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कोयला मंत्रालय की नई गैसीकरण पॉलिसी में छिपे हैं कई कड़े नियम, जानें विस्तार से

कोयला मंत्रालय की नई गैसीकरण पॉलिसी में छिपे हैं कई कड़े नियम, जानें विस्तार से

कोयला मंत्रालय ने भूमिगत कोयला और लिग्नाइट गैसीकरण (UCG) के लिए मसौदा दिशानिर्देश जारी किए हैं। इसमें परियोजना की व्यवहार्यता, सुरक्षा, पर्यावरण प्रबंधन और खनन के बाद पुनर्वास की प्रक्रिया तय की गई है। मंत्रालय ने हितधारकों से 30 दिन के भीतर सुझाव मांगे हैं और खदान बंद करने के लिए एस्क्रो फंड अनिवार्य किया है।

Coal Gasification: कोयला मंत्रालय ने मंगलवार को भूमिगत कोयला और लिग्नाइट गैसीकरण (UCG) परियोजनाओं के लिए मसौदा दिशानिर्देश जारी किए, जिसमें संचालन और खदान बंद करने की प्रक्रिया का विस्तृत नियामक ढांचा शामिल है। दिशानिर्देश के तहत कंपनियों को पायलट व्यवहार्यता अध्ययन, रियल-टाइम भूजल निगरानी और वैज्ञानिक खदान बंद करने के लिए एस्क्रो खाते में ₹50,000 प्रति हेक्टेयर जमा करना होगा। मंत्रालय ने इस पर 30 दिनों के भीतर हितधारकों से प्रतिक्रिया मांगी है।

गैसीकरण परियोजनाओं के लिए नया ढांचा

मसौदे में यह स्पष्ट किया गया है कि कोयला और लिग्नाइट गैसीकरण परियोजनाओं को अब एक सुव्यवस्थित ढांचे के तहत संचालित किया जाएगा। इसका उद्देश्य ऊर्जा उत्पादन के वैकल्पिक तरीकों को बढ़ावा देना और कोयले के स्वच्छ उपयोग को सुनिश्चित करना है। मंत्रालय के अनुसार, यह पहल देश में स्वदेशी ऊर्जा स्रोतों के दोहन की दिशा में एक बड़ा कदम है।

इन दिशानिर्देशों में परियोजना की योजना, व्यवहार्यता, सुरक्षा और खनन के बाद पुनर्वास के सभी चरणों को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है। इसके तहत परियोजना शुरू करने से पहले कंपनियों को विस्तृत तकनीकी अध्ययन और पर्यावरणीय मूल्यांकन अनिवार्य रूप से करना होगा।

पायलट अध्ययन होगा जरूरी

दिशानिर्देशों के अनुसार, किसी भी यूसीजी परियोजना पर काम शुरू करने से पहले प्रस्तावकों को एक प्रतिष्ठित वैज्ञानिक या अनुसंधान संस्थान के माध्यम से पायलट व्यवहार्यता अध्ययन कराना होगा। इस अध्ययन का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि परियोजना तकनीकी रूप से संभव हो और पर्यावरणीय जोखिमों को कम किया जा सके।

खनन योजनाओं में 3डी हाइड्रोजियोलॉजिकल मॉडल तैयार करना अनिवार्य होगा, जिसमें एक वर्ष का बेसलाइन भूजल डेटा शामिल होना चाहिए। इसके अलावा, प्रदूषण या कंटामिनेंट मूवमेंट के दीर्घकालिक अनुकरण का अध्ययन भी किया जाएगा ताकि भविष्य में किसी प्रकार की पर्यावरणीय हानि से बचा जा सके।

भूजल निगरानी के लिए रियल टाइम सिस्टम

मंत्रालय ने मसौदे में स्पष्ट किया है कि यूसीजी परियोजनाओं में भूजल की निगरानी रियल टाइम तकनीक के जरिए की जाएगी। इसके लिए टेलीमेट्री सक्षम सिस्टम और ऑनलाइन सेंसर लगाए जाएंगे जो निरंतर डेटा रिकॉर्ड करेंगे। यह डेटा केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी), राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों और केंद्रीय भूजल प्राधिकरण को वास्तविक समय में उपलब्ध कराया जाएगा।

इस कदम का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि किसी भी परियोजना के दौरान भूजल प्रदूषण या स्तर में गिरावट का पता तुरंत लगाया जा सके और समय रहते सुधारात्मक कदम उठाए जा सकें।

सुरक्षा और आपातकालीन योजना अनिवार्य

दिशानिर्देशों में भूमिगत आग, जमीन धंसने और भूजल में विषाक्त मिश्रण जैसे जोखिमों की पहचान और रोकथाम के लिए विस्तृत अध्ययन अनिवार्य किया गया है। इसके तहत हर परियोजना में एक आपातकालीन प्रतिक्रिया योजना (इमरजेंसी रिस्पॉन्स प्लान) होना जरूरी होगा।

इस योजना में हाइड्रोलिक कंटेनमेंट की विफलता, अचानक जमीन खिसकने या आग लगने जैसी घटनाओं से निपटने के उपायों का पूरा विवरण शामिल किया जाएगा। परियोजनाओं को यह सुनिश्चित करना होगा कि ऐसी किसी भी अप्रत्याशित स्थिति में नुकसान को न्यूनतम किया जा सके।

खदान बंद करने की प्रक्रिया पर सख्त नियम

मसौदे में खदान बंद करने की प्रक्रिया को लेकर भी सख्त प्रावधान किए गए हैं। वैज्ञानिक और पर्यावरण के अनुकूल तरीके से खदान बंद करना कंपनियों के लिए अनिवार्य होगा। इसके लिए कंपनियों को कोयला नियंत्रक संगठन (सीसीओ) के साथ एक एस्क्रो खाता खोलना होगा।

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