महाराजा रणजीत सिंह का नाम भारतीय इतिहास में गर्व और साहस का पर्याय माना जाता है। वे न केवल एक महान योद्धा थे, बल्कि एक दूरदर्शी शासक भी थे जिन्होंने सिखों के विभिन्न क़बीलों को एकजुट कर सिख साम्राज्य की स्थापना की। उनका शासनकाल 18वीं और 19वीं सदी के बीच था, जब भारत का राजनीतिक परिदृश्य अंग्रेजों, अफगानों और कई स्थानीय शक्तियों के बीच उलझा हुआ था। महाराजा रणजीत सिंह ने अपनी सूझ-बूझ और कूटनीति से न केवल पंजाब को एकजुट किया बल्कि उसे एक मजबूत और समृद्ध राज्य बनाया।
प्रारंभिक जीवन और परिवार
महाराजा रणजीत सिंह का जन्म 1780 में गुजरांवाला (जो अब पाकिस्तान में है) में हुआ था। उनका परिवार सिख जाट समुदाय से था। उनके पिता महाराजा महा सिंह सुकरचकिया मिसल के कमांडर थे। उस समय पंजाब कई छोटी-छोटी मिसलों में बंटा हुआ था, जिनका शासन स्वतंत्र था और वे अक्सर आपस में लड़ाई करते रहते थे। रणजीत सिंह के जीवन की शुरुआत में ही एक बड़ी मुश्किल आई जब वे चेचक की बीमारी के कारण अपनी एक आंख की रोशनी खो बैठे। इसके बावजूद भी उन्होंने अपने साहस और नेतृत्व कौशल से युवावस्था में ही सफलता हासिल करनी शुरू कर दी।
12 वर्ष की आयु में उनके पिता के निधन के बाद रणजीत सिंह ने सुकरचकिया मिसल की कमान संभाली और अपनी तेज़ तर्रार रणनीतियों से विभिन्न मिसलों को जीतकर अपने अधीन कर लिया। 1801 में उन्होंने लाहौर को अपनी राजधानी बनाया और अपने साम्राज्य का विस्तार शुरू किया।
सिख साम्राज्य की स्थापना और विस्तार
महाराजा रणजीत सिंह ने पंजाब को एकजुट कर उसे सिख साम्राज्य में तब्दील किया। उन्होंने अफगानों के खिलाफ कई युद्ध लड़े और उन्हें पश्चिमी पंजाब से खदेड़ दिया। पेशावर, जम्मू-कश्मीर, आनंदपुर और मुल्तान जैसे क्षेत्रों पर उनका अधिकार हो गया। यह पहला मौका था जब पश्तून क्षेत्रों पर किसी गैर-मुस्लिम का शासन स्थापित हुआ।
उनकी सेना, जिसे 'सिख खालसा सेना' कहा जाता है, आधुनिक तकनीकों और हथियारों से लैस थी। रणजीत सिंह ने फ्रांसीसी सैनिकों और हथियार निर्माताओं को अपनी सेना के सुधार के लिए आमंत्रित किया। उनकी इस सैन्य शक्ति ने अंग्रेजों को पंजाब में घुसने से कई दशकों तक रोका।
रणजीत सिंह का कूटनीतिक कौशल और अंग्रेजों के साथ संबंध
रणजीत सिंह ने यह समझा कि अंग्रेजों से सीधे युद्ध से बेहतर है कि वे उनसे कूटनीति के जरिए निपटें। उन्होंने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ कई संधियाँ कीं और सीमा के पार विस्तार को सीमित रखा। यह रणनीति उनके लिए फायदेमंद साबित हुई क्योंकि इससे वे अपने क्षेत्र की रक्षा कर सके और अंग्रेजों को पंजाब में घुसने से रोक पाए।
धर्मनिरपेक्ष शासन और सामाजिक सुधार
महाराजा रणजीत सिंह ने एक धर्मनिरपेक्ष शासक के रूप में काम किया। उन्होंने सभी धर्मों का सम्मान किया और कभी भी किसी पर धार्मिक उत्पीड़न नहीं किया। हिंदुओं और सिखों पर लगाए जाने वाले जज़िया कर को समाप्त कर दिया।
