Pune

Chhath Puja 2025: निर्जला व्रत टूट जाए तो क्या करें? जानें शास्त्रों में बताए उपाय

Chhath Puja 2025: निर्जला व्रत टूट जाए तो क्या करें? जानें शास्त्रों में बताए उपाय

छठ पूजा में व्रती 36 घंटे तक निर्जला उपवास रखकर सूर्य देव और छठी मैया की उपासना करते हैं. हालांकि, कई बार कमजोरी, बीमारी या किसी अन्य कारण से यह व्रत अधूरा रह जाता है. शास्त्रों के अनुसार, ऐसी स्थिति में घबराने की जरूरत नहीं है. छठी मैया से क्षमा मांगकर और विधि से प्रायश्चित करने पर व्रत का दोष दूर किया जा सकता है.

Chhath Puja: भारत में मनाई जा रही छठ पूजा का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व बेहद गहरा है. बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और देश के अन्य हिस्सों में यह पर्व बड़े श्रद्धा और अनुशासन के साथ मनाया जाता है. रविवार को खरना के साथ व्रतियों ने 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू किया, जो उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ पूरा होगा. इस कठोर तप के दौरान कई बार स्वास्थ्य कारणों से व्रत टूट जाता है, जिससे व्रती चिंता में पड़ जाते हैं. लेकिन धार्मिक ग्रंथों में बताया गया है कि अगर किसी वजह से व्रत अधूरा रह जाए, तो छठी मैया से क्षमा मांगकर उचित विधि से प्रायश्चित करने से दोष समाप्त किया जा सकता है.

36 घंटे का कठिन और पवित्र व्रत

छठ पूजा में व्रती 36 घंटे तक निर्जला यानी बिना पानी और भोजन के उपवास रखते हैं. इस दौरान व्रती मन, शरीर और आत्मा की शुद्धि के लिए तप करते हैं. पूजा का यह संकल्प केवल शारीरिक सहनशक्ति का परीक्षण नहीं, बल्कि आत्मसंयम और भक्ति की पराकाष्ठा भी है.
व्रती इस दौरान सूर्य देव और छठी मैया से परिवार की सुख-समृद्धि और संतानों की दीर्घायु की कामना करते हैं. खरना के प्रसाद ग्रहण करने के बाद यह उपवास शुरू होता है, जिसमें अगले दो दिनों तक केवल पूजा और अर्घ्य के समय ही स्नान-ध्यान और भक्ति कार्य किए जाते हैं.

क्यों टूट जाता है व्रत?

छठ पूजा के दौरान शरीर पर अत्यधिक शारीरिक दबाव पड़ता है. लंबे समय तक भूखे-प्यासे रहने से कई बार लोगों को कमजोरी, सिरदर्द या ब्लड प्रेशर जैसी दिक्कतें हो जाती हैं. कभी-कभी यह व्रत बुजुर्गों या बीमार लोगों से अनजाने में टूट भी जाता है.
ऐसे में लोगों के मन में डर रहता है कि कहीं छठी मैया नाराज न हो जाएं या व्रत का असर खत्म न हो जाए. धर्मशास्त्रों में स्पष्ट कहा गया है कि अगर व्रत किसी मजबूरी या बीमारी की वजह से टूट जाए, तो इसे ‘भूलवश खंडित व्रत’ माना जाता है, जिसका दोष प्रायश्चित द्वारा दूर किया जा सकता है.

शास्त्रों में बताए गए प्रायश्चित के उपाय

अगर किसी व्रती का छठ व्रत किसी कारण अधूरा रह जाए, तो घबराने की जरूरत नहीं होती. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, सबसे पहले व्रती को स्नान कर शुद्ध होना चाहिए. इसके बाद शांत मन से छठी मैया के समक्ष दीप जलाकर क्षमा याचना करनी चाहिए.
व्रती को मन ही मन कहना चाहिए 
हे छठी मैया, मुझसे अनजाने में भूल हुई है, कृपा कर मुझे क्षमा करें. मैं पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ दोबारा आपका व्रत करने का संकल्प लेता हूं.
इसके बाद पंडित या ज्ञानी व्यक्ति से सलाह लेकर दान करना शुभ माना जाता है. यह दान अनाज, वस्त्र या किसी जरूरतमंद को भोजन कराने के रूप में हो सकता है.

छठी मैया नाराज नहीं होतीं, देती हैं आशीर्वाद

धर्माचार्यों के अनुसार, छठी मैया मां के समान होती हैं. जिस तरह मां अपने बच्चों की गलतियों को माफ कर देती है, वैसे ही छठी मैया भी अपने भक्तों की अनजानी भूलों को क्षमा कर देती हैं.
अगर किसी व्रती का व्रत अधूरा रह जाए, तो उन्हें आत्मग्लानि में नहीं डूबना चाहिए, बल्कि अगली बार और अधिक श्रद्धा से व्रत करने का संकल्प लेना चाहिए.
शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि व्रत का मूल भाव भक्ति और निष्ठा में निहित है. अगर भावना सच्ची हो, तो भूलवश हुई चूक का प्रभाव समाप्त हो जाता है.

दान और क्षमा याचना का महत्व

व्रत टूटने की स्थिति में क्षमा याचना के साथ-साथ दान करने की परंपरा भी है. यह माना जाता है कि दान से मन का दोष दूर होता है और व्रती की श्रद्धा पूर्णता प्राप्त करती है.
पंडितों का कहना है कि अगर व्रती किसी कारण छठ व्रत पूरा नहीं कर पाया, तो अगले वर्ष व्रत पुनः करने का संकल्प लेना चाहिए. ऐसा करने से पूर्व व्रत का दोष समाप्त हो जाता है.

संध्या और प्रातः अर्घ्य का महत्व

छठ पूजा में दो अर्घ्य दिए जाते हैं संध्या अर्घ्य और प्रातः अर्घ्य. संध्या अर्घ्य डूबते सूर्य को दिया जाता है, जबकि प्रातः अर्घ्य उगते सूर्य को. यह अर्घ्य सिर्फ पूजा का हिस्सा नहीं, बल्कि प्रकृति और ऊर्जा के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक भी है.
इस व्रत में जल, प्रकाश और भक्ति तीनों का संगम होता है. यही कारण है कि इसे सबसे कठिन और सबसे शुद्ध व्रतों में गिना जाता है.

छठ पूजा के दौरान सावधानियां

व्रतियों को छठ पूजा के दौरान विशेष सावधानियां रखनी चाहिए. शरीर कमजोर हो तो अर्घ्य या घाट की पूजा किसी परिजन की मदद से करें. अगर स्वास्थ्य गंभीर रूप से प्रभावित हो, तो डॉक्टर की सलाह जरूर लें. छठ पूजा का उद्देश्य तपस्या के साथ-साथ परिवार और समाज के कल्याण की भावना को मजबूत करना है, न कि शरीर को नुकसान पहुंचाना.

धार्मिक दृष्टि से व्रत की भावना सर्वोपरि

धार्मिक दृष्टि से व्रत का अर्थ केवल उपवास नहीं, बल्कि मन की शुद्धि और संयम है. अगर किसी अनजाने कारण से व्रत टूट जाए, तो यह मान लिया जाता है कि व्रती की नीयत और भक्ति महत्वपूर्ण है. छठी मैया की कृपा सच्चे मन से प्रार्थना करने वालों पर हमेशा बनी रहती है.

Leave a comment