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करवा चौथ 2025: अक्टूबर में पड़ रहा है करवा चौथ का व्रत, जानें तिथि और व्रत का समय

करवा चौथ 2025: अक्टूबर में पड़ रहा है करवा चौथ का व्रत, जानें तिथि और व्रत का समय

साल 2025 में करवा चौथ का व्रत 10 अक्टूबर, शुक्रवार को रखा जाएगा। यह व्रत विवाहित महिलाओं द्वारा पति की लंबी आयु और स्वास्थ्य के लिए किया जाता है। व्रत सुबह 6:19 बजे से शुरू होकर रात 8:13 बजे तक चलेगा और इसका पारण चंद्रमा को अर्घ्य देकर किया जाएगा। 

नई दिल्ली: करवा चौथ 2025 का व्रत 10 अक्टूबर, शुक्रवार को मनाया जाएगा। हिंदू धर्म में यह व्रत विवाहित महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है, जो अपने पति की लंबी आयु और स्वास्थ्य के लिए अखंड सौभाग्य की कामना करते हुए करते हैं। इस दिन व्रत सुबह 6:19 बजे शुरू होकर रात 8:13 बजे तक रहेगा और चंद्रमा को जल अर्पित कर पारण किया जाएगा।

करवा चौथ व्रत का अर्थ और उद्देश्य

करवा चौथ का व्रत मुख्य रूप से विवाहित महिलाओं द्वारा रखा जाता है। इस दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करके अपने पति के लिए व्रत करती हैं। करवा चौथ का व्रत केवल एक धार्मिक कर्तव्य नहीं बल्कि पति के प्रति श्रद्धा और प्रेम का प्रतीक भी माना जाता है।

हिंदू धर्म में यह व्रत कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है। महिलाओं का विश्वास है कि इस व्रत को करने से पति की लंबी उम्र, स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि बनी रहती है। करवा चौथ का व्रत सुबह सूर्य निकलने से पहले शुरू होता है और रात में चंद्रमा के दर्शन के बाद समाप्त होता है। इस दौरान महिलाएं पूरे दिन निर्जला व्रत करती हैं और केवल सरगी का सेवन सुबह में करती हैं।

साल 2025 में करवा चौथ की तिथि और समय

साल 2025 में करवा चौथ 10 अक्टूबर, शुक्रवार को पड़ेगा। इस वर्ष करवा चौथ की चतुर्थी तिथि 09 अक्टूबर 2025 की रात 10 बजकर 54 मिनट से प्रारंभ होगी और 10 अक्टूबर 2025 को शाम 7 बजकर 38 मिनट तक रहेगी। व्रत करने का शुभ समय सुबह 6 बजकर 19 मिनट से शुरू होकर रात 8 बजकर 13 मिनट तक रहेगा। इस प्रकार इस वर्ष करवा चौथ व्रत की कुल अवधि 13 घंटे 54 मिनट है।

व्रत की तैयारी और रिवाज

करवा चौथ के दिन महिलाएं सुबह ब्रह्म मुहूर्त में सरगी खाकर व्रत शुरू करती हैं। सरगी में फल, मिठाई और हल्का भोजन शामिल होता है। इसके बाद पूरे दिन महिलाएं जल, भोजन और पानी से परहेज करती हैं। रात में चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद व्रत तोड़ा जाता है।

इस व्रत को करक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। 'करवा' का अर्थ होता है मिट्टी का पात्र, जिसमें जल भरकर चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है। महिलाएं चंद्रमा को अर्घ्य देकर अपने पति की लंबी आयु और खुशहाली की कामना करती हैं।

सोलह श्रृंगार और सांस्कृतिक महत्व

करवा चौथ का व्रत केवल निर्जला रहने तक सीमित नहीं है। इस दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं, जिसमें गहने, मेहंदी, सुंदर वस्त्र और पारंपरिक श्रृंगार शामिल होता है। यह रिवाज करवा चौथ को न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी महत्वपूर्ण बनाता है।

सोलह श्रृंगार का उद्देश्य महिलाओं को सुंदर बनाना और व्रत के महत्व को बढ़ाना है। महिलाएं अपने पति के लिए विशेष तैयार होती हैं और इस दिन का उत्सव पूरे परिवार और समुदाय के साथ मनाया जाता है।

करवा चौथ का सामाजिक संदेश

करवा चौथ का व्रत महिलाओं के धैर्य, प्रेम और समर्पण का प्रतीक है। यह व्रत महिलाओं को आत्मसंयम और आस्था का अनुभव कराता है। साथ ही, यह परंपराओं और सांस्कृतिक मूल्य को पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाने का माध्यम भी है।

इस दिन परिवार और समाज में भी विशेष महत्व होता है। महिलाएं अपने घरवालों और सास-ससुर के साथ मिलकर उत्सव मनाती हैं। व्रत का पारंपरिक महत्व महिलाओं में सहयोग, प्रेम और सामंजस्य की भावना को मजबूत करता है।

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