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Phule Movie Review: विवादों के बाद सिनेमाघरों में रिलीज हुई फिल्म 'फुले', जानें जनता की प्रतिक्रिया

Phule Movie Review: विवादों के बाद सिनेमाघरों में रिलीज हुई फिल्म 'फुले', जानें जनता की प्रतिक्रिया
अंतिम अपडेट: 5 घंटा पहले

फिल्म 'फुले', जो ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले की जीवन गाथा पर आधारित है, आखिरकार लंबे इंतजार के बाद सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। फिल्म के निर्माण और रिलीज से पहले कई विवादों ने इसे घेर लिया था, जिसके कारण इसकी रिलीज डेट भी कई बार टाल दी गई थी। 

Phule Review: फिल्म 'फुले' आखिरकार लंबे इंतजार के बाद सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। यह फिल्म भारतीय समाज सुधारकों, ज्योतिबा फुले और उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले की जीवन यात्रा पर आधारित है, जिन्होंने न केवल भारतीय समाज को जागरूक किया, बल्कि महिलाओं को शिक्षा का अधिकार दिलाने के लिए संघर्ष किया। फिल्म का निर्देशन अनंत महादेवन ने किया है, और इसमें प्रतीक गांधी और पत्रलेखा मुख्य भूमिका में नजर आ रहे हैं। 

हालांकि, फिल्म की रिलीज से पहले ही काफी विवाद उठ चुका था, जिससे इसके प्रदर्शन में देरी हुई। अब जबकि यह फिल्म सिनेमाघरों में प्रदर्शित हो चुकी है, आइए जानते हैं कि फिल्म ने दर्शकों को कितना प्रभावित किया और क्या इसे सफलता मिल पाई है।

फिल्म की रिलीज से पहले हुए विवाद

'फुले' फिल्म के ट्रेलर के रिलीज होते ही विवादों का दौर शुरू हो गया था। विशेषकर ब्राह्मण समुदाय ने फिल्म के कुछ सीन्स पर आपत्ति जताई थी, जिनमें उन्हें अपमानजनक तरीके से पेश किया गया था। इसके बाद सेंसर बोर्ड ने फिल्म की रिलीज डेट को टाल दिया और कुछ सीन में बदलाव किए। 18 अप्रैल को तय की गई रिलीज डेट को स्थगित करके फिल्म की रिलीज को 25 अप्रैल तक के लिए टाल दिया गया। इसके बाद, फिल्म में संशोधन किए गए और अंततः बड़े पर्दे पर यह फिल्म दस्तक दे पाई।

फुले की कहानी: एक सामाजिक परिवर्तन की यात्रा

'फुले' फिल्म ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले के जीवन पर आधारित है, जो भारतीय समाज के सबसे महान समाज सुधारकों में गिने जाते हैं। फिल्म दिखाती है कि कैसे दोनों ने समाज में फैली हुई जातिवाद, भेदभाव और अज्ञानता के खिलाफ संघर्ष किया और विशेषकर महिलाओं के लिए शिक्षा के अधिकार को सुनिश्चित किया। 

सावित्रीबाई फुले, जो भारतीय इतिहास की पहली महिला शिक्षक मानी जाती हैं, और ज्योतिबा फुले ने महिलाओं की शिक्षा और उनके अधिकारों के लिए लंबा संघर्ष किया। इस फिल्म में इन दोनों की कठिनाईयों और संघर्षों को दिखाया गया है, जिन्हें उन्हें अपने समय में समाज द्वारा मिलने वाली असहमति और विरोध का सामना करना पड़ा।

प्रतीक गांधी और पत्रलेखा का शानदार प्रदर्शन

फिल्म की सबसे बड़ी खासियत उसकी शानदार अदाकारी है। प्रतीक गांधी ने ज्योतिबा फुले का किरदार निभाया है और पत्रलेखा ने सावित्रीबाई फुले का। दोनों कलाकारों का प्रदर्शन देखने लायक है। एक यूजर ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में कहा, फुले फिल्म देखी और प्रतीक गांधी और पत्रलेखा के प्रदर्शन से सच में प्रभावित हुआ। प्रतीक गांधी ने अपने करियर की सबसे बेहतरीन बायोपिक पर्फॉर्मेंस दी है। पत्रलेखा भी अपने रोल में बिल्कुल फिट बैठी हैं। दोनों ने मिलकर एक जरूरी और साहसी कहानी को पर्दे पर जीवंत किया है।

वहीं, एक और यूजर ने लिखा, फुले फिल्म समाज को जागरूक करने का एक जरिया है। यह फिल्म सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि एक बड़ी सामाजिक संदेश भी देती है। प्रतीक और पत्रलेखा दोनों ने अभिनय के जरिए उन संघर्षों को दर्शाया है, जो इन दो महान समाज सुधारकों ने अपने जीवन में झेले थे।

फिल्म को मिले मिश्रित रिव्यूज

फिल्म को लेकर दर्शकों के रिव्यूज मिलेजुले रहे हैं। कुछ दर्शक फिल्म के कंटेंट को सराह रहे हैं, जबकि कुछ को फिल्म की कहानी और प्रस्तुति में कुछ कमी महसूस हुई। बैंगलोर जैसे शहरों में फिल्म को सिर्फ एक शो ही मिला, जिसकी वजह से फिल्म का प्रदर्शन सीमित रहा। हालांकि, जहां एक ओर कुछ दर्शक इसे बेहतरीन मान रहे हैं, वहीं कुछ ने इसे थोड़ी धीमी गति की और कुछ मामलों में जरूरत से ज्यादा गंभीर बताया।

फिल्म में जहां एक ओर अभिनय और निर्देशक की कड़ी मेहनत नजर आती है, वहीं दूसरी ओर कुछ दृश्य और संवादों को लेकर समीक्षकों का कहना है कि वे थोड़ा उबाऊ हो सकते हैं, खासकर उन दर्शकों के लिए जो ज्यादा ऐक्शन या रोमांस की उम्मीद रखते हैं।

क्या 'फुले' फिल्म देखने लायक है?

यह सवाल अब दर्शकों और आलोचकों के बीच चर्चा का विषय बन चुका है। 'फुले' एक ऐसी फिल्म है जो सामाजिक परिवर्तन की दिशा में एक प्रेरणादायक कहानी प्रस्तुत करती है। यदि आप भारतीय समाज के इतिहास, शिक्षा और समाज सुधारों के बारे में गहरी जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं, तो यह फिल्म आपके लिए जरूर देखने लायक है। फिल्म की कहानी पूरी तरह से जोतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले के संघर्षों को दर्शाती है, जो आज भी भारतीय समाज के लिए प्रासंगिक हैं।

हालांकि, फिल्म की धीमी गति और कुछ दृश्य शायद सभी दर्शकों को पसंद न आएं, लेकिन अगर आप एक गहरी और भावनात्मक फिल्म की तलाश में हैं, तो 'फुले' आपके लिए एक बेहतरीन विकल्प हो सकती है।

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