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चंपारण में गांधी के परपोते और मुखिया में तीखी नोकझोंक, महागठबंधन को वोट देने की अपील पर मचा बवाल

चंपारण में गांधी के परपोते और मुखिया में तीखी नोकझोंक, महागठबंधन को वोट देने की अपील पर मचा बवाल

बिहार के मोतिहारी जिले में रविवार को आयोजित एक कार्यक्रम उस समय विवादों में घिर गया, जब महात्मा गांधी के परपोते तुषार गांधी की मौजूदगी में मंच से महागठबंधन को वोट देने की खुली अपील कर दी गई। यह कार्यक्रम चंपारण सत्याग्रह की स्मृति में तुरकौलिया में उस ऐतिहासिक नीम के पेड़ के नीचे आयोजित किया गया था, जहां कभी बापू ने किसानों की समस्याएं सुनी थीं। तुषार गांधी यहां अपनी पदयात्रा के क्रम में पहुंचे थे, लेकिन मंच से दिए गए एक राजनीतिक बयान ने पूरे माहौल को गरमा दिया।

जैसे ही मंच पर मौजूद एक वक्ता ने महागठबंधन के पक्ष में मतदान की अपील की, स्थानीय मुखिया बिनय सिंह भड़क उठे। उन्होंने मंच से ही विरोध जताते हुए इसे गांधीवाद की आड़ में राजनीति करार दिया और तुषार गांधी पर भी तीखे शब्दों में हमला बोला। उन्होंने कहा कि बापू की विरासत को राजनीतिक मकसद के लिए इस्तेमाल करना दुर्भाग्यपूर्ण है। मुखिया ने यहां तक कह दिया कि आप गांधी के वंशज नहीं हो सकते, आपको शर्म आनी चाहिए।

बीच-बचाव के बाद तुषार गांधी को छोड़ना पड़ा स्थल

इस अप्रत्याशित विवाद के चलते कार्यक्रम का माहौल बिगड़ गया। तुषार गांधी और स्थानीय मुखिया के बीच तीखी नोकझोंक हो गई, जिसे शांत करने के लिए आयोजकों और गांधीवादी विचारधारा से जुड़े लोगों को हस्तक्षेप करना पड़ा। लेकिन बात इतनी आगे बढ़ चुकी थी कि आखिरकार तुषार गांधी को कार्यक्रम स्थल छोड़ना पड़ा।

माहौल शांत होने के बाद तुषार गांधी ने मीडिया से बातचीत में अपनी नाराजगी जताई। उन्होंने कहा कि यह सिर्फ उनका नहीं, बल्कि गांधीवाद और लोकतंत्र का अपमान है। मुझे यहां बुलाकर अपमानित किया गया, लेकिन मैं डरने वाला नहीं हूं। यह पदयात्रा गांधी के विचारों को लोगों तक पहुंचाने का माध्यम है और मैं इसे पूरे देश में जारी रखूंगा। तुषार गांधी ने स्थानीय मुखिया को गोडसे की सोच से प्रेरित बताते हुए उनके व्यवहार की निंदा की।

गांधी स्मृति में शुरू हुई यात्रा

गौरतलब है कि तुषार गांधी की यह यात्रा 12 जुलाई को पश्चिम चंपारण के भितिहरवा आश्रम से शुरू हुई थी। यह ऐतिहासिक पदयात्रा चंपारण सत्याग्रह की स्मृति को जीवंत रखने और गांधीवादी मूल्यों को जन-जन तक पहुंचाने के उद्देश्य से शुरू की गई थी। लेकिन तुरकौलिया में मंच पर हुई राजनीतिक बयानबाज़ी और उसके बाद पैदा हुआ विवाद इस पहल पर सवाल खड़े करता है।

स्थानीय लोग भी इस पूरे घटनाक्रम को लेकर दो हिस्सों में बंट गए हैं। एक वर्ग इसे बापू की स्मृति के साथ राजनीतिक छेड़छाड़ मानता है, तो दूसरा तुषार गांधी के समर्थन में खड़ा नजर आया। हालांकि अब जिला प्रशासन और आयोजकों की कोशिश है कि आगे ऐसे विवाद न हों और यात्रा गांधी के विचारों पर ही केंद्रित रहे।

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