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जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग: लोकसभा में शुरू होगी प्रक्रिया, किरेन रिजिजू ने किया स्पष्ट

जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग: लोकसभा में शुरू होगी प्रक्रिया, किरेन रिजिजू ने किया स्पष्ट

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद देश की राजनीति में एक और बड़ा घटनाक्रम तेजी से सुर्खियों में है—वह है इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया।

नई दिल्ली: इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग की चर्चा पिछले कुछ समय से देशभर में गरमाई हुई है। इस संवेदनशील मुद्दे को लेकर यह अटकलें लगाई जा रही थीं कि महाभियोग की प्रक्रिया लोकसभा से शुरू होगी या राज्यसभा से। अब केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने इस विवाद को समाप्त करते हुए स्पष्ट कर दिया है कि इस प्रक्रिया की शुरुआत लोकसभा में ही होगी।

मामले की पृष्ठभूमि: क्यों हो रही है कार्रवाई?

जस्टिस यशवंत वर्मा उस समय सुर्खियों में आए जब दिल्ली स्थित उनके आवास पर बड़ी मात्रा में जले हुए नोट पाए गए। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा और एक उच्चस्तरीय जांच कमेटी गठित की गई। जांच के पश्चात समिति ने जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग की अनुशंसा की। अब इस अनुशंसा के बाद संसद में उनके खिलाफ औपचारिक प्रक्रिया शुरू की जा रही है।

लोकसभा में शुरू होगी कार्रवाई: रिजिजू

केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने शुक्रवार को मीडिया से बातचीत करते हुए कहा: यह निर्णय सर्वदलीय सहमति से लिया गया है कि जस्टिस यशवंत वर्मा को हटाने की प्रक्रिया लोकसभा से शुरू की जाएगी। इसके बाद राज्यसभा में भी इसे नियमों के तहत लिया जाएगा। उन्होंने आगे स्पष्ट किया कि अब इस विषय में किसी प्रकार की भ्रम की स्थिति नहीं होनी चाहिए। जब लोकसभा में प्रस्ताव पेश होगा, तब राज्यसभा में भी नियम के अनुसार इस पर सहमति बनाई जाएगी।

रिजिजू ने बताया कि यह फैसला किसी एक पार्टी का नहीं बल्कि सभी राजनीतिक दलों की सहमति से लिया गया है। उन्होंने जोर देकर कहा कि: यह कोई एकतरफा निर्णय नहीं है। सभी दल इस बात पर सहमत हैं कि ऐसी गंभीर प्रक्रिया में एकता और पारदर्शिता आवश्यक है। संसद के नियमों के अनुसार, यदि महाभियोग का प्रस्ताव दोनों सदनों में एक ही दिन प्रस्तुत किया जाता है, तो लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा सभापति मिलकर एक जांच समिति का गठन करते हैं। इस समिति की रिपोर्ट के आधार पर ही महाभियोग की आगे की प्रक्रिया तय होती है।

धनखड़ की भूमिका और विवाद

इस मुद्दे को लेकर एक और दिलचस्प पहलू सामने आया है। पूर्व उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के तत्कालीन सभापति जगदीप धनखड़ ने ही वह प्रस्ताव स्वीकार किया था जिसमें विपक्ष के 63 सांसदों ने जस्टिस वर्मा के खिलाफ हस्ताक्षर किए थे। यह प्रस्ताव बिना सरकार के फ्लोर लीडर्स को सूचना दिए स्वीकार किया गया था।

धनखड़ की मंशा यह थी कि महाभियोग की कार्यवाही पहले राज्यसभा में शुरू हो, जहां विपक्ष का प्रस्ताव पहले से मौजूद था। इससे यह सवाल उठने लगे कि क्या यह प्रक्रिया राजनीतिक उद्देश्यों से प्रभावित है? लेकिन अब सरकार ने इस मामले को स्पष्ट करते हुए कहा है कि लोकसभा ही प्रक्रिया की शुरुआत करेगी, जिससे संविधान सम्मत ढंग से कार्यवाही आगे बढ़ सके।

महाभियोग की प्रक्रिया: एक जटिल विधिक राह

भारत के संविधान के तहत उच्च न्यायपालिका के किसी भी न्यायाधीश को हटाना एक बेहद कठिन और संरक्षित प्रक्रिया है। इसके लिए संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है। साथ ही, जांच समिति द्वारा दोष सिद्ध होने के बाद ही संसद प्रस्ताव पारित कर सकती है। इस मामले में यह पहला अवसर नहीं है जब किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू की जा रही है। लेकिन जस्टिस यशवंत वर्मा का मामला इसलिए असाधारण है क्योंकि इसमें नोटबंदी के बाद काले धन की संभावित साजिश का पहलू जुड़ा हुआ है।

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