चीन के प्रस्तावित मेगा बांध के कारण भारत-चीन के बीच तनाव बढ़ सकता है। रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, इस बांध से सूखे मौसम में प्रमुख नदी में जल प्रवाह 85% तक घट सकता है। भारत ने इसके असर को कम करने के लिए अपने बांध निर्माण की योजनाओं में तेजी ला दी है। चीन ने इस प्रोजेक्ट को सुरक्षित और पर्यावरण के अनुकूल बताया है।
India-China: चीन ने तिब्बत में Yarlung Zangbo नदी पर दुनिया का सबसे बड़ा हाइड्रोपावर बांध बनाने की योजना घोषित की है, जिससे भारत-चीन के बीच तनाव बढ़ने की संभावना है। रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, बांध के निर्माण से सूखे मौसम में नदी का जल प्रवाह 85% तक घट सकता है। भारत इस असर को कम करने के लिए अपने बांध परियोजनाओं में तेजी ला रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यालय में उच्च अधिकारियों ने भी इस साल निर्माण की गति बढ़ाने पर चर्चा की। चीन ने इस प्रोजेक्ट को सुरक्षित और पर्यावरण के अनुकूल बताते हुए कहा कि इसका निचले देशों पर प्रतिकूल असर नहीं होगा।
भारत चीन के बांध को लेकर चिंतित
रॉयटर्स के सूत्रों के मुताबिक, भारत इस बांध को लेकर चिंतित है। चीन का यह प्रोजेक्ट न केवल जल प्रवाह को प्रभावित करेगा, बल्कि रणनीतिक रूप से भी भारत के लिए चुनौती पेश कर सकता है। इसके प्रभाव को कम करने के लिए भारत ने अपने जल संसाधनों और बांध परियोजनाओं की योजना को तेजी से आगे बढ़ाया है।
2000 के दशक से भारत सरकार Angsi Glacier से निकलने वाले पानी के प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए परियोजनाओं पर विचार कर रही है। यह क्षेत्र चीन, भारत और बांग्लादेश में लगभग 10 करोड़ लोगों के लिए जल का आधार है। हालांकि, अरुणाचल प्रदेश के निवासियों के विरोध और सुरक्षा चिंताओं के कारण परियोजनाओं में देरी हुई है।
चीन का सबसे बड़ा हाइड्रोपावर बांध
दिसंबर 2025 में चीन ने घोषणा की कि वह यारलुंग zangbo नदी के भारत में प्रवेश करने से पहले एक सीमावर्ती क्षेत्र में दुनिया का सबसे बड़ा हाइड्रोपावर बांध बनाएगा। इस कदम ने भारत में आशंका बढ़ा दी है कि चीन इस नदी पर अपने नियंत्रण के माध्यम से रणनीतिक लाभ ले सकता है।
सूत्रों के अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यालय में जुलाई में उच्चस्तरीय बैठक हुई, जिसमें वरिष्ठ अधिकारी इस साल निर्माण में तेजी लाने पर चर्चा कर रहे हैं। बैठक में यह भी चर्चा हुई कि भारत को इस परियोजना के प्रभाव का आकलन करके जल प्रबंधन की तैयारी करनी होगी।
छोटे किसान सबसे ज्यादा प्रभावित
रॉयटर्स की रिपोर्ट में बताया गया है कि चीन का यह बांध बीजिंग को 40 अरब घन मीटर पानी मोड़ने की अनुमति देगा। यह एक प्रमुख सीमा बिंदु पर सालाना प्राप्त होने वाले पानी का लगभग एक तिहाई है। नॉन मानसून महीनों में इसका असर और अधिक गंभीर हो सकता है, जब तापमान बढ़ता है और भारत के कई हिस्सों में जमीन बंजर हो जाती है।
इस जल प्रबंधन में कमी का असर विशेष रूप से कृषि और ग्रामीण इलाकों में पड़ेगा। छोटे और सीमांत किसान इस बदलाव के प्रभाव को सीधे अनुभव कर सकते हैं।
भारत-बांग्लादेश के साथ सहयोग
चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने रॉयटर्स के सवालों के जवाब में कहा कि हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट में सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण के लिए वैज्ञानिक रिसर्च की गई है। उन्होंने कहा कि यह परियोजना निचले देशों के जल संसाधनों, इकोलॉजी या भूगोल पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालेगी।
प्रवक्ता ने यह भी कहा कि चीन हमेशा सीमापार नदियों के विकास और इस्तेमाल के प्रति जिम्मेदार रहा है और भारत तथा बांग्लादेश के साथ लॉन्ग टर्म संचार और सहयोग बनाए रखा है।
भारत में जल सुरक्षा की तैयारी
भारत के लिए यह प्रोजेक्ट एक चुनौती है। देश को जल प्रवाह में संभावित कमी को ध्यान में रखते हुए अपनी बांध परियोजनाओं और जल प्रबंधन योजना को सक्रिय करना पड़ेगा। विशेषज्ञ मानते हैं कि लंबी अवधि में दोनों देशों के बीच जल साझा करने की नीति और संवाद ही तनाव को कम कर सकती है।
दिल्ली के जल विशेषज्ञों का कहना है कि चीन के बांध से भारत में नॉन मानसून के महीनों में जल संकट की संभावना बढ़ सकती है। इसलिए अब जल संरक्षण, सिंचाई प्रबंधन और बांध क्षमता बढ़ाने पर विशेष ध्यान देना होगा।