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नीतीश का गढ़ नालंदा: क्या मुख्यमंत्री का जादू अभी भी हैं कायम? जानिए क्या कहती है ग्राउंड रिपोर्ट

नीतीश का गढ़ नालंदा: क्या मुख्यमंत्री का जादू अभी भी हैं कायम? जानिए क्या कहती है ग्राउंड रिपोर्ट

बिहार विधानसभा चुनावों के बीच राजनीतिक सरगर्मी चरम पर है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का गृह जिला और राजनीतिक गढ़ नालंदा इस बार भी चर्चा में है। स्थानीय लोगों का कहना है, जब हमारे इलाके के मुख्यमंत्री हैं, तो वोट किसी और को क्यों दें?।

Nalanda Ground Report: नालंदा की चौड़ी और साफ-सुथरी सड़कें, सड़क के दोनों ओर लगे होटलों की लाइन और ऊंची इमारतें यह संकेत देने के लिए पर्याप्त हैं कि यह शहर विकास की राह पर है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का गृह जिला होने के नाते नालंदा उनके लिए विशेष महत्व रखता है, और स्थानीय लोग भी मानते हैं कि मुख्यमंत्री ने जिले के विकास के लिए काफी काम किया है।

नालंदा द्वार के पास बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर जब लोगों से बात की गई, तो जवाब स्पष्ट था। अधिकांश लोगों का कहना था कि जब मुख्यमंत्री हमारे ही क्षेत्र के हैं, तो हम उनके अलावा किसी और को क्यों चुनें। स्थानीय निवासी गर्व के साथ कहते हैं कि उन्हें खुशी है कि मुख्यमंत्री उनके जिले के हैं। हालांकि कुछ लोगों ने स्थानीय विधायक को लेकर नाराजगी जताई, लेकिन उन्होंने स्पष्ट किया कि वोट तो नीतीश कुमार के नाम पर ही जाएगा। एक मतदाता ने कहा, “पिछली बार जो कसर रह गई थी, वह इस बार पूरी होगी।

नालंदा का विकास और स्थानीय प्रतिक्रिया

नालंदा के विकास को देखकर यह स्पष्ट होता है कि मुख्यमंत्री ने जिले में कई योजनाओं को लागू किया है। चौड़ी और साफ-सुथरी सड़कें, सड़क किनारे होटल और ऊंची इमारतें न केवल शहर के विकास का प्रमाण हैं, बल्कि स्थानीय लोगों में गौरव की भावना भी जगाती हैं। नालंदा द्वार के पास जब स्थानीय लोगों से चुनावी माहौल के बारे में बात की गई, तो ज्यादातर ने नीतीश कुमार के काम की तारीफ की। कुछ ने स्थानीय विधायक की आलोचना की, लेकिन वोट सीएम नीतीश के नाम पर देने की बात कही। एक स्थानीय निवासी ने बताया, पिछली बार जो कसर रह गई थी, वह इस बार पूरी होगी।

पिछले विधानसभा चुनाव में नालंदा जिले की 7 विधानसभा सीटों में से 6 पर NDA (5 JDU, 1 BJP) जीत हासिल हुई थी, जबकि केवल एक सीट RJD के खाते में गई थी।

नीतीश कुमार का राजनीतिक प्रभाव

नीतीश का गढ़ कल्याणबीघा गांव है। यहां के लोग कहते हैं कि नीतीश बार-बार पाला बदलते हैं, लेकिन विकास की दिशा में काम करने की उनकी नीति उन्हें वोट देने से नहीं रोकती। एक बुजुर्ग ने कहा, जहां रहकर विकास कर पाएंगे, वहीं जाएंगे। नीतीश कुमार का कोइरी-कुर्मी वोट बैंक नालंदा में करीब 36% के आसपास है। जातीय समीकरण भी उनके पक्ष में हैं, जिससे उनका स्थानीय प्रभाव मजबूत बना रहता है।

नालंदा के कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में हालात अभी भी चुनौतीपूर्ण हैं। कचरा-भेरिया गांव में लोग राशन वितरण, बिजली बिल और सरकारी योजनाओं में समस्याओं की बात कर रहे हैं। महेश पासवान बताते हैं, "जो राशन हमें मिलता है, उसे काट लिया जाता है। कभी महीने भर, कभी दो महीने तक राशन नहीं मिलता। राम प्रवेश मिस्त्री ने कहा, "बिजली फ्री है, लेकिन पुराने बिलों का हिसाब नहीं मिलता। कई लोगों को लाखों रुपये के बिल आए हैं।

नालंदा का ऐतिहासिक और शैक्षणिक महत्व

नालंदा केवल राजनीतिक दृष्टि से ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि ऐतिहासिक और शैक्षणिक दृष्टि से भी विश्व प्रसिद्ध है। प्राचीन काल में यह दुनिया का प्रमुख शिक्षा केंद्र था। नालंदा यूनिवर्सिटी को विश्व की पहली आवासीय यूनिवर्सिटी माना जाता है। यहाँ बौद्ध धर्म, चिकित्सा, दर्शन, विज्ञान और खगोल विज्ञान जैसे विषय पढ़ाए जाते थे।

नालंदा में एक समय 3000 से 10,000 विद्यार्थियों का आवास सम्भव था। चीन, कोरिया, जापान, तिब्बत, मंगोलिया, श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व एशिया से छात्र यहाँ शिक्षा ग्रहण करने आते थे। इसके खंडहर अब यूनESCO हेरिटेज साइट में शामिल हैं।

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