भारतीय मुक्केबाजी महासंघ (BFI) में लंबे समय से चल रहे विवाद और कानूनी लड़ाई के बीच आखिरकार चुनाव संपन्न हुए। गुरुवार को हुए इस अहम मुकाबले में निवर्तमान अध्यक्ष अजय सिंह ने अपने प्रतिद्वंदी जसलाल प्रधान को हराकर लगातार तीसरी बार बीएफआई के अध्यक्ष पद पर कब्जा जमाया।
स्पोर्ट्स न्यूज़: भारतीय मुक्केबाजी महासंघ (BFI) में लंबे समय से चला आ रहा विवाद अब थमता दिख रहा है। निवर्तमान अध्यक्ष अजय सिंह लगातार तीसरी बार महासंघ के प्रमुख चुन लिए गए हैं। लंबे समय से टलते आ रहे बीएफआई चुनाव गुरुवार को हुए, जिसमें अजय सिंह ने जसलाल प्रधान को हराकर अपनी कुर्सी बरकरार रखी।
इन चुनावों पर कानूनी लड़ाई के चलते पिछले छह महीने से अधिक समय तक रोक लगी हुई थी। मतदान की प्रक्रिया निर्वाचन अधिकारी राजेश टंडन और बीएफआई की अंतरिम समिति के प्रमुख, सिंगापुर के फैरूज मोहम्मद की मौजूदगी में संपन्न हुई। फैरूज मोहम्मद को विश्व मुक्केबाजी ने पर्यवेक्षक के तौर पर नियुक्त किया था।
कानूनी अड़चनों और अपीलों के कारण टलते आ रहे थे चुनाव
बीएफआई चुनाव बीते छह महीने से अधिक समय से कानूनी अड़चनों और अपीलों के कारण टलते आ रहे थे। अंततः ये चुनाव निर्वाचन अधिकारी राजेश टंडन और बीएफआई की अंतरिम समिति के प्रमुख, सिंगापुर के फैरूज मोहम्मद की मौजूदगी में संपन्न हुए। फैरूज को विश्व मुक्केबाजी (World Boxing) ने पर्यवेक्षक के तौर पर भेजा था।
हालांकि, विश्व मुक्केबाजी के अध्यक्ष बोरिस वान डेर वोर्स्ट और महासचिव माइक मैकएटी को भी पर्यवेक्षक के रूप में मौजूद रहना था, लेकिन उन्होंने इस प्रक्रिया में भाग नहीं लिया। यही नहीं, भारत सरकार के खेल मंत्रालय और भारतीय ओलंपिक संघ (IOA) ने भी चुनाव के लिए कोई प्रतिनिधि नहीं भेजा। इसके बावजूद चुनाव प्रक्रिया निर्विघ्न पूरी की गई।
महासचिव और कोषाध्यक्ष का चुनाव
इस चुनाव में उत्तर प्रदेश के प्रमोद कुमार को बीएफआई का नया महासचिव चुना गया। उन्होंने असम के हेमंता कलीता की जगह ली। कलीता लगातार दो कार्यकाल पूरे करने के कारण चुनाव लड़ने के पात्र नहीं थे, क्योंकि बीएफआई के नियमों के अनुसार लगातार दो बार कार्यकाल पूरा करने वाले पदाधिकारी को एक अनिवार्य विश्राम अवधि लेनी होती है।
कोषाध्यक्ष पद पर तमिलनाडु के पोन भास्करन को चुना गया। इस नए नेतृत्व के साथ बीएफआई के प्रशासनिक कामकाज को एक नई दिशा मिलने की उम्मीद की जा रही है। हालांकि चुनाव परिणाम घोषित हो चुके हैं, लेकिन उनका भविष्य अभी भी दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले पर निर्भर करेगा। कई प्रदेश इकाइयों ने बीएफआई की अंतरिम समिति द्वारा किए गए संवैधानिक संशोधनों को चुनौती दी थी।
यही कारण था कि चुनाव पहले 28 मार्च को होने थे, लेकिन कानूनी अड़चनों और याचिकाओं के चलते बार-बार स्थगित होते गए। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि अदालत का अंतिम निर्णय इन चुनावों की वैधता को कैसे प्रभावित करता है।