ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) की विश्वसनीयता को लेकर लगातार उठ रहे विपक्षी दलों के सवालों के बीच, चुनाव आयोग ने एक महत्वपूर्ण और पारदर्शिता बढ़ाने वाला फैसला लिया है।
Election Commission: चुनाव प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी और विश्वसनीय बनाने की दिशा में चुनाव आयोग ने एक बड़ा कदम उठाया है। लगातार ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) की विश्वसनीयता पर उठ रहे सवालों को देखते हुए आयोग ने ईवीएम जांच नियमों में अहम बदलाव किए हैं। इन नए नियमों के तहत अब सिर्फ विजेता ही नहीं, बल्कि दूसरे और तीसरे स्थान पर रहे उम्मीदवार भी ईवीएम की जांच करवा सकेंगे।
अब उम्मीदवार भी करवा सकेंगे मॉक पोल, देना होगा शुल्क
अब तक उम्मीदवारों को केवल परिणामों को स्वीकार करने का विकल्प ही था, लेकिन 17 जून 2025 को आयोग द्वारा जारी नई गाइडलाइन के अनुसार, उम्मीदवार ईवीएम जांच के साथ मॉक पोल भी करवा सकते हैं। मॉक पोल यानी मशीन में कुछ वोट डालकर देखा जाएगा कि क्या वह सही तरीके से रजिस्टर हो रहे हैं या नहीं। हालांकि, इस प्रक्रिया के लिए उम्मीदवारों को शुल्क देना होगा:
- केवल EVM जांच: ₹23,600 (18% GST समेत)
- EVM + मॉक पोल: ₹47,200
- यह राशि भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) या इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ECIL) को देनी होगी, जो EVM की निर्माता कंपनियां हैं।
गड़बड़ी मिली तो पूरा पैसा होगा वापस
सबसे अहम बात यह है कि यदि जांच में EVM में किसी भी प्रकार की गड़बड़ी पाई जाती है, तो उम्मीदवार को पूरा पैसा लौटा दिया जाएगा। इसके अलावा, उस जांच का खर्च केंद्र या राज्य सरकार वहन करेगी, यह चुनाव के प्रकार (लोकसभा या विधानसभा) पर निर्भर करेगा। उम्मीदवारों को EVM की जांच के लिए चुनाव नतीजों की घोषणा के 7 दिन के भीतर आवेदन करना होगा। वे हर विधानसभा क्षेत्र की 5% तक मशीनों की जांच करवा सकते हैं। इसमें बैलेट यूनिट, कंट्रोल यूनिट और VVPAT शामिल होंगे।
मुख्य चुनाव अधिकारी को 15 दिन के भीतर जांच की सूची संबंधित कंपनियों को भेजनी होगी। पहले यह सीमा 30 दिन थी, जिसे अब आधा कर दिया गया है ताकि प्रक्रिया तेज और अधिक प्रभावी हो सके।
वीडियो और फोटो रिकॉर्ड को लेकर भी बदला नियम
चुनाव आयोग ने एक और बड़ा बदलाव चुनावी वीडियो और फोटो रिकॉर्डिंग को लेकर किया है। आयोग ने निर्णय लिया है कि अब ये रिकॉर्ड केवल 45 दिनों तक ही रखे जाएंगे। पहले यह समयसीमा 6 महीने से 1 साल तक थी। हालांकि, यदि कोई चुनाव याचिका दायर होती है, तो रिकॉर्ड उस याचिका के निपटारे तक सुरक्षित रखा जाएगा। यह कदम उन सोशल मीडिया ट्रेंड्स को रोकने के लिए उठाया गया है, जिनमें वीडियो/फोटो का संदर्भ से हटकर दुरुपयोग किया जाता रहा है।
- संदेह को मिलेगा समाधान, जनता को मिलेगी पारदर्शिता
- चुनाव आयोग का कहना है कि इन नियमों से:
- उम्मीदवारों को संदेह की स्थिति में समाधान का मौका मिलेगा।
- चुनावी प्रक्रिया को लेकर जनता के बीच भरोसा बढ़ेगा।
- राजनीतिक दलों के आरोप-प्रत्यारोप कम होंगे।
- सोशल मीडिया पर गलत जानकारी के प्रचार को रोका जा सकेगा।
इस बदलाव को लेकर आयोग ने 30 मई को सभी राज्यों के मुख्य चुनाव अधिकारियों को पत्र भेजकर सूचित किया था। इसमें यह भी स्पष्ट किया गया था कि रिकॉर्ड के दुरुपयोग की बढ़ती घटनाओं के कारण ही 45 दिन की समय सीमा तय की गई है। चुनाव आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने संकेत दिया है कि इन नए नियमों की शुरुआत बिहार विधानसभा चुनाव से हो सकती है। वहां जल्द ही चुनाव की प्रक्रिया शुरू होने वाली है और आयोग चाहता है कि नई प्रणाली का पायलट वहां से किया जाए।