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CAA पर असम CM का बयान: 2015 से पहले आए गैर-मुस्लिम प्रवासियों पर केस खत्म नहीं होंगे

CAA पर असम CM का बयान: 2015 से पहले आए गैर-मुस्लिम प्रवासियों पर केस खत्म नहीं होंगे

असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने स्पष्ट किया कि 2015 से पहले आए गैर-मुस्लिम प्रवासियों के केस खत्म करने का कोई नया आदेश नहीं है। CAA के तहत इन्हें पहले से कानूनी संरक्षण मिला हुआ है। राज्य सरकार ने नागरिकता आवेदन को प्रोत्साहित जरूर किया है, लेकिन विदेशी न्यायाधिकरणों में लंबित केसों को खत्म नहीं किया जाएगा।

असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने नागरिकता संशोधन कानून (CAA) को लेकर एक महत्वपूर्ण बयान देते हुए स्पष्ट किया है कि राज्य सरकार ने 2015 से पहले राज्य में आए गैर-मुस्लिम अवैध प्रवासियों के खिलाफ विदेशी न्यायाधिकरणों में चल रहे मामलों को समाप्त करने का कोई विशेष आदेश नहीं दिया है। उन्होंने कहा कि CAA पहले से ही ऐसे प्रवासियों को कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है, अतः किसी अतिरिक्त फैसले की आवश्यकता नहीं है।

CAA के तहत ही मिल रहा है संरक्षण

मुख्यमंत्री सरमा ने बताया कि नागरिकता संशोधन कानून (CAA), जो 2019 में संसद द्वारा पारित हुआ था, पहले से ही 31 दिसंबर 2014 तक भारत में आए हिंदू, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन और पारसी समुदाय के लोगों को सुरक्षा प्रदान करता है। ऐसे में राज्य सरकार को अलग से कोई नया निर्देश जारी करने की ज़रूरत नहीं है।  उनके अनुसार, 'CAA देश का कानून है। जब तक सुप्रीम कोर्ट इस कानून को रद्द नहीं करता, यह पूरी तरह वैध और लागू रहेगा। कोई नया निर्णय नहीं लिया गया है और अगर लिया जाता, तो मैं स्वयं मीडिया को इसकी जानकारी देता।'

जुलाई 2023 का निर्देश: CAA के तहत आवेदन को बढ़ावा

हालाँकि एक सरकारी दस्तावेज़ के अनुसार, 22 जुलाई 2023 को गृह और राजनीतिक विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव अजय तेवरी द्वारा सभी जिलों के उपायुक्तों और पुलिस अधीक्षकों को एक निर्देश भेजा गया था। इसमें कहा गया था कि वे 2015 से पहले असम में आए पाकिस्तानी, बांग्लादेशी और रोहिंग्या जैसे गैर-मुस्लिम प्रवासियों के मामलों की समीक्षा करें और उन्हें CAA के अंतर्गत नागरिकता आवेदन के लिए प्रोत्साहित करें। 

इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि योग्य प्रवासी नागरिकता के लिए आवेदन कर सकें, बजाय इसके कि वे विदेशी न्यायाधिकरणों के जटिल कानूनी प्रक्रिया में उलझे रहें।

कानूनी प्रक्रिया: न्यायाधिकरण की भूमिका अहम

असम में नागरिकता और अवैध प्रवास का मुद्दा वर्षों से संवेदनशील रहा है। राज्य में Foreigners Tribunals ही यह निर्णय लेने के लिए अधिकृत हैं कि कोई व्यक्ति भारतीय नागरिक है या विदेशी। इन न्यायाधिकरणों के फैसलों को उच्च न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है।

इस व्यवस्था को देखते हुए, मुख्यमंत्री का यह स्पष्ट करना ज़रूरी था कि सिर्फ CAA के अस्तित्व से विदेशी न्यायाधिकरणों में लंबित मामलों पर कोई स्वतः प्रभाव नहीं पड़ेगा। जब तक कानूनी प्रक्रिया पूरी नहीं होती, तब तक मामलों को समाप्त नहीं किया जा सकता।

कोच-राजबोंग्शी और गोरखा समुदायों के लिए राहत

मुख्यमंत्री सरमा ने बताया कि हाल की कैबिनेट बैठक में दो विशेष समुदायों के मामलों पर निर्णय लिया गया है।

  1. कोच-राजबोंग्शी समुदाय
  2. गोरखा समुदाय

इन समुदायों से संबंधित कई लोगों को भी अवैध प्रवासी मानते हुए विदेशी न्यायाधिकरणों में घसीटा गया था। कैबिनेट के निर्णय के अनुसार, इन मामलों को वापिस लेने या समाप्त करने की प्रक्रिया शुरू की जा रही है।

CAA की व्यापक व्याख्या और इसके प्रभाव

CAA, 2019 के अनुसार, पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से धार्मिक उत्पीड़न के कारण भारत आए गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है, बशर्ते उन्होंने कम से कम 5 वर्ष भारत में निवास किया हो। यह कानून विशेष रूप से उन लोगों को राहत देने के लिए लाया गया था जो लंबे समय से भारत में रह रहे हैं लेकिन कानूनी रूप से नागरिक नहीं बन पाए हैं। हालाँकि, यह कानून सिर्फ नागरिकता देने की प्रक्रिया को सरल करता है, लेकिन यह लंबित मामलों को समाप्त करने का अधिकार नहीं देता, जब तक कि कानूनी प्रक्रिया पूर्ण न हो।

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