महाराष्ट्र विधान परिषद में अंबादास दानवे की विदाई के दौरान एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे के बीच तीखी बहस हुई। दोनों नेताओं ने एक-दूसरे पर व्यंग्य और नैतिकता को लेकर टिप्पणियां कीं, जिससे सियासी तापमान बढ़ गया।
Maharashtra Politics: महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर हलचल मच गई जब विधान परिषद में अंबादास दानवे की विदाई के मौके पर एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे के बीच तीखी बहस देखने को मिली। इस बहस में जहां एक ओर व्यक्तिगत तंज कसे गए, वहीं दूसरी ओर राजनीतिक नैतिकता और पद की गरिमा पर भी सवाल उठे।
एकनाथ शिंदे ने साधा तंज
उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने शिवसेना यूबीटी के नेता अंबादास दानवे को संबोधित करते हुए कहा कि जब वे पहली बार विधान परिषद में चुनकर आए थे, तो उनके अभिनंदन प्रस्ताव को मैंने ही पेश किया था। शिंदे ने इस विदाई को पूर्णविराम न मानते हुए कहा कि यह केवल एक अल्पविराम हो और वे फिर से सदन में लौटें।
इसके बाद शिंदे ने अप्रत्यक्ष रूप से उद्धव ठाकरे पर तंज कसते हुए कहा कि अंबादास दानवे का जन्म सोने की चम्मच के साथ नहीं हुआ। वे एक बस चालक के बेटे हैं और लोकसभा में भी उन्हें उसी बस में बैठना चाहिए था। यह बयान स्पष्ट रूप से राजनीतिक और सामाजिक पृष्ठभूमि पर व्यंग्य था।
उद्धव ठाकरे का पलटवार, राजनीति की शुचिता पर जोर
एकनाथ शिंदे के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए शिवसेना यूबीटी प्रमुख उद्धव ठाकरे ने जवाबी हमला किया। उन्होंने कहा कि अंबादास दानवे अपनी पहली टर्म पूरी कर रहे हैं और वे सेवानिवृत्त नहीं हो रहे बल्कि फिर से लौटकर आएंगे। ठाकरे ने कहा कि मुख्यमंत्री को धन्यवाद कि उन्होंने हमें अंबादास जैसा कार्यकर्ता दिया, लेकिन क्या वे हमें धन्यवाद देंगे कि उन्होंने हमारे कार्यकर्ताओं को अपने साथ लिया।
उद्धव ठाकरे ने पद और छवि को लेकर भी बड़ा बयान दिया। उन्होंने कहा कि पद आते-जाते रहते हैं, लेकिन जनता के दिलों में जो छवि बनती है, वही सबसे अहम होती है। ठाकरे ने एकनाथ शिंदे पर कटाक्ष करते हुए कहा कि कोई कहता है कि वह सोने की चम्मच के साथ पैदा नहीं हुआ, लेकिन उसने उस थाली के साथ बेईमानी नहीं की। जो सामने की थाली में अच्छा दिखा, वहां छलांग नहीं लगाई।