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ईरान ने IAEA से तोडा नाता: परमाणु हथियारों की रेस होगी तेज़! अमेरिका-इजरायल हमलों ने बढ़ाया तनाव

ईरान ने IAEA से तोडा नाता: परमाणु हथियारों की रेस होगी तेज़! अमेरिका-इजरायल हमलों ने बढ़ाया तनाव

ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियन ने बुधवार को अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के साथ ईरान के सहयोग को निलंबित करने का आदेश जारी किया। यह कदम ऐसे समय पर उठाया गया जब हाल ही में अमेरिकी हवाई हमलों में ईरान के कुछ महत्वपूर्ण परमाणु ठिकानों को निशाना बनाया गया था।

तेहरान: मध्य पूर्व में एक बार फिर हालात बेहद गंभीर होते दिख रहे हैं। ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियन ने बुधवार को एक ऐसा फैसला लिया, जिसने पूरी दुनिया में हलचल पैदा कर दी। राष्ट्रपति ने देश को अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के साथ चल रहे सहयोग को तत्काल प्रभाव से निलंबित करने का आदेश दिया है। यह कदम ऐसे समय लिया गया है जब अमेरिका और इजरायल ने बीते दिनों ईरान के महत्वपूर्ण परमाणु ठिकानों पर जोरदार हवाई हमले किए थे। ईरान की सरकारी मीडिया ने राष्ट्रपति के आदेश की पुष्टि की और इसे संसद द्वारा पारित एक कानून के मुताबिक बताया, जिसे संवैधानिक निगरानी संस्था ने भी मंजूरी दे दी।

दरअसल, ईरान लंबे समय से परमाणु कार्यक्रम को लेकर पश्चिमी देशों के निशाने पर रहा है। 13 जून 2025 को इजरायल ने ईरान के सैन्य और परमाणु प्रतिष्ठानों पर बड़े पैमाने पर हमले किए, जिनमें नतांज, इस्फहान और फोर्डो जैसे अहम यूरेनियम संवर्धन केंद्र शामिल थे। इसके बाद 22 जून को अमेरिका ने भी इसी अभियान को आगे बढ़ाते हुए हमले किए। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इन हमलों को “ईरान के परमाणु बुनियादी ढांचे को पूरी तरह तबाह करने वाला” बताया था। हालांकि IAEA प्रमुख राफेल ग्रॉसी और अमेरिकी खुफिया एजेंसियों का कहना है कि इन हमलों से ईरान का परमाणु कार्यक्रम सिर्फ कुछ महीनों के लिए रुका है, स्थायी रूप से नहीं।

संसद ने दिया था समर्थन, अब राष्ट्रपति ने दिया आदेश

25 जून 2025 को ईरानी संसद ने 221-0 के भारी बहुमत से IAEA से सहयोग खत्म करने वाला बिल पारित किया। केवल एक सांसद ने वोटिंग में भाग नहीं लिया। इसके बाद इसे गार्जियन काउंसिल और देश की सर्वोच्च सुरक्षा परिषद ने भी पास किया। ईरान ने कहा था कि जब तक उसके परमाणु प्रतिष्ठानों की सुरक्षा की अंतरराष्ट्रीय गारंटी नहीं मिलती, वह IAEA को किसी भी तरह की रिपोर्टिंग नहीं देगा।

IAEA और पश्चिमी देशों की चिंता बढ़ी

IAEA का कहना है कि ईरान 60% तक यूरेनियम संवर्धन कर चुका है, जो परमाणु हथियार बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जाता है। संगठन के मुताबिक ईरान के पास इतना संवर्धित यूरेनियम मौजूद है जिससे वह कुछ ही हफ्तों में परमाणु बम तैयार कर सकता है। मई 2024 तक ईरान 60% शुद्धता वाला यूरेनियम तैयार कर रहा था, जबकि आमतौर पर बिजली उत्पादन जैसे शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए 3-4% शुद्धता ही पर्याप्त मानी जाती है।

IAEA ने इसी महीने 12 जून 2025 को एक प्रस्ताव पारित कर कहा था कि ईरान 2019 से अपनी अप्रसार (Non-Proliferation) जिम्मेदारियों का पालन नहीं कर रहा है, और अगर ऐसा चलता रहा तो मामला संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद तक भेजा जा सकता है। इसका जवाब देते हुए ईरान ने नए यूरेनियम संवर्धन संयंत्र खोलने और उन्नत सेंट्रीफ्यूज लगाने की घोषणा की थी।

हमलों पर नाराज ईरान, IAEA पर भेदभाव का आरोप

ईरान का कहना है कि IAEA ने अमेरिका और इजरायल द्वारा किए गए हमलों की निंदा नहीं की, जिससे उसकी निष्पक्षता पर सवाल खड़े होते हैं। ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह अली खामेनेई ने 26 जून को एक भाषण में कहा था, “हमने अमेरिका और इजरायल दोनों को करारा जवाब दिया है, और आगे भी देंगे।” उन्होंने संकेत दिया कि जब तक IAEA निष्पक्ष भूमिका नहीं निभाएगा, ईरान उस पर भरोसा नहीं करेगा।

IAEA के महानिदेशक राफेल ग्रॉसी ने हालांकि ईरान के इस फैसले को बेहद चिंताजनक बताया और कहा कि इससे परमाणु कार्यक्रम पर निगरानी लगभग असंभव हो जाएगी। उनका कहना था कि, अगर ईरान ने सहयोग पूरी तरह बंद किया तो उसे दोबारा पारदर्शिता के दायरे में लाना मुश्किल होगा।

वैश्विक राजनीति में उबाल

ईरान के इस कदम पर अमेरिका और इजरायल ने नाराजगी जाहिर की है। दोनों देशों का मानना है कि इससे ईरान के परमाणु हथियार हासिल करने की आशंका कई गुना बढ़ गई है। दूसरी ओर रूस और चीन ने IAEA की भूमिका पर सवाल खड़े करते हुए ईरान के कदम को “संप्रभु अधिकार” बताया है। विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर IAEA की निगरानी हटी, तो ईरान का परमाणु कार्यक्रम तेजी से आगे बढ़ सकता है, और यह पूरे मध्य पूर्व में हथियारों की दौड़ को भड़का सकता है।

कई रणनीतिक मामलों के जानकारों का मानना है कि अगर आने वाले महीनों में कूटनीतिक प्रयास न हुए तो अमेरिका, इजरायल और ईरान के बीच टकराव बढ़ने का खतरा रहेगा। संयुक्त राष्ट्र भी हालात पर नजर बनाए हुए है, लेकिन सवाल यह है कि क्या ईरान को दोबारा IAEA से जुड़ने के लिए मनाया जा सकेगा? या फिर यह मामला इतनी दूर निकल जाएगा कि भविष्य में मध्य पूर्व के लिए परमाणु संकट और गहराएगा।

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