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दरोगा की पिटाई पर कोर्ट का इंसाफ: कहा- '85% दृष्टिबाधित को लुटेरा बताकर फंसाया', मिलेगा 2 लाख मुआवजा

दरोगा की पिटाई पर कोर्ट का इंसाफ: कहा- '85% दृष्टिबाधित को लुटेरा बताकर फंसाया', मिलेगा 2 लाख मुआवजा

राजस्थान हाईकोर्ट ने एक संवेदनशील और न्यायपूर्ण फैसले में 85% दृष्टिबाधित अमीचंद को लूट के झूठे मामले से बरी करते हुए राज्य सरकार को ₹2 लाख का मुआवजा देने का निर्देश दिया है। चूरू जिले के सादुलपुर क्षेत्र के भीमसाना गांव निवासी अमीचंद उर्फ मोतिया पर पुलिस ने झूठा केस बनाते हुए उसे लाठी को हथियार बताकर सह-आरोपी बना दिया था। अदालत ने इस मामले को ‘रिपोर्टेबल ऑर्डर’ के रूप में दर्ज करते हुए कहा कि यह निर्णय भविष्य में ऐसी परिस्थितियों में मिसाल बनेगा।

जस्टिस मनोज कुमार गर्ग की एकल पीठ ने अमीचंद की तत्काल रिहाई के आदेश के साथ-साथ यह भी कहा कि चूरू कलेक्टर 15 दिनों के भीतर उसकी दृष्टिबाधिता की जांच कराएं। यदि दिव्यांगता की पुष्टि होती है, तो सरकार को दो माह के भीतर ₹2 लाख मुआवजा देना होगा। यह राशि मानसिक और शारीरिक पीड़ा की भरपाई के रूप में दी जाएगी। साथ ही इस मामले की गलत जांच करने वाले पुलिस अधिकारियों और तारानगर थाने के तत्कालीन एसएचओ पर विभागीय कार्रवाई के भी निर्देश दिए गए हैं।

कैसे फंसा गया दृष्टिबाधित अमीचंद

मार्च 2024 में चूरू जिले के झोथड़ा गांव में विनोद कुमार नामक युवक के अपहरण और लूट की शिकायत पर पुलिस ने रामनिवास, सोनू, प्रताप और दो अज्ञात युवकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी। इस मामले की जांच हेड कांस्टेबल धर्मेंद्र कुमार को सौंपी गई। लेकिन चौंकाने वाली बात यह रही कि एफआईआर में नाम न होने के बावजूद पुलिस ने 80-85% दृष्टिबाधित अमीचंद को भी इस मामले में सह-आरोपी बना डाला।

पुलिस ने दावा किया कि अमीचंद की कथित निशानदेही पर एक डंडा बरामद हुआ, जिसे हथियार बताकर केस का हिस्सा बना लिया गया। इसके बाद अमीचंद को चूरू सेंट्रल जेल भेज दिया गया और उसके खिलाफ चार्जशीट भी दाखिल कर दी गई। अमीचंद की जमानत अर्जी को भी निचली अदालत ने खारिज कर दिया, यह कहते हुए कि उसके खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं।

एसपी की जांच से सामने आई सच्चाई

दृष्टिबाधित अमीचंद को झूठे मामले में फंसाए जाने पर उसके परिजनों ने 6 जून को अधिवक्ता हरदीप सिंह के नेतृत्व में चूरू के एसपी जय यादव से निष्पक्ष जांच की मांग की। एसपी ने मामले की गंभीरता को देखते हुए जांच का जिम्मा आईपीएस अधिकारी निश्चय प्रसाद एम को सौंपा। जांच में साफ हो गया कि अमीचंद का इस मामले से कोई लेना-देना नहीं है।

हालांकि तब तक पुलिस चार्जशीट दाखिल कर चुकी थी और मामला अदालत में जा चुका था। अमीचंद की रिहाई के लिए बीएनएस की धारा 189 (पूर्ववर्ती CrPC 169) के तहत आवेदन भी किया गया, लेकिन उसे 27 जून को तकनीकी आधार पर खारिज कर दिया गया। कोर्ट ने कहा कि न्यायालय की अनुमति के बिना एसपी स्तर पर की गई जांच को कानूनी रूप से मान्य नहीं माना जा सकता।

हाईकोर्ट का हस्तक्षेप और न्याय की जीत

इसके बाद अधिवक्ता कौशल गौतम ने राजस्थान हाईकोर्ट में रिवीजन याचिका दाखिल की। 11 जुलाई 2025 को सुनवाई करते हुए जस्टिस मनोज कुमार गर्ग ने स्पष्ट किया कि अमीचंद निर्दोष है और उसकी तत्काल रिहाई होनी चाहिए। कोर्ट ने निर्देश दिया कि राज्य सरकार उसे ₹2 लाख मुआवजा दे और चूरू कलेक्टर उसकी दिव्यांगता की पुष्टि करें।

अदालत ने यह भी कहा कि इस मामले में लापरवाही बरतने वाले जांच अधिकारी और थानाध्यक्ष के खिलाफ विभागीय कार्रवाई जरूरी है, ताकि भविष्य में किसी निर्दोष के साथ ऐसी नाइंसाफी न हो। कोर्ट के इस फैसले को मानवाधिकारों की रक्षा और न्यायिक प्रणाली की संवेदनशीलता का प्रतीक माना जा रहा है।

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