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अमेरिका से यूरोप तक ट्रंप विरोधी ‘नो किंग्स’ प्रदर्शन, तानाशाही के खिलाफ उठी आवाज

अमेरिका से यूरोप तक ट्रंप विरोधी ‘नो किंग्स’ प्रदर्शन, तानाशाही के खिलाफ उठी आवाज

दुनियाभर में हजारों लोग अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों के विरोध में ‘नो किंग्स’ आंदोलन के तहत सड़कों पर उतरे। प्रदर्शनकारियों ने लोकतंत्र की रक्षा और तानाशाही प्रवृत्तियों के खिलाफ शांतिपूर्ण प्रतिरोध का आह्वान किया।

NO Kings Protest: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों के खिलाफ दुनियाभर में हजारों लोग सड़कों पर उतर आए। वाशिंगटन डीसी से लेकर लंदन, मैड्रिड और बार्सिलोना तक ‘नो किंग्स’ नाम से बड़े स्तर पर प्रदर्शन हुए। प्रदर्शनकारियों ने ट्रंप की माइग्रेशन, शिक्षा और सुरक्षा नीतियों को तानाशाही बताया। आयोजकों के अनुसार, अमेरिका समेत दुनिया के 2600 से अधिक शहरों में यह विरोध प्रदर्शन आयोजित किया गया। उनका कहना है कि यह अभियान लोकतंत्र और संप्रभुता (sovereignty) की रक्षा के लिए है।

नो किंग्स अभियान का उद्देश्य

‘नो किंग्स’ आंदोलन का उद्देश्य यह संदेश देना है कि अमेरिका में कोई राजा नहीं होता। यह देश जनता की शक्ति से चलता है। प्रदर्शन के आयोजकों ने कहा कि ट्रंप प्रशासन की नीतियां लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के खिलाफ हैं। उनका मानना है कि ट्रंप का शासन एक व्यक्ति की शक्ति को बढ़ावा दे रहा है, जिससे लोकतांत्रिक संस्थानों की स्वतंत्रता खतरे में पड़ रही है।

अमेरिका और यूरोप में विरोध

अमेरिका के लगभग सभी बड़े शहरों में यह आंदोलन देखा गया। वाशिंगटन डीसी, न्यूयॉर्क, शिकागो और लॉस एंजेलिस में हजारों लोग सड़कों पर उतरे। लंदन, स्पेन के मैड्रिड और बार्सिलोना जैसे यूरोपीय शहरों में भी ‘नो किंग्स’ प्रदर्शन हुए। वाशिंगटन में प्रदर्शनकारियों ने पेंसिल्वेनिया एवेन्यू पर मार्च किया। कई लोगों ने रंग-बिरंगी पोशाकें पहन रखी थीं और हाथों में ट्रंप विरोधी बैनर लिए हुए थे। प्रदर्शन में शामिल कुछ लोगों ने ‘डेमोक्रेसी नॉट मोनार्की’ (democracy not monarchy) जैसे नारे लगाए।

संगठनों की बड़ी भागीदारी

इस विरोध प्रदर्शन को आयोजित करने में 300 से अधिक स्थानीय संगठनों ने भूमिका निभाई। अमेरिकी सिविल लिबर्टीज यूनियन (ACLU) ने बताया कि उसने हज़ारों वॉलंटियर्स को ट्रेनिंग दी है ताकि वे प्रदर्शन के दौरान मार्शल की भूमिका निभा सकें। इन ट्रेनिंग में कानूनी जानकारी और तनाव कम करने के तरीकों पर विशेष ध्यान दिया गया। सोशल मीडिया पर चलाए गए प्रचार अभियानों ने भी इस आंदोलन को बड़ी ताकत दी।

ट्रंप की सख्त नीतियों का विरोध

डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति पद संभालने के 10 महीने के भीतर कई सख्त नीतियां लागू कीं। माइग्रेशन (migration) पर उन्होंने कड़े कदम उठाए और कई देशों से आने वाले लोगों के प्रवेश पर पाबंदी बढ़ाई। इसके अलावा, विश्वविद्यालयों में विविधता नीति (diversity policy) को लेकर उन्होंने संघीय अनुदान घटाने की चेतावनी दी। ट्रंप प्रशासन ने कई राज्यों में नेशनल गार्ड सैनिकों की तैनाती को मंजूरी दी। आलोचकों का कहना है कि इन कदमों से अमेरिका में सामाजिक विभाजन बढ़ा है और लोकतांत्रिक मानदंड कमजोर हुए हैं।

मैं राजा नहीं हूं – ट्रंप

प्रदर्शनों के जवाब में राष्ट्रपति ट्रंप ने सार्वजनिक रूप से कुछ नहीं कहा, लेकिन फॉक्स बिजनेस को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि “वे मुझे राजा कह रहे हैं, लेकिन मैं राजा नहीं हूं।” यह बयान सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुआ। ट्रंप का यह बयान उनके विरोधियों के आरोपों को और प्रबल कर गया। विरोधियों का कहना है कि ट्रंप अपने फैसलों में सलाह और सहमति की प्रक्रिया को दरकिनार कर रहे हैं।

शांतिपूर्ण प्रतिरोध की अपील

‘नो किंग्स’ अभियान की आयोजक लीह ग्रीनबर्ग ने कहा कि अमेरिका की पहचान ही यही है कि यहां लोग अपने नेताओं से असहमति जता सकते हैं। उन्होंने कहा कि यह आंदोलन किसी व्यक्ति के खिलाफ नहीं बल्कि तानाशाही प्रवृत्तियों के खिलाफ एक शांतिपूर्ण प्रतिरोध है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में लोगों का अधिकार है कि वे आवाज उठाएं और शासन से जवाब मांगें।

सोशल मीडिया पर भारी समर्थन

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर ‘नो किंग्स’ हैशटैग ट्रेंड करता रहा। ट्विटर, इंस्टाग्राम और फेसबुक पर लाखों लोगों ने इस आंदोलन से जुड़ी तस्वीरें और वीडियो साझा किए। कई मशहूर हस्तियों ने भी इसका समर्थन किया। वीडियो मैसेज के जरिए कलाकारों और लेखकों ने लोगों से शांतिपूर्ण तरीके से लोकतंत्र की रक्षा के लिए जुड़ने की अपील की।

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