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डमी स्कूल और कोचिंग ट्रेंड पर शिक्षा मंत्रालय की सख्ती, गठित हुई जांच समिति

डमी स्कूल और कोचिंग ट्रेंड पर शिक्षा मंत्रालय की सख्ती, गठित हुई जांच समिति

आज के समय में एक नया ट्रेंड देखने को मिल रहा है, जहां बड़ी संख्या में छात्र पारंपरिक स्कूली शिक्षा को छोड़कर फुल टाइम कोचिंग संस्थानों का रुख कर रहे हैं।

भारत में शिक्षा का चेहरा बीते कुछ वर्षों में तेजी से बदला है। जहां एक ओर स्कूल शिक्षा को बच्चों के समग्र विकास का माध्यम माना जाता था, वहीं दूसरी ओर अब कोचिंग सेंटर शिक्षा का नया केंद्र बनते जा रहे हैं। खासतौर पर 9वीं से 12वीं कक्षा के छात्र प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए पारंपरिक स्कूलों से दूरी बनाकर फुल टाइम कोचिंग का रुख कर रहे हैं। इसी प्रवृत्ति ने डमी स्कूलों के चलन को जन्म दिया है, जहां छात्रों की उपस्थिति केवल नाममात्र होती है, असली पढ़ाई कोचिंग संस्थानों में होती है। इस बढ़ती प्रवृत्ति को गंभीरता से लेते हुए शिक्षा मंत्रालय ने जांच का निर्णय लिया है।

क्या हैं डमी स्कूल और क्यों हो रहे लोकप्रिय

डमी स्कूल ऐसे शैक्षणिक संस्थान होते हैं जो छात्रों को केवल औपचारिक तौर पर नामांकित रखते हैं ताकि वे बोर्ड परीक्षाओं में उपस्थित हो सकें, लेकिन उन्हें प्रतिदिन स्कूल जाने की आवश्यकता नहीं होती। छात्र अपना अधिकांश समय कोचिंग सेंटरों में बिताते हैं, जहां उन्हें जेईई, नीट जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं की गहन तैयारी कराई जाती है।

इन स्कूलों का चलन इसलिए बढ़ा क्योंकि स्कूलों की नियमित पढ़ाई और बोर्ड परीक्षा की तैयारी प्रतियोगी परीक्षाओं के पैटर्न से मेल नहीं खाती। छात्रों और अभिभावकों को लगता है कि कोचिंग सेंटरों में मिल रही विशेष रणनीति और टेस्ट सीरीज उन्हें बेहतर रिजल्ट दिला सकती है।

शिक्षा मंत्रालय की सख्ती

केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने डमी स्कूलों के बढ़ते प्रभाव, कोचिंग इंडस्ट्री की भूमिका और इसके दुष्प्रभावों की जांच के लिए एक उच्चस्तरीय समिति गठित की है। इस समिति में सीबीएसई के चेयरमैन, आईआईटी कानपुर, आईआईटी मद्रास जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों के प्रतिनिधि शामिल किए गए हैं। समिति को यह जांचने का निर्देश दिया गया है कि स्कूलों की कौन-कौन सी कमियां हैं, जिनके चलते छात्र कोचिंग पर निर्भर हो रहे हैं।

स्कूली शिक्षा बनाम कोचिंग: अंतर क्यों

आज का छात्र स्कूल से अपेक्षा करता है कि वह उसे प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए तैयार करे। लेकिन स्कूलों में रटने पर आधारित पढ़ाई, सीमित प्रैक्टिकल ज्ञान और एनालिटिकल स्किल की कमी छात्रों को निराश करती है। वहीं कोचिंग संस्थान तेज रफ्तार में सिलेबस पूरा कराते हैं, नियमित टेस्ट लेते हैं और बच्चों को मानसिक रूप से परीक्षा के लिए तैयार करते हैं।

समिति अब इस बात की पड़ताल करेगी कि क्या स्कूल शिक्षा में रचनात्मकता, विश्लेषणात्मक सोच और नवाचार के तत्व पर्याप्त रूप से शामिल किए जा रहे हैं या नहीं। साथ ही यह भी देखा जाएगा कि फॉर्मेटिव असेसमेंट के तहत छात्रों को कितनी समझ मिल रही है।

