फ्रांस के प्रधानमंत्री सेबेस्टियन लेकोर्नू ने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया है। राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने इसे मंजूरी दे दी, इसकी जानकारी फ्रांसीसी राष्ट्रपति कार्यालय ने दी।
French PM Resigns: फ्रांस की राजनीति में एक बार फिर बड़ी हलचल देखने को मिली है। प्रधानमंत्री सेबेस्टियन लेकोर्नू ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। फ्रांसीसी राष्ट्रपति कार्यालय की ओर से इस इस्तीफे की पुष्टि की गई है और बताया गया कि राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने इसे स्वीकार कर लिया है। यह इस्तीफा फ्रांस की राजनीतिक स्थिरता और आगामी नीतिगत फैसलों पर बड़ा असर डाल सकता है।
लेकोर्नू का कार्यकाल था संक्षिप्त
सेबेस्टियन लेकोर्नू ने अपने पद पर एक महीने से भी कम समय तक कार्य किया। उन्होंने हाल ही में अपने नए मंत्रिमंडल की घोषणा की थी, लेकिन राजनीतिक विवाद और आलोचनाओं के बीच उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। लेकोर्नू अपने पूर्ववर्ती फ्रांस्वा बायरू की जगह एक साल के भीतर फ्रांस के चौथे प्रधानमंत्री बने थे। उनकी अचानक विदाई ने राजनीतिक हलकों में चर्चा और अटकलें बढ़ा दी हैं।
मंत्रियों के चयन पर उठी आलोचना
लेकोर्नू द्वारा मंत्रियों के चयन को राजनीतिक विश्लेषकों और विपक्षी दलों ने आलोचनाओं के घेरे में रखा। विशेष रूप से पूर्व वित्त मंत्री ब्रूनो ले मायेर को रक्षा मंत्रालय में वापस लाने का निर्णय विवादास्पद रहा। अन्य महत्वपूर्ण पदों पर पिछले मंत्रिमंडल के कई सदस्य बने रहे।
रूढ़िवादी ब्रूनो रिताइलो आंतरिक मंत्री बने रहे और पुलिस तथा आंतरिक सुरक्षा के प्रभारी बने। विदेश मंत्रालय का कार्य जीन-नोएल बारोत को दिया गया, जबकि न्याय मंत्रालय का प्रभार गेराल्ड डर्मैनिन को सौंपा गया। लेकोर्नू के फैसलों पर राजनीतिक विश्लेषकों ने इसे स्थिरता और बदलाव के बीच संतुलन बनाने की कोशिश कहा, लेकिन आलोचकों का मानना था कि यह पर्याप्त नहीं था।
विपक्षियों ने मैक्रों को घेरा
लेकोर्नू के इस्तीफे के बाद राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के विरोधियों ने तुरंत इसका फायदा उठाने की कोशिश की। दक्षिणपंथी नेशनल रैली ने मैक्रों से या तो नए चुनाव कराने या स्वयं इस्तीफा देने का आह्वान किया। वहीं, वामपंथी दल फ्रांस अनबोड ने भी राष्ट्रपति मैक्रों के इस्तीफे की मांग की। विपक्ष का यह दबाव फ्रांस में राजनीतिक अस्थिरता और आगामी नीतिगत फैसलों पर प्रभाव डाल सकता है।
फ्रांस में बढ़ी राजनीतिक हलचल
फ्रांस की राजनीति पिछले कुछ समय से अस्थिर रही है। खासकर तब से जब राष्ट्रपति मैक्रों ने पिछले साल अचानक चुनाव का ऐलान किया था। इस अचानक फैसले ने फ्रांस की विधायिका में भारी विभाजन पैदा कर दिया। राष्ट्रीय सभा में दक्षिणपंथी और वामपंथी सांसदों के पास 320 से अधिक सीटें हैं, जबकि मध्यमार्गी और सहयोगी रूढ़िवादियों के पास 210 सीटें हैं।