गोवत्स द्वादशी 2025, जिसे महाराष्ट्र में वासु बारस और गुजरात में वाघ बरस कहा जाता है, 17 अक्टूबर को मनाया जाएगा। यह पर्व गाय और उसके बछड़े के प्रति श्रद्धा और आभार व्यक्त करने का प्रतीक है। इस दिन व्रत, पूजा और कथा के माध्यम से परिवार में सुख-समृद्धि और संतान की रक्षा की कामना की जाती है।
Govatsa Dwadashi: गोवत्स द्वादशी, जिसे महाराष्ट्र में वासु बारस और गुजरात में वाघ बरस कहा जाता है, 17 अक्टूबर 2025, शुक्रवार को मनाया जाएगा। भारत में यह पर्व दीपावली की शुरुआत और धनतेरस से एक दिन पहले श्रद्धालुओं द्वारा गाय और उसके बछड़े के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं अपने परिवार की समृद्धि, सुख-शांति और बच्चों की लंबी आयु की कामना से व्रत रखती हैं। पूजा विधि में स्नान, संकल्प, गौ माता की पूजा और कथा श्रवण शामिल हैं, जबकि व्रत नियमों का पालन किया जाता है।
भारत में दीपावली पर्व की शुरुआत
गोवत्स द्वादशी, जिसे महाराष्ट्र में वासु बारस और गुजरात में वाघ बरस कहा जाता है, गाय और उसके बछड़े के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता व्यक्त करने का पावन दिन है। यह धनतेरस से एक दिन पहले मनाया जाता है और महिलाओं द्वारा अपने बच्चों की लंबी आयु, परिवार की समृद्धि और सुख-शांति की कामना से व्रत रखा जाता है। इसे बछ बारस, नंदिनी व्रत या वत्स द्वादशी के नाम से भी जाना जाता है।
गोवत्स द्वादशी का महत्व और उत्सव
गोवत्स द्वादशी का पर्व गाय और बछड़े के प्रति आभार प्रकट करने का प्रतीक है। हिन्दू धर्म में गाय को माता का दर्जा प्राप्त है और इसे जीवनदायिनी माना जाता है। इस दिन घरों में गौ पूजा का आयोजन किया जाता है और गाय के दूध से बने पदार्थों का सेवन वर्जित होता है। महाराष्ट्र में इसे वासु बारस के नाम से मनाया जाता है और गुजरात में वाघ बरस के रूप में जाना जाता है। इस दिन से दीपावली की शुरुआत होती है और पूरे देश में श्रद्धालु अपने घरों में पूजा-पाठ करते हैं।
गोवत्स द्वादशी 2025 का मुहूर्त
इस वर्ष गोवत्स द्वादशी 17 अक्टूबर 2025, शुक्रवार को है। द्वादशी की तिथि प्रातः 11:12 बजे से प्रारंभ होकर अगले दिन 18 अक्टूबर दोपहर 12:18 बजे तक रहेगी। पूजा का प्रमुख समय या प्रदोष काल शाम 5:49 बजे से रात 8:20 बजे तक निर्धारित किया गया है। इस दौरान श्रद्धालु स्नान, संकल्प और गौ माता की पूजा के साथ व्रत का पालन करते हैं।
पूजा विधि
स्नान और संकल्प के बाद श्रद्धालु स्वच्छ वस्त्र धारण कर गौ माता और उसके बछड़े की पूजा का संकल्प लेते हैं। यदि घर में वास्तविक गाय-बछड़ा उपलब्ध हो तो उन्हें स्नान कर सजाया जाता है, अन्यथा मिट्टी या चित्र रूप में पूजा की जाती है। इसके बाद हल्दी-कुमकुम, फूल और हरी घास, अंकुरित मूंग या चना अर्पित किया जाता है। पूजा के अंत में दीपक जलाकर आरती की जाती है और गोवत्स द्वादशी की कथा का श्रवण किया जाता है। व्रत का पारण अगले दिन त्रयोदशी तिथि को गौ पूजा के बाद किया जाता है।
व्रत के नियम और पालन
इस दिन विशेष नियमों का पालन करना अनिवार्य माना जाता है। व्रत के दौरान गेहूं, चावल और गाय के दूध से बने पदार्थों का सेवन वर्जित है। भैंस का दूध, फल और साधारण भोजन किया जा सकता है। इसके अलावा किसी भी प्रकार के चाकू या धारदार वस्तु का प्रयोग वर्जित है। इस प्रकार के नियम व्रत के पवित्रता और श्रद्धा को बनाए रखते हैं।
गोवत्स द्वादशी की पौराणिक कथा
कथा के अनुसार, एक समय किसी गांव में एक साहूकार अपने सात बेटों और पोतों के साथ रहता था। उसने एक तालाब बनवाया, जो वर्षों तक नहीं भरा। पंडित ने बताया कि तालाब तभी भरेगा जब साहूकार अपने बड़े बेटे या बड़े पोते की बलि देगा। साहूकार ने अपने बड़े बेटे की पत्नी को मायके भेजा और पीछे से अपने पोते की बलि दे दी। उसी समय तेज बारिश हुई और तालाब भर गया।
कुछ समय बाद बछ बारस का दिन आया और साहूकार अपने परिवार के साथ तालाब पूजने गया। घर लौटते समय उसने दासी को कहा कि गेहुंला पका लेना। दासी ने गलत समझा और बछड़े को पकाया। जब साहूकार ने देखा तो स्तब्ध रह गया। तभी गाय अपने बछड़े को ढूंढने आई और मिट्टी खोदने लगी। चमत्कार हुआ और बछड़ा जीवित बाहर निकल आया। साहूकार और परिवार भाव-विभोर हो गए और उन्होंने गौ माता की पूजा कर संकल्प लिया कि हर वर्ष बछ बारस का व्रत करेंगे।
गोवत्स द्वादशी क्यों है महत्वपूर्ण
कथा से यह स्पष्ट होता है कि गोवत्स द्वादशी व्रत संतान की रक्षा और घर में सुख-समृद्धि लाने का प्रतीक है। व्रत के नियम, पूजा विधि और कथा के माध्यम से यह पर्व परिवार में आस्था और धार्मिकता बनाए रखने का माध्यम बनता है। गाय और बछड़े के प्रति श्रद्धा दर्शाने के साथ-साथ यह पर्व पारिवारिक सौहार्द और आध्यात्मिक अनुशासन को भी बढ़ावा देता है।
गोवत्स द्वादशी 2025 न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सामाजिक और पारिवारिक समृद्धि का संदेश भी देता है। इस दिन के शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, व्रत नियम और कथा सभी श्रद्धालुओं को एक सुसंगठित मार्गदर्शन देते हैं। परिवार के सभी सदस्य इस दिन गाय और बछड़े की पूजा कर पुण्य लाभ प्राप्त कर सकते हैं।