28 अगस्त को भाद्रपद शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को स्कंद षष्ठी व्रत रखा जाएगा। यह व्रत भगवान कार्तिकेय को समर्पित है और संतान की रक्षा, लंबी आयु, सुख-समृद्धि और दांपत्य जीवन में मधुरता के लिए विशेष माना जाता है। व्रत का शुभ मुहूर्त शाम 5:56 बजे से शुरू होगा और 29 अगस्त रात 8:21 बजे समाप्त होगा।
Skand Shashthi 2025: हिंदू धर्म में 28 अगस्त 2025 को स्कंद षष्ठी व्रत मनाया जाएगा। यह व्रत भगवान शिव और मां पार्वती के पुत्र कार्तिकेय को समर्पित है, जिन्हें देवताओं का सेनापति माना जाता है। स्कंद षष्ठी व्रत करने से संतान की लंबी आयु, सुरक्षा और घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है। पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 5:56 बजे से रात 8:21 बजे तक रहेगा। व्रती दिनभर व्रत रखते हुए कथा, दीपक, फूल और नैवेद्य अर्पित करेंगे और अगले दिन पारण करेंगे।
स्कंद षष्ठी की तिथि और शुभ मुहूर्त
भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि 28 अगस्त 2025 को शाम 05 बजकर 56 मिनट से शुरू होकर 29 अगस्त की रात 08 बजकर 21 मिनट तक रहेगी। पंचांग अनुसार इस तिथि के आधार पर व्रत का पालन 28 अगस्त को किया जाएगा। पूजन के लिए अभिजीत मुहूर्त को सर्वोत्तम माना गया है। इस दिन भक्त भगवान कार्तिकेय की आराधना में विशेष रूप से मन लगाते हैं।
स्कंद षष्ठी व्रत की पूजन विधि
व्रत करने वाले व्यक्ति को सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए। घर में या मंदिर में भगवान कार्तिकेय की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। दीपक जलाकर धूप, फूल, चंदन और नैवेद्य अर्पित करें। इस दिन लाल या पीले फूल और बेलपत्र चढ़ाना शुभ माना जाता है। मंत्र "ॐ कार्तिकेयाय नमः" का जाप करना विशेष फलदायक है। दिनभर व्रत रखने के बाद संध्या समय कथा और आरती की जाती है। व्रत का पारण अगले दिन सुबह स्नान और पूजा करके फलाहार से किया जाता है।
भगवान कार्तिकेय की पूजा
भगवान कार्तिकेय, जिन्हें मुरुगन, सुब्रह्मण्यम और स्कंद के नाम से भी जाना जाता है, भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कार्तिकेय बच्चों की रक्षा करते हैं और उन्हें हर संकट से बचाते हैं। इस व्रत को करने से संतान को लंबी आयु मिलती है और उनके जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं।
स्कंद षष्ठी व्रत का पौराणिक महत्व
पौराणिक कथाओं के अनुसार, असुर तारकासुर के अत्याचार के समय देवताओं ने भगवान शिव और माता पार्वती से प्रार्थना की। इस संकट के समय माता पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का जन्म हुआ। उन्होंने तारकासुर का वध कर देवताओं को मुक्ति दिलाई। तभी से इस व्रत का आयोजन भगवान कार्तिकेय की आराधना और उनके शौर्य और शक्ति का स्मरण करने के लिए किया जाता है।
व्रत से मिलने वाले लाभ
व्रत करने से संतान पर आने वाले संकट दूर होते हैं और उनके जीवन में सुख-शांति बनी रहती है। दांपत्य जीवन में मधुरता आती है और घर में समृद्धि बनी रहती है। इस दिन की पूजा से बच्चों की सुरक्षा और परिवार की खुशहाली सुनिश्चित होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सच्चे मन से किया गया यह व्रत संतान और परिवार के लिए वरदान समान होता है।
दक्षिण भारत में स्कंद षष्ठी का महत्व विशेष रूप से अधिक है। वहां भक्तगण विशेष विधियों से व्रत करते हैं और मंदिरों में भगवान कार्तिकेय की आराधना की जाती है। इस दिन भक्त उपवास रखते हैं और पूरे दिन पूजा-पाठ और भजन-कीर्तन में समय बिताते हैं।