कोचिंग सेंटरों की विज्ञापन नीतियों पर सवाल

आज कोचिंग सेंटर अपने विज्ञापनों के जरिए छात्रों को प्रभावित करने का काम करते हैं। टॉपर्स की तस्वीरें, लाखों की छात्रवृत्ति, सीमित समय में सफलता के दावे – यह सब छात्रों और अभिभावकों को आकर्षित करता है। समिति को कोचिंग सेंटरों के इन गुमराह करने वाले विज्ञापनों की समीक्षा करने और इनके लिए दिशा-निर्देश सुझाने को कहा गया है।

विज्ञापन केवल चंद सफल छात्रों की कहानी बताते हैं, जबकि शेष हजारों छात्रों की असफलता और मनोवैज्ञानिक दबाव की चर्चा नहीं होती। यह भी एक बड़ा कारण है कि कई छात्र मानसिक तनाव, अवसाद और आत्महत्या जैसे गंभीर कदम उठा लेते हैं।

कोचिंग सेंटरों के लिए नियामक ढांचे की आवश्यकता

कोचिंग इंडस्ट्री देश में एक अनियंत्रित क्षेत्र बन चुका है। न तो इसके लिए कोई मानक निर्धारित हैं और न ही निगरानी की कोई ठोस व्यवस्था। संसदीय समिति ने हाल ही में सुझाव दिया कि शिक्षा मंत्रालय को एक राष्ट्रीय नीति बनानी चाहिए जो कोचिंग सेंटरों को विनियमित करे।

इस नीति में फीस स्ट्रक्चर, शैक्षणिक गुणवत्ता, मेंटल हेल्थ सपोर्ट और छात्र संरक्षण जैसे विषयों को शामिल किया जाना चाहिए। साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाए कि कोचिंग सेंटर पढ़ाई के अलावा छात्रों के समग्र विकास पर भी ध्यान दें।

सीटें कम, प्रतियोगिता ज्यादा

एक प्रमुख कारण जिसकी वजह से छात्र कोचिंग का सहारा लेते हैं, वह है सीमित सीटें और बढ़ती प्रतिस्पर्धा। जेईई और नीट जैसी परीक्षाओं में लाखों छात्र भाग लेते हैं, लेकिन सीटें कुछ ही हजार होती हैं। ऐसे में सफलता के लिए अतिरिक्त तैयारी जरूरी हो जाती है। शिक्षा मंत्रालय की समिति इस बात पर भी विचार कर रही है कि उच्च शिक्षण संस्थानों में सीटों की संख्या कैसे बढ़ाई जाए ताकि छात्रों पर से दबाव कम हो सके।

करियर गाइडेंस की भूमिका

आज भी कई स्कूलों में करियर काउंसलिंग या मार्गदर्शन की उचित व्यवस्था नहीं है। छात्र और अभिभावक केवल मेडिकल और इंजीनियरिंग को ही भविष्य मानते हैं। ऐसे में करियर गाइडेंस फ्रेमवर्क को मजबूत करने की आवश्यकता है। मंत्रालय की योजना है कि स्कूल स्तर से ही छात्रों को विभिन्न करियर विकल्पों की जानकारी दी जाए।

यदि छात्रों को समय रहते वैकल्पिक और रुचि आधारित क्षेत्रों की जानकारी मिले, तो वे केवल कुछ सीमित विकल्पों में फंसने के बजाय बेहतर और विविध अवसरों की ओर अग्रसर हो सकेंगे।

समिति की अपेक्षित रिपोर्ट और सुझाव

शिक्षा मंत्रालय द्वारा गठित समिति आगामी कुछ महीनों में अपनी रिपोर्ट सौंपेगी। उम्मीद की जा रही है कि इस रिपोर्ट में निम्नलिखित सुझाव सामने आ सकते हैं:

डमी स्कूलों पर सख्ती और वैधता की स्पष्टता

  • कोचिंग सेंटरों के लिए राष्ट्रीय नियामक ढांचे की स्थापना
  • स्कूल शिक्षा को प्रतियोगी परीक्षा अनुकूल बनाने के सुझाव
  • करियर गाइडेंस को शैक्षिक प्रणाली में अनिवार्य रूप से शामिल करना
  • मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार और निगरानी
  • सीटों की संख्या में संतुलित बढ़ोतरी

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