उनका राज्य धार्मिक सहिष्णुता का उदाहरण था। उन्होंने कभी भी किसी को सिख धर्म अपनाने के लिए मजबूर नहीं किया। इसके साथ ही उन्होंने अमृतसर के हरिमंदिर साहिब में संगमरमर लगवाया और इसे स्वर्ण मंदिर का रूप दिया, जो आज भी सिख धर्म का प्रमुख तीर्थ स्थल है।
कोहिनूर हीरा और कश्मीर अभियान
रणजीत सिंह के खजाने की सबसे कीमती वस्तु कोहिनूर हीरा था, जो उनके शासन की शक्ति और वैभव का प्रतीक था। कश्मीर को अफगान शासकों से मुक्त कराकर उन्होंने इस क्षेत्र पर भी नियंत्रण स्थापित किया। कश्मीर के शासक अतामोहम्मद ने शाहशुजा को कैद कर रखा था। वफा बेगम, शाहशुजा की पत्नी, ने रणजीत सिंह से प्रार्थना की कि वे अपने पति को मुक्त कराएं। बदले में उन्होंने कोहिनूर हीरा देने का वादा किया। इस प्रकार रणजीत सिंह ने न केवल कश्मीर को आजाद कराया बल्कि कोहिनूर हीरा भी अपने खजाने में शामिल किया।
प्रशासन और न्याय व्यवस्था
रणजीत सिंह ने अपने राज्य में क़ानून और व्यवस्था को बहुत महत्व दिया। उनका शासनकाल अत्यंत न्यायपूर्ण माना जाता है। वे कभी भी किसी को मृत्युदंड नहीं देते थे और राज्य में अमन और सुरक्षा बनाए रखी। उनका शासन इस बात का प्रमाण था कि एक सशक्त नेता न्याय और मानवीयता दोनों का पालन कर सकता है।
कला, संस्कृति और शिक्षा के संरक्षक
महाराजा रणजीत सिंह स्वयं अनपढ़ थे, परंतु वे शिक्षा और कला को प्रोत्साहित करते थे। उनके दरबार में कई कलाकार, संगीतकार और विद्वान आते थे। उन्होंने पंजाब की सांस्कृतिक धरोहर को संजोने का कार्य किया। काशी विश्वनाथ मंदिर को उन्होंने भारी मात्रा में सोना दान किया, जिससे उसका ऊपरी भाग स्वर्णिम हो गया। वे धार्मिक स्थलों और सांस्कृतिक केंद्रों के संरक्षण के लिए भी प्रसिद्ध थे।
रणजीत सिंह का स्वर्णिम सिंहासन
रणजीत सिंह का सिंहासन उनकी महानता का प्रतीक था। वे नाटे कद के और साँवले रंग के थे, लेकिन उनमें एक असाधारण नेतृत्व क्षमता और तेजस्विता थी। उनकी एक आंख चेचक की बीमारी के कारण चली गई थी, परंतु इससे उनकी वीरता और दूरदर्शिता कम नहीं हुई।
अंतिम वर्ष और विरासत
सन् 1838 में उन्हें लकवे का दौरा पड़ा, जिससे उनकी स्वास्थ्य स्थिति बिगड़ गई। 1839 में उनका निधन हो गया। उनकी समाधि लाहौर में स्थित है, जो आज भी उनकी याद दिलाती है। उनकी मृत्यु के बाद पंजाब पर अंग्रेजों का प्रभुत्व बढ़ने लगा। 1849 में अंग्रेजों ने सिख साम्राज्य को पराजित कर लिया और कोहिनूर हीरे को ब्रिटेन के महारानी विक्टोरिया को सौंप दिया। यह हीरा आज भी ब्रिटिश ताज में जड़ा हुआ है।
महाराजा रणजीत सिंह एक महान योद्धा, दूरदर्शी शासक और धर्मनिरपेक्ष नेता थे। उन्होंने पंजाब को एकजुट कर एक शक्तिशाली राज्य बनाया, जिसे अंग्रेज भी झुकने पर मजबूर थे। उनकी वीरता, न्यायप्रियता और सांस्कृतिक संवेदनशीलता ने उन्हें इतिहास के महानतम नेताओं में शामिल किया। उनका शासनकाल पंजाब के स्वर्णिम युग के रूप में याद किया जाता है, जिसने पूरे भारत को प्रेरणा दी। रणजीत सिंह का जीवन हमें यह सिखाता है कि साहस, एकता और न्याय के बल पर कोई भी चुनौती पार की जा सकती है।