गोस्वामी तुलसीदास, हिंदी साहित्य और रामभक्ति के महान संत, रामचरितमानस और हनुमान चालीसा के रचयिता थे। उनके काव्य और भक्ति ने समाज, धर्म और लोक संस्कृति पर अमिट प्रभाव छोड़ा और रामलीला की परंपरा को जन-जन तक पहुँचाया।
Tulsidas: भारत के सांस्कृतिक और धार्मिक इतिहास में ऐसे संतों की गिनती होती है जिन्होंने अपने लेखन, भक्ति और जीवनशैली से समाज और धर्म पर अमिट छाप छोड़ी। ऐसे ही महान संत थे गोस्वामी तुलसीदास, जिन्हें उनके भक्तगण प्यार से “रामभक्त कवि” कहते हैं। तुलसीदास का जीवन भक्ति, ज्ञान और काव्य रचना का अद्भुत संगम है। उन्होंने न केवल हिंदी साहित्य को समृद्ध किया बल्कि रामकथा को आम जनता के बीच पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
प्रारंभिक जीवन और जन्म
तुलसीदास का जन्म 11 अगस्त 1511 को हुआ। उनके जन्म का नाम रंबोला दुबे रखा गया था, जिसका अर्थ है “वह जो राम का उच्चारण करता है।” जन्म से ही तुलसीदास में असाधारण गुण थे। ऐसा कहा जाता है कि वे बारह महीने तक गर्भ में रहे और जन्म के समय उनके सभी 32 दांत थे। जन्म के समय उन्होंने रोना नहीं, बल्कि "राम" शब्द उच्चारित किया। उनके माता-पिता थे हुलसी और आत्माराम दुबे, और वे सायुपारीण ब्राह्मण वंश के थे।
किंवदंती के अनुसार, उनके जन्म का समय कुछ असामान्य और अशुभ ज्योतिषीय परिस्थितियों वाला था। इसलिए, चौथे दिन उन्हें चुनिया नामक एक घरेलू सहायिका के पास भेज दिया गया। चुनीया ने तुलसीदास की देखभाल पांच साल से अधिक समय तक की। इसके बाद उनकी मां-सी हो गई और तुलसीदास के जीवन में उनकी आध्यात्मिक यात्रा की नींव रखी गई।
शिक्षा और प्रारंभिक भक्ति
तुलसीदास ने अपना प्रारंभिक शिक्षा यात्रा अयोध्या में की। उन्होंने संस्कृत भाषा, चार वेद, छह वेदांग, ज्योतिष और भारतीय दर्शन के छह प्रमुख स्कूलों का अध्ययन किया। उनके गुरु नरहरिदास और बाद में शेष सनातन थे। यह शिक्षा उन्हें न केवल विद्वान बनाती थी बल्कि उनके जीवन में रामभक्ति की गहन समझ का भी आधार बनी।
तुलसीदास ने बचपन में ही रामकथा का अध्ययन करना शुरू कर दिया था। उनके गुरु ने उन्हें रामायण सुनाई, और यहीं से उनके मन में भगवान राम के प्रति गहन भक्ति विकसित हुई। उन्होंने जीवनभर रामकथा का प्रचार किया और इसे आम जनता तक पहुँचाया।
विवाह और गृहस्थ जीवन
कई ग्रंथों के अनुसार, तुलसीदास का विवाह रत्नावली से हुआ था। उनके एक पुत्र थे, तारक, जो छोटी उम्र में ही असमय निधन हो गए। विवाह के समय तुलसीदास की भक्ति और सांसारिक जीवन के बीच द्वंद्व देखा गया। एक कथा के अनुसार, रत्नावली ने तुलसीदास से कहा कि अगर वह भगवान राम के प्रति उनकी भक्ति में उतनी ही निष्ठा रखते जितनी घर के प्रति रखते, तो मोक्ष प्राप्त कर सकते थे। इस कथन ने तुलसीदास को गृहस्थ जीवन से सन्न्यास की ओर प्रेरित किया।
कुछ विद्वानों का मानना है कि तुलसीदास ने कभी विवाह नहीं किया और प्रारंभ से ही ब्रह्मचर्य का पालन किया। इस विषय पर मतभेद हैं, लेकिन यह स्पष्ट है कि तुलसीदास ने जीवन का अधिकांश समय साधु जीवन में बिताया।
रामभक्ति और महान काव्य रचनाएँ
तुलसीदास का जीवन रामभक्ति और साहित्य रचना में समर्पित रहा। उन्होंने हिंदी और अवधी भाषा में कई महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखे।
- रामचरितमानस
तुलसीदास की सबसे प्रमुख कृति रामचरितमानस है। यह संस्कृत रामायण का अवधी भाषा में रूपांतर है, जो आम जनता के लिए समझने और सुनने में आसान है। रामचरितमानस में भगवान राम के जीवन का वर्णन, उनके आदर्श, धर्म और भक्ति का मार्ग स्पष्ट रूप से प्रस्तुत किया गया है।
रामचरितमानस ने समाज में धर्मिक जागरूकता पैदा की और रामकथा को घर-घर में पहुँचाया। तुलसीदास ने इस ग्रंथ में न केवल कथा का विवरण किया, बल्कि इसमें साधुता, भक्ति और नैतिक शिक्षा का भी समावेश किया। - हनुमान चालीसा
तुलसीदास ने हनुमान चालीसा की रचना भी की। यह छोटी-सी 40-चौपाई वाली कविता भगवान हनुमान के गुणों और भक्ति का बखान करती है। हनुमान चालीसा आज भी भारत और विदेशों में करोड़ों भक्तों द्वारा प्रतिदिन पढ़ी जाती है। - अन्य रचनाएँ
