मुस्लिम समुदाय में आम अभिवादन अस्सलामु अलैकुम का अर्थ है आप पर शांति हो। यह केवल शिष्टाचार नहीं, बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है। मुसलमान इसे रोजमर्रा की जिंदगी में प्यार, सुरक्षा और भाईचारे को बढ़ावा देने के लिए उपयोग करते हैं और इसका जवाब व अलैकुम अस्सलाम होता है।
अस्सलामु अलैकुम का अर्थ: मुसलमान अस्सलामु अलैकुम का अर्थ है आप पर शांति हो और यह अभिवादन इस्लाम में सम्मान, भाईचारा और सुरक्षा का प्रतीक माना जाता है। दुनिया भर में मुस्लिम समाज में यह शब्द हर मुलाकात में प्रयोग किया जाता है, चाहे वह घर, स्कूल, बाजार या कार्यालय हो। पैगंबर मुहम्मद के समय से चली आ रही यह परंपरा लोगों के बीच सकारात्मक भावनाएं और समुदाय की एकता बढ़ाती है। इसका जवाब व अलैकुम अस्सलाम कहा जाता है, जो सामने वाले के लिए भी शुभकामना व्यक्त करता है।
अभिवादन के पीछे का अर्थ
अस्सलामु अलैकुम एक अरबी शब्द है, जिसमें अस्सलाम का अर्थ है शांति और अलेकुम का अर्थ है आप पर। जब कोई इसे कहता है, तो वह न सिर्फ मिलनसार व्यवहार दिखाता है, बल्कि सामने वाले के लिए अल्लाह से शांति, सुरक्षा और आशीर्वाद की कामना भी करता है।
यह अभिवादन मुसलमानों के बीच सामुदायिक एकता को बढ़ाता है। यह याद दिलाता है कि प्रत्येक व्यक्ति केवल व्यक्तिगत नहीं है, बल्कि एक बड़े समुदाय का हिस्सा है। इसी कारण मुसलमान इसे रोजमर्रा की जिंदगी में एक दूसरे से मिलने पर इस्तेमाल करते हैं।
जवाब में क्या कहते हैं?
अस्सलामु अलैकुम का जवाब होता है व अलैकुम अस्सलाम, जिसका अर्थ है और आप पर भी शांति हो। यह जवाब न केवल सम्मान और आदर व्यक्त करता है, बल्कि सामने वाले के प्रति शुभकामनाओं और सुरक्षा की प्रार्थना को भी दोहराता है।
इस तरह का आदान-प्रदान मुसलमानों के बीच सकारात्मक भावनाओं, शांति और भाईचारे को बढ़ावा देता है।
सामाजिक महत्व
इस्लाम में अभिवादन का विशेष महत्व है। कुरान और हदीस में भी इस पर जोर दिया गया है। पैगंबर मुहम्मद ने लोगों को हमेशा शांति और सद्भाव फैलाने का संदेश दिया। मुसलमानों के लिए यह केवल शब्द नहीं, बल्कि एक धार्मिक कर्तव्य भी है।
- शांति और सुरक्षा की कामना: अस्सलामु अलैकुम कहने वाले व्यक्ति अपने साथी के लिए अल्लाह से शांति और सुरक्षा की प्रार्थना करता है। यह न केवल आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी दूसरों के प्रति मित्रता और सम्मान दिखाता है।
- एकता और भाईचारा: मुसलमानों के बीच इस अभिवादन का प्रयोग समुदाय के भीतर एकता को बढ़ावा देता है। यह याद दिलाता है कि सभी सदस्य एक समान हैं और किसी के प्रति भेदभाव नहीं करना चाहिए।
- सम्मान और शिष्टाचार: मुसलमान और गैर-मुसलमान दोनों के साथ बातचीत में यह अभिवादन सम्मान और शिष्टाचार का प्रतीक है। किसी से मिलने पर अस्सलामु अलैकुम कहना यह दिखाता है कि आप शांति, मित्रता और सद्भाव के साथ पेश आते हैं।
इतिहास और उत्पत्ति
अस्सलामु अलैकुम का प्रयोग पैगंबर मुहम्मद के समय से होता आ रहा है। उन्होंने इसे मुसलमानों में सद्भावना और शांति का संदेश फैलाने के तरीके के रूप में शुरू किया। इसके माध्यम से उन्होंने समुदाय में आपसी भाईचारा, सम्मान और सहयोग की भावना मजबूत की।
कुरान में भी इसे महत्वपूर्ण माना गया है। यह सिर्फ अभिवादन नहीं है, बल्कि एक प्रार्थना और आशीर्वाद का तरीका है। इसका उपयोग दैनिक जीवन में यह सुनिश्चित करता है कि हर मुलाकात में सकारात्मक ऊर्जा और शुभकामनाएं जुड़ी हों।
रोजमर्रा की जिंदगी में उपयोग
मुस्लिम समाज में यह अभिवादन हर जगह देखा जा सकता है चाहे यह स्कूल, घर, बाजार या कार्यस्थल हो। हर मुलाकात पर अस्सलामु अलैकुम कहना यह दर्शाता है कि आप सामने वाले की भलाई और सुरक्षा की चिंता करते हैं।
- समाजिक मेल-जोल: इस अभिवादन का इस्तेमाल मित्रों, रिश्तेदारों और परिचितों के बीच सामुदायिक संबंध मजबूत करने के लिए किया जाता है।
- व्यवसायिक और सार्वजनिक जीवन: ऑफिस, दुकान या सार्वजनिक स्थान पर भी मुसलमान अस्सलामु अलैकुम कहते हैं। यह व्यवसायिक या सार्वजनिक वातावरण में सम्मान और शिष्टाचार का संदेश देता है।
- अजनबियों के साथ व्यवहार: मुसलमान इसे अजनबियों के साथ भी इस्तेमाल करते हैं। इसका उद्देश्य केवल अभिवादन करना नहीं, बल्कि सामने वाले के प्रति सकारात्मक भावनाओं और सुरक्षा की कामना व्यक्त करना है।
अंतरराष्ट्रीय दृष्टि से महत्व
इस अभिवादन का प्रयोग केवल मुस्लिम देशों तक सीमित नहीं है। दुनिया भर में मुसलमान इसका प्रयोग करते हैं। यह एक ऐसा तरीका है जिससे मुस्लिम समुदाय की पहचान और संस्कृति वैश्विक स्तर पर पहचानी जाती है।
यह अभिवादन लोगों को यह भी याद दिलाता है कि शांति और प्रेम सार्वभौमिक मूल्य हैं, और हर मुलाकात में इनका महत्व होना चाहिए।