिषद ने केंद्रीय बैंक से एमएसएमई के लिए ब्याज अनुदान योजना की मांग की है। इसका उद्देश्य छोटे और मझोले निर्यातकों को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में टिकाऊ बनाए रखना है।
बैठक में उठाए गए अन्य मुद्दे
बैठक में फियो, सीआईआई, फिक्की, एसोचैम, महाराष्ट्र चैंबर ऑफ कॉमर्स और इंडस्ट्री ऐंड एग्रीकल्चर आदि शामिल थे। चर्चा के दौरान यह चिंता भी व्यक्त की गई कि वर्तमान विनिमय दर का असर निर्यातकों को लाभ नहीं पहुंचा रहा है। डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर हुआ है, लेकिन अन्य मुद्राओं में भी नरमी आई है। इसका मतलब है कि निर्यातकों को कोई वास्तविक लाभ नहीं हो रहा है।
साथ ही मौजूदा भू-राजनीतिक स्थिति निर्यातकों के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो रही है। इस समय वैश्विक बाजार में अस्थिरता, आपूर्ति श्रृंखला की समस्याएं और अमेरिकी शुल्क ने निर्यातक कंपनियों की मार बढ़ा दी है।
RBI और सरकार का समर्थन
आरबीआई ने निर्यातकों की बात गंभीरता से सुनी, लेकिन फिलहाल किसी विशेष कार्रवाई की प्रतिबद्धता नहीं जताई। पिछले महीने आरबीआई के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने कहा था कि अगर अमेरिकी शुल्क के कारण घरेलू अर्थव्यवस्था की वृद्धि प्रभावित होती है तो केंद्रीय बैंक आवश्यक उपाय कर सकता है।
वहीं, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि सरकार भारतीय निर्यातकों को समर्थन देने के लिए व्यापक पैकेज तैयार कर रही है। इस पैकेज में वित्तीय राहत, बैंकिंग समर्थन और अन्य आवश्यक उपाय शामिल हो सकते हैं।
निर्यातक संगठन क्या चाहते हैं
निर्यातक संगठन चाहते हैं कि अमेरिकी शुल्क के असर को कम करने के लिए बैंकिंग प्रणाली में तुरंत सुधार किए जाएं। इसके तहत ऋण स्थगन, एनपीए मानदंडों में ढील और प्राथमिकता क्षेत्र में अधिक ऋण जैसी सुविधाएं शामिल हैं। निर्यातक संगठन यह भी चाहते हैं कि RBI रुपये के विनिमय दर में किसी तरह का हस्तक्षेप न करे ताकि डॉलर के मुकाबले कमजोरी से कुछ राहत मिल सके।