सुप्रीम कोर्ट ने NCLAT के न्यायिक सदस्य द्वारा लगाए गए दावे की जांच के आदेश दिए, जिसमें कहा गया कि उच्च न्यायपालिका के एक सदस्य ने लंबित मामले में पक्षकार के पक्ष में आदेश देने के लिए संपर्क किया था।
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय अधिकरण (NCLAT) के एक न्यायिक सदस्य के दावे की जांच के आदेश दिए हैं। न्यायमूर्ति शरद कुमार शर्मा ने आरोप लगाया कि उन्हें एक लंबित मामले में एक पक्ष के पक्ष में आदेश देने के लिए उच्च न्यायपालिका के एक अत्यंत सम्मानित सदस्य ने संपर्क किया।
सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जांच सेक्रेटरी जनरल को सौंपी है। जांच के परिणामों के आधार पर शीर्ष अदालत आगे की कार्रवाई का निर्णय करेगी। इस कदम को भारतीय न्यायपालिका में पारदर्शिता और न्यायिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के रूप में देखा जा रहा है।
NCLAT आदेश में न्यायमूर्ति ने सुनवाई से अलग होने का फैसला किया
चेन्नई स्थित NCLAT की दो सदस्यीय बेंच में न्यायमूर्ति शर्मा और तकनीकी सदस्य जतिंद्रनाथ स्वैन शामिल थे। आदेश में न्यायमूर्ति शर्मा ने लिखा, "हमें यह कहते हुए पीड़ा हो रही है कि हमें देश की उच्च न्यायपालिका के एक अत्यंत सम्मानित सदस्य द्वारा किसी विशेष पक्ष के पक्ष में आदेश देने के लिए संपर्क किया गया। इसलिए, मैं इस मामले की सुनवाई से अलग हो जाता हूं।"
इसके बाद, अधिकरण ने मामले को उपयुक्त पीठ के नामांकन के लिए चेयरपर्सन के समक्ष भेजने का निर्देश दिया। मामला KLSR Infratech के निलंबित निदेशक द्वारा दायर अपील से संबंधित था, जो कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (CIRP) और IBC के तहत चल रही थी।
न्यायमूर्ति शर्मा ने खुद को सुनवाई से अलग किया
न्यायमूर्ति शर्मा ने 13 अगस्त को सुनवाई के दौरान खुद को मामले से अलग कर लिया। उन्होंने अपने कारणों को आदेश में दर्ज किया। इससे पहले 18 जून को अपील पर सुनवाई पूरी हुई थी और दोनों पक्षों को सात दिन का समय दिया गया था।
न्यायमूर्ति शर्मा 31 दिसंबर, 2023 को उत्तराखंड हाईकोर्ट से सेवानिवृत्त हुए और 19 फरवरी, 2024 को NCLAT में न्यायिक सदस्य बने। उन्होंने पहले भी कई मामलों से खुद को अलग किया है, जो उनके निष्पक्षता के दृष्टिकोण को दर्शाता है।
सुप्रीम कोर्ट करेगी मामले की जांच और कार्रवाई
सुप्रीम कोर्ट की जांच में मामले की पूरी जानकारी जुटाई जाएगी। इसके बाद अदालत अनुशासनात्मक कार्रवाई या आवश्यक निर्देश जारी कर सकती है। यह जांच न्यायपालिका में विश्वसनीयता और निष्पक्ष निर्णय सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण मानी जा रही है।
विशेषज्ञों का कहना है कि इस मामले से NCLAT और सुप्रीम कोर्ट की प्रक्रियाओं में पारदर्शिता को और मजबूत किया जा सकता है। भविष्य में ऐसे दावे न्यायिक प्रणाली की स्वतंत्रता और जवाबदेही पर प्रभाव डाल सकते हैं।