पुरी की ऐतिहासिक रथयात्रा के बाद जब भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा अपने मूल मंदिर में लौटते हैं, तो एक बेहद खास रस्म होती है 'सुना बेसा'। इस रस्म को देखने लाखों श्रद्धालु मंदिर परिसर और रथों के पास एकत्र होते हैं। आज यानी आषाढ़ शुक्ल एकादशी को भगवानों को चढ़ाया जाएगा सोने का श्रृंगार, जिसे 'सुना बेसा' कहा जाता है।
रथ पर ही सजते हैं भगवान
यह रस्म विशेष रूप से रथयात्रा के दौरान ही रथों पर मनाई जाती है। जब भगवान तीनों भाई-बहन अपने मंदिर लौटते हैं, तो सिंहद्वार के सामने रथों पर ही उन्हें सोने के बने खास आभूषणों से सजाया जाता है। इस दिन को 'बड़ा तधौ बेसा' भी कहा जाता है। भगवानों के मुकुट, हाथ, बाजू, गदा, चक्र और अन्य अंगों पर सोने के आभूषण चढ़ाए जाते हैं, जो कि देखने में अत्यंत भव्य होते हैं।
‘सुना बेसा’ शब्द का अर्थ
‘सुना’ का मतलब है सोना और ‘बेसा’ यानी वेशभूषा या सजावट। इस दिन भगवानों को सिर से पांव तक सोने के गहनों से सजाया जाता है। भक्तों के लिए यह बेहद दुर्लभ और पावन दृश्य होता है क्योंकि यह रूप साल में केवल एक बार रथ पर और चार बार मंदिर के भीतर देखने को मिलता है।
साल में पांच बार होती है यह रस्म
हालांकि 'सुना बेसा' की रस्म साल में कुल पांच बार मनाई जाती है, लेकिन रथयात्रा के दौरान रथों पर होने वाली सुना बेसा सबसे भव्य और प्रसिद्ध होती है। बाकी चार बार यह मंदिर के अंदर रत्नसिंहासन पर होती है।
- विजया दशमी के दिन
- कार्तिक पूर्णिमा के दिन
- पौष पूर्णिमा के दिन
- माघ पूर्णिमा के दिन
- आषाढ़ शुक्ल एकादशी (रथयात्रा के बाद)
इतिहास से जुड़ा है यह परंपरा
इस रस्म की शुरुआत 15वीं सदी में ओडिशा के प्रसिद्ध गजपति राजा कपिलेंद्रदेव के समय से मानी जाती है। कहा जाता है कि राजा ने दक्षिण भारत के कई युद्धों में विजय प्राप्त कर 16 बैलगाड़ियों में भरकर सोना, चांदी और रत्न जीतकर पुरी लाए थे। जब वे भगवान जगन्नाथ के मंदिर पहुंचे, तो सारा खजाना भगवान को समर्पित कर दिया। फिर पुजारियों को आदेश दिया गया कि इनसे भगवानों के लिए सुंदर आभूषण तैयार किए जाएं। तभी से हर साल रथयात्रा के बाद भगवानों को इन आभूषणों से सजाया जाता है।
कड़ी सुरक्षा में निकलते हैं आभूषण
मंदिर के भीतर इन गहनों को ‘भीतर भंडार घर’ नामक सुरक्षित खजाने में रखा जाता है। सुना बेसा वाले दिन कार्यक्रम से करीब एक घंटा पहले इन गहनों को बाहर निकाला जाता है। इस प्रक्रिया में सशस्त्र पुलिस, मंदिर प्रशासन और भंडार पुजारी मौजूद रहते हैं। आभूषणों को पुष्पलक और दैतापति पुजारियों को सौंपा जाता है जो भगवानों को सजाते हैं।
कौन-कौन से आभूषण होते हैं शामिल
सुना बेसा में भगवानों को कुल मिलाकर 20 से अधिक तरह के आभूषणों से सजाया जाता है। इनमें शामिल होते हैं
- सुन मुकुट (सोने का मुकुट)
- सुन हस्त (सोने के हाथ)
- सुन पायर (सोने के पैर)
- सुन मयूर चंद्रिका (मोर पंख की आकृति में गहना)
- सुन कुंडल (गोल लटकते झुमके)
- सुन माला (सोने की माला)
- पद्म माला (कमल के फूल की आकृति वाली माला)
- सुन चक्र (सोने का चक्र)
- सुन गदा (गदा)
- सुन पद्म (सोने का कमल)
- रूपा शंख (चांदी की शंख)
भगवान जगन्नाथ के दाहिने हाथ में चक्र और बाएं में शंख सजाया जाता है, जबकि बलभद्र के दाहिने हाथ में गदा और बाएं में हल। देवी सुभद्रा को भी अलग-अलग प्रकार की सोने की मालाओं और मुकुट से सजाया जाता है।
दर्शन के लिए उमड़ती है भक्तों की भीड़
सुना बेसा के दर्शन को शुभ माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जो भी भक्त इस दिन भगवान के इस रूप के दर्शन करता है, उसे विशेष पुण्य प्राप्त होता है। यही कारण है कि हर साल लाखों श्रद्धालु इस दिन पुरी के श्रीमंदिर के बाहर एकत्र होते हैं। कई लोग तो एक दिन पहले से ही रथों के सामने डेरा डालकर बैठ जाते हैं, ताकि भगवानों के इस अनुपम स्वरूप के साक्षात दर्शन कर सकें।
भक्ति और परंपरा का अद्भुत संगम
सुना बेसा ना केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि यह ओडिशा की सांस्कृतिक विरासत और श्रद्धा का प्रतीक भी है। यह रस्म दिखाती है कि किस तरह भक्ति, समर्पण और परंपरा एक साथ मिलकर आस्था के इस भव्य पर्व को जीवंत बनाते हैं।