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कोकिला व्रत 2025: कोयल की पूजा से खुलते हैं सौभाग्य के द्वार, जानें व्रत की परंपरा

कोकिला व्रत 2025: कोयल की पूजा से खुलते हैं सौभाग्य के द्वार, जानें व्रत की परंपरा

हर साल आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि पर महिलाओं द्वारा एक विशेष व्रत रखा जाता है, जिसे कोकिला व्रत के नाम से जाना जाता है। इस व्रत का नाम भले ही कोयल पक्षी पर आधारित हो, लेकिन इसका धार्मिक महत्व गहराई से देवी सती और भगवान शिव से जुड़ा है। सुहागिनों के बीच यह पर्व विशेष स्थान रखता है।

इस बार कोकिला व्रत 10 जुलाई 2025 को रखा जाएगा और इसे लेकर श्रद्धालुओं में काफी उत्साह देखा जा रहा है।

कब रखा जाएगा कोकिला व्रत

कोकिला व्रत 2025 में 10 जुलाई को आषाढ़ पूर्णिमा के दिन रखा जाएगा। इस दिन महिलाएं पूरे विधि-विधान से देवी सती और भगवान शिव की पूजा करती हैं।

  • पूर्णिमा तिथि आरंभ: 10 जुलाई को प्रात: 1 बजकर 26 मिनट
  • पूर्णिमा तिथि समाप्त: 11 जुलाई को प्रात: 2 बजकर 06 मिनट
  • प्रदोष पूजा मुहूर्त: रात 7 बजकर 22 मिनट से 9 बजकर 24 मिनट तक

इस व्रत का पालन करने वाली महिलाएं दिन भर उपवास रखती हैं और रात को पूजा संपन्न कर व्रत को पूरा करती हैं।

व्रत का धार्मिक आधार

कोकिला व्रत का उल्लेख भविष्योत्तर पुराण में मिलता है। इसके अनुसार देवी सती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी और इस दौरान कोयल का रूप धारण कर उन्होंने यह विशेष व्रत किया था।

यही कारण है कि इस व्रत में कोयल को देवी सती का प्रतीक माना गया और उसकी पूजा की जाती है। यह व्रत मुख्य रूप से पति की लंबी उम्र, वैवाहिक सुख, संतान सुख और अखंड सौभाग्य के लिए किया जाता है।

कहां विशेष रूप से मनाया जाता है यह पर्व

उत्तर भारत के कई राज्यों में इस व्रत की परंपरा गहराई से जुड़ी हुई है। विशेषकर उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में इसे बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।

यहां की महिलाएं पूरे नियमों के साथ इस व्रत को करती हैं और मान्यता है कि यह व्रत वैधव्य के दुःख से बचाता है।

कोकिला व्रत की पूजा विधि क्या है

कोकिला व्रत में पूजा करने की प्रक्रिया बेहद अनूठी होती है। इसमें पारंपरिक चीजों के साथ कोयल की मिट्टी की मूर्ति बनाकर उसकी पूजा की जाती है।

  • महिलाएं जड़ी-बूटियों से स्नान करती हैं और व्रत के दिन सिर्फ फलाहार करती हैं।
  • घर में मिट्टी की कोयल बनाई जाती है और उसे फूलों, चूड़ी, सिंदूर और लाल वस्त्रों से सजाया जाता है।
  • भगवान शिव को बेलपत्र, धतूरा, आक, नीले फूल, दूध, दही, शहद और तीर्थ जल अर्पित किया जाता है।
  • पूजा के बाद उस कोयल की मूर्ति को किसी ब्राह्मण या सास-ससुर को दान कर दिया जाता है।

इस पूरे व्रत में स्त्रियों का मनोयोग और संयम महत्वपूर्ण होता है। वे पूरे दिन भक्ति में लीन रहती हैं।

व्रत से जुड़ी मान्यता

कोकिला व्रत को लेकर एक प्रचलित मान्यता है कि यह व्रत करने वाली स्त्री को जीवनभर सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इसके अलावा माना जाता है कि इस दिन कोयल का स्वर सुनना और उसका दर्शन करना आत्मिक शुद्धि और शुभ संकेत होता है।

कई महिलाएं इस व्रत को पूरे महीने तक विशेष नियमों के साथ करती हैं। पूरे महीने वे सात्विक जीवन शैली अपनाती हैं और संयमित आहार का पालन करती हैं।

हरियाली तीज से क्या है संबंध

कोकिला व्रत श्रावण महीने की शुरुआत से पहले आता है और हरियाली तीज से कुछ दिन पहले होता है। हरियाली तीज जहां सावन का मुख्य पर्व माना जाता है, वहीं कोकिला व्रत को उसका आध्यात्मिक प्रारंभ माना जाता है।

यह व्रत न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण से भी स्त्रियों के बीच आपसी जुड़ाव और परंपरा को जीवित रखने का जरिया बनता है।

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