अमेरिका द्वारा आयात शुल्क 50% तक बढ़ाने की तैयारी से भारतीय निर्यातकों पर दबाव बढ़ गया है। समय पर डिलीवरी के लिए कंपनियां समुद्री मार्ग के बजाय महंगा हवाई मालवाहक विकल्प चुन रही हैं। समुद्री भाड़ा दरों में 15% तक वृद्धि दर्ज की गई है, जबकि सरकार हालात पर नजर रखते हुए राहत पैकेज पर विचार कर रही है।
नई दिल्ली: अमेरिका में जल्द लागू होने वाली 50% टैरिफ बढ़ोतरी ने भारतीय निर्यातकों की नींद उड़ा दी है। समुद्री मार्ग से अमेरिका तक माल पहुंचाने में 40 से 45 दिन लगते हैं, इसलिए समय सीमा से पहले ऑर्डर डिलीवर करना मुश्किल हो सकता है। इस वजह से कई कंपनियां अब हवाई मार्ग से माल भेजने का फैसला कर रही हैं, भले ही इसकी लागत कहीं अधिक हो।
फेडरेशन ऑफ फ्रेट फॉरवर्डर्स’ एसोसिएशन के चेयरमैन दुश्यंत मुलानी के अनुसार, समुद्री मार्ग से भेजा गया माल समय पर नहीं पहुंच पाएगा और बढ़े हुए शुल्क से बचना कठिन होगा। ऐसे में जरूरी ऑर्डर को समय पर डिलीवर करने के लिए एयर कार्गो का सहारा लिया जा रहा है।
समुद्री भाड़ा बढ़ा, हवाई मार्ग पर दबाव
मुलानी का कहना है कि अमेरिकी शुल्क वृद्धि की आशंका ने समुद्री भाड़ा दरों को 5-10% तक बढ़ा दिया है। वहीं, फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गेनाइजेशंस (FIEO) के महानिदेशक अजय सहाई बताते हैं कि हवाई मार्ग से भेजा गया माल ही 25% शुल्क पर समय पर क्लीयर हो सकेगा, जबकि समुद्री मार्ग से भेजा गया माल बढ़े हुए शुल्क के दायरे में आ सकता है।
दवा और इलेक्ट्रॉनिक्स को अस्थायी राहत
हालांकि दवा और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे बड़े निर्यात क्षेत्रों पर फिलहाल इस बढ़ोतरी का असर नहीं पड़ा है। मुलानी का कहना है कि स्थिति अगले 6 से 12 महीनों तक अस्थिर रह सकती है और कंपनियों को रणनीतिक फैसले लेने होंगे। सरकार और बंदरगाह प्राधिकरण कई प्रमुख पोर्ट्स और एयर कार्गो टर्मिनलों पर गतिविधियों की बारीकी से निगरानी कर रहे हैं।
भाड़ा दरों में तेज उछाल, लागत बढ़ी
इंजीनियरिंग एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (EEPC) के चेयरमैन पंकज चड्ढा के अनुसार, अमेरिका के ईस्ट कोस्ट के लिए समुद्री भाड़ा दरें अब 2,400–2,600 डॉलर तक पहुंच गई हैं, जबकि वेस्ट कोस्ट के लिए ये दरें 2,100–2,300 डॉलर हो गई हैं।
उदाहरण के तौर पर, मुंबई से सवाना तक 20 फुट कंटेनर का भाड़ा पहले 1,700 डॉलर था, जो अब 2,000 डॉलर हो गया है— यानी लगभग 15% की वृद्धि। बढ़ते परिवहन खर्च ने निर्यातकों की लागत पर सीधा असर डाला है।
वैकल्पिक बाजारों की तलाश
लंबे समय तक टैरिफ विवाद जारी रहने की आशंका में कई भारतीय निर्यातक नए और वैकल्पिक बाजारों की तलाश में जुट गए हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर अमेरिका के साथ यह शुल्क विवाद लंबा खिंचता है, तो भारत को यूरोप, मध्य पूर्व और एशिया के अन्य हिस्सों में अपने निर्यात को बढ़ाने पर जोर देना होगा।
सरकार इस पूरे मामले पर कूटनीतिक और आर्थिक स्तर पर नजर बनाए हुए है। मुलानी ने संकेत दिए हैं कि सरकार एक हफ्ते के भीतर निर्यातकों के लिए दीर्घकालिक राहत पैकेज ला सकती है। इसमें समुद्री और हवाई मालवाहन के लिए सब्सिडी, टैरिफ दरों में छूट और नए बाजारों के लिए प्रोत्साहन जैसे उपाय शामिल हो सकते हैं।
अमेरिका के साथ व्यापार संतुलन बनाए रखना भारत के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि समय रहते उठाए गए कदम भारतीय निर्यात उद्योग को बड़े नुकसान से बचा सकते हैं।