अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सोमवार को एक बड़ा ऐलान करते हुए कहा कि इज़रायल और ईरान अब पूरी तरह से सीजफायर पर राजी हो गए हैं। इस ऐलान का सीधा असर अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा बाजार पर देखने को मिला है। खासकर कच्चे तेल (क्रूड ऑयल) की कीमतों में भारी गिरावट आई है।
दुनिया भर के बाजारों के लिए सोमवार का दिन एक बड़ी खबर लेकर आया जब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ऐलान किया कि ईरान और इज़राइल युद्धविराम पर सहमत हो गए हैं। 12 दिन तक चले इस सैन्य टकराव के बाद यह एक ऐतिहासिक घटनाक्रम है, जिसने न केवल पश्चिम एशिया में तनाव को कम किया है बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी गहरा असर डाला है।
इस शांति समझौते की सबसे तात्कालिक प्रतिक्रिया कच्चे तेल (क्रूड ऑयल) की कीमतों में देखने को मिली। जहां सोमवार को ही तेल 9 प्रतिशत सस्ता हुआ था, वहीं युद्धविराम की घोषणा के बाद इसमें 4 प्रतिशत और गिरावट दर्ज की गई और ब्रेंट क्रूड की कीमत 65.75 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई।
ट्रंप का बड़ा ऐलान, 24 घंटे में पूरी तरह से बंद होगा युद्ध
व्हाइट हाउस से जारी एक बयान में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि ईरान और इज़राइल एक फुल और कॉम्प्रिहेंसिव सीजफायर के लिए सहमत हो गए हैं। ट्रंप ने कहा कि अगर दोनों पक्षों ने 24 घंटे तक शांति बनाए रखी, तो यह युद्ध आधिकारिक रूप से समाप्त माना जाएगा।
यह घोषणा वैश्विक मंच पर अमेरिका की कूटनीतिक सफलता के तौर पर देखी जा रही है। बीते 12 दिनों से जारी इस टकराव के कारण वैश्विक बाजारों में भारी अस्थिरता बनी हुई थी, खासकर ऊर्जा बाजार में। अब जब युद्धविराम की पुष्टि हुई है, तो व्यापारिक गतिविधियों में स्थिरता लौटने की उम्मीद की जा रही है।
तेल बाजार में उथल-पुथल, अब सप्लाई बाधा का डर खत्म
ईरान, जो ओपेक (OPEC) का तीसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश है, उस पर युद्ध के दौरान निर्यात प्रतिबंध या सैन्य हमले की आशंका बनी हुई थी। इसके कारण तेल की कीमतों में अचानक उछाल आया था। अब जब युद्धविराम लागू हो गया है, तो बाजार को भरोसा है कि ईरान अपने तेल उत्पादन और निर्यात को सामान्य रूप से जारी रख सकेगा।
IG फर्म के विश्लेषक टोनी सायकेमोर ने कहा कि, “सीजफायर की खबर से यह स्पष्ट हो गया है कि कच्चे तेल की कीमत में जो जोखिम प्रीमियम जुड़ा था, वह लगभग पूरी तरह से समाप्त हो गया है।”
शेयर बाजारों में तेजी, डॉलर में कमजोरी
सीजफायर के ऐलान का सकारात्मक असर वैश्विक शेयर बाजारों पर भी देखने को मिला। अमेरिका के प्रमुख शेयर सूचकांक S&P 500 में 0.3 प्रतिशत और नैस्डैक में 0.5 प्रतिशत की तेजी दर्ज की गई। वहीं जापान का निक्केई सूचकांक 38,905 के स्तर तक पहुंच गया, जो पिछले दिन के 38,354 अंक से काफी ऊपर है।
दूसरी ओर, डॉलर इंडेक्स में कमजोरी आई है। जापानी येन के मुकाबले डॉलर 0.1 प्रतिशत गिरकर 145.92 येन पर आ गया, जबकि यूरो 0.1 प्रतिशत चढ़कर 1.1589 डॉलर पर पहुंच गया। विश्लेषकों के अनुसार, डॉलर की कमजोरी का एक बड़ा कारण यह भी है कि संकट टलने के बाद निवेशकों का रुझान सुरक्षित निवेशों की बजाय जोखिमपूर्ण परिसंपत्तियों की ओर लौट रहा है।
यूरोप और जापान को राहत
कच्चे तेल के दामों में आई गिरावट का सबसे बड़ा लाभ उन देशों को मिलेगा जो तेल के आयात पर निर्भर हैं, जैसे जापान और यूरोपीय संघ। इन क्षेत्रों में उत्पादन लागत घटेगी और मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी।
विशेषज्ञों के अनुसार, जापान और यूरोप दोनों ही आर्थिक रूप से उच्च आयात बिल से जूझ रहे थे। अब जब तेल की कीमतें नीचे आई हैं, तो इनकी अर्थव्यवस्थाओं को राहत मिलने की उम्मीद है। वहीं दूसरी ओर अमेरिका, जो अब एक प्रमुख तेल निर्यातक बन चुका है, को कम कीमतों से कुछ हद तक नुकसान हो सकता है।
भारत पर भी असर तय
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश है। ऐसे में कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट का सीधा फायदा भारतीय अर्थव्यवस्था को मिल सकता है। पेट्रोल-डीज़ल की कीमतों में स्थिरता आने से खुदरा मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना आसान होगा और चालू खाता घाटे में सुधार की संभावना बढ़ेगी।
सरकार को राजकोषीय घाटा कम करने और रुपये पर दबाव को घटाने में भी मदद मिलेगी। इसके अलावा, हवाई किराए और लॉजिस्टिक्स लागत में भी राहत मिलने की उम्मीद है, जिससे आम जनता को भी राहत मिल सकती है।
क्या आगे भी बना रहेगा शांति का माहौल?
युद्धविराम के बावजूद अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक यह सवाल उठा रहे हैं कि क्या यह स्थायी समाधान होगा या फिर सिर्फ अस्थायी विराम? पश्चिम एशिया में पहले भी कई बार युद्धविराम हुए हैं जो कुछ समय बाद टूट गए। हालांकि इस बार अमेरिका, रूस और चीन जैसे बड़े देशों की कूटनीतिक सक्रियता को देखते हुए उम्मीद की जा रही है कि यह शांति लंबे समय तक बनी रह सकती है।