तुलसीदास की अन्य कृतियों में विनय पत्रिका, गीतावली, कवितावली, और हनुमान नायक शामिल हैं। इन ग्रंथों में उन्होंने भक्ति, दार्शनिक चिंतन और सामाजिक संदेशों को सरल भाषा में प्रस्तुत किया।
की अन्य कृतियों में विनय पत्रिका, गीतावली, कवितावली, और हनुमान नायक शामिल हैं। इन ग्रंथों में उन्होंने भक्ति, दार्शनिक चिंतन और सामाजिक संदेशों को सरल भाषा में प्रस्तुत किया।
तुलसीदास और रामलीला
तुलसीदास ने रामलीला की शुरुआत भी की। यह एक लोक नाटक है जिसमें रामायण की कथा मंचन के रूप में प्रस्तुत की जाती है। रामलीला ने समाज में भक्ति और नैतिकता की शिक्षा को लोकप्रिय बनाया। आज भी रामलीला हर वर्ष भारत के कई हिस्सों में आयोजित होती है, और यह तुलसीदास की विरासत का जीवंत प्रमाण है।
तुलसीदास के चमत्कार और अध्यात्मिक दृष्टि
तुलसीदास के जीवन से जुड़ी कई कथाएँ प्रसिद्ध हैं, जिन्हें लोग उनके चमत्कार मानते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख कथाएँ इस प्रकार हैं:
- मृतक का जीवनदान – एक ब्राह्मण के मृतक होने पर तुलसीदास ने उसे रामनाम जप के माध्यम से जीवित कर दिया।
- सम्राट अकबर के समक्ष हनुमान चालीसा – कहा जाता है कि तुलसीदास को अकबर के दरबार में बुलाया गया, जहां उन्होंने हनुमान चालीसा का पाठ किया। इसके परिणामस्वरूप दरबार में हनुमान के अनुयायियों का संरक्षण हुआ।
- हनुमान और राम का दर्शन – तुलसीदास ने अपने जीवन में भगवान हनुमान और राम के दर्शन प्राप्त किए। कहा जाता है कि उन्होंने सीधे भगवान राम के दर्शन पाकर उनके प्रति अपनी भक्ति और निष्ठा को और अधिक दृढ़ किया।
ये कथाएँ उनकी गहन भक्ति, आध्यात्मिक शक्ति और समाज में धर्म के प्रचार का प्रतीक हैं।
तुलसीदास का दर्शन
तुलसीदास का जीवन और काव्य केवल साहित्यिक मूल्य नहीं रखते, बल्कि उनका दर्शन भी महत्वपूर्ण है। उन्होंने अपने ग्रंथों में बताया कि भक्ति, सच्चाई और नैतिकता जीवन का मूल आधार हैं। उनके अनुसार:
- सच्ची भक्ति केवल निष्ठा और प्रेम से होती है।
- ईश्वर का ध्यान और रामनाम का स्मरण मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग है।
- जीवन का उद्देश्य केवल सांसारिक सुख नहीं, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति और सेवा भाव है।
तुलसीदास का प्रभाव और विरासत
तुलसीदास की रचनाएँ और उनके विचार आज भी जीवंत हैं। उनके योगदान का प्रभाव निम्नलिखित क्षेत्रों में स्पष्ट दिखाई देता है:
- साहित्यिक योगदान – हिंदी साहित्य में उनकी रचनाएँ आज भी आदर्श मानी जाती हैं।
- धार्मिक और सामाजिक प्रभाव – रामचरितमानस और हनुमान चालीसा ने भक्ति आंदोलन को जन-जन तक पहुँचाया।
- लोक संस्कृति और कला – रामलीला, लोकगीत, और भारतीय नाट्यकला पर उनकी छाप स्पष्ट है।
- संगीत और भजन – तुलसीदास की रचनाओं ने भजन और काव्य संगीत को समृद्ध किया।
तुलसीदास ने केवल अपनी साहित्यिक प्रतिभा से समाज को संवारा ही नहीं, बल्कि भक्ति और नैतिकता का मार्ग भी दिखाया।
तुलसीदास का अंत और स्मृति
तुलसीदास का देहांत 30 जुलाई 1623 को हुआ। उनका जीवन भक्ति, ज्ञान और सेवा का प्रतीक रहा। आज भी उनके अनुयायी उनके काव्य और रामभक्ति के मार्ग पर चलते हैं। वाराणसी का तुलसी घाट, संकट मोचन हनुमान मंदिर, और रामलीला उनके स्मरण को जीवित रखते हैं।
भारत सरकार और विभिन्न संस्थाओं ने उनके 500वें जन्मोत्सव का आयोजन किया, जो यह दर्शाता है कि उनकी छवि और कृतियाँ आज भी लोगों के हृदय में उतनी ही जीवंत हैं जितनी सैकड़ों साल पहले थीं।
गोस्वामी तुलसीदास का जीवन और काव्य भक्ति, ज्ञान और नैतिकता का प्रतीक है। उन्होंने रामचरितमानस, हनुमान चालीसा और अन्य ग्रंथों के माध्यम से समाज में धर्म और भक्ति को लोकप्रिय बनाया। उनकी रचनाएँ आज भी साहित्य, लोक संस्कृति और भक्ति मार्गदर्शन में अमूल्य योगदान देती हैं। तुलसीदास की विरासत उनके अनुयायियों द्वारा जीवित रखी जाती है, और उनका संदेश सदैव प्रेरणा का स्रोत रहेगा।