श्रावण मास में पड़ने वाली शिवरात्रि का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। हर साल की तरह इस बार भी लाखों श्रद्धालु भगवान शिव की पूजा में लीन हैं। इस दिन शिवलिंग पर जलाभिषेक, बेलपत्र अर्पण और व्रत का विशेष महत्व होता है। खास बात यह है कि इस दिन की पूजा में व्रत कथा का पाठ भी बहुत जरूरी माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि सावन शिवरात्रि की कथा सुनने से जीवन के दुखों का नाश होता है और भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
व्रत कथा का संबंध एक शिकारी से
इस पावन कथा की शुरुआत होती है एक साधारण शिकारी से जिसका नाम था चित्रभानु। वह जंगल में शिकार कर अपने परिवार का पेट पालता था। एक दिन उसे एक साहूकार से उधार लिए गए पैसे नहीं चुका पाने पर बंदी बना लिया गया। संयोग से वही दिन महाशिवरात्रि का पर्व था। जब वह बंदीगृह में था, तब वहां उसे भगवान शिव की महिमा और व्रत के बारे में जानकारी मिली। वह सुनता गया और उसके मन में भगवान शिव के प्रति श्रद्धा जाग उठी।
संध्या होते ही मिला छुटकारा
शाम के समय साहूकार ने उससे दोबारा पैसे मांगे, तब चित्रभानु ने वचन दिया कि अगली सुबह वह सारा कर्ज चुका देगा। साहूकार ने उस पर भरोसा करते हुए उसे छोड़ दिया। चित्रभानु सीधे जंगल की ओर चल पड़ा ताकि कोई जानवर शिकार में मिल जाए और वह कर्ज चुका सके।
बेलवृक्ष पर चढ़कर बिताई रात
शिकारी शाम के समय एक जलाशय के पास पहुंचा और एक बेलवृक्ष पर चढ़ गया। उसे उम्मीद थी कि कोई जानवर रात में पानी पीने आएगा। उसी पेड़ के नीचे एक शिवलिंग स्थापित था, जिसके बारे में चित्रभानु को कोई जानकारी नहीं थी। शिकारी ने जब पेड़ की शाखाएं तोड़ीं, तो बेलपत्र और पानी की बूंदें शिवलिंग पर गिरने लगीं। इस तरह अनजाने में ही उसकी पहली प्रहर की पूजा पूर्ण हो गई।
पहले प्रहर में आई गर्भवती मृगी
रात के पहले पहर में एक गर्भवती मृगी जल पीने आई। शिकारी ने तीर चलाने की तैयारी की, लेकिन मृगी ने विनती की कि उसे अपने बच्चों को जन्म देने की अनुमति दी जाए। वह वचन देती है कि बाद में लौटकर आएगी। शिकारी का दिल पसीज गया और उसने उसे छोड़ दिया।
दूसरे और तीसरे प्रहर की करुणा
दूसरे प्रहर में एक और मृगी आई। वह अपने साथी को खोजते हुए आई थी। उसने भी लौट आने का वादा किया और शिकारी ने उसे भी जाने दिया। तीसरे प्रहर में एक मृगी अपने बच्चों के साथ पहुंची। शिकारी फिर तैयार हुआ, लेकिन मृगी ने बच्चों को सुरक्षित उनके पिता के पास छोड़ आने की बात कही। शिकारी ने तीसरी बार भी दया दिखाई। इन सभी घटनाओं के बीच, हर बार जब वह पेड़ से कुछ तोड़ता, तो बेलपत्र और पानी शिवलिंग पर गिरते रहते, जिससे उसकी पूजा चलती रही।
आखिरी प्रहर में आया मृग
रात के अंतिम प्रहर में एक मृग वहां आया। इस बार शिकारी ने सोच लिया कि अब वह किसी की बात नहीं मानेगा। लेकिन मृग ने कहा कि उसकी तीनों पत्नियों को शिकारी ने जीवनदान दिया है, तो उसे भी थोड़ी देर जीने दे ताकि वह सब एक साथ वापस लौट सकें। शिकारी ने आखिरी बार भी माफ कर दिया।
भगवान शिव हुए प्रसन्न
थोड़ी ही देर में वह मृग अपनी तीनों पत्नियों और बच्चों के साथ लौट आया। यह देखकर शिकारी की आंखें भर आईं। वह समझ गया कि दया और करुणा ही सच्चा धर्म है। उसी क्षण भगवान शिव प्रकट हुए और शिकारी की भक्ति व दया भाव से प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया। उन्होंने उसे नया नाम दिया 'गुह'।
बन गया भगवान श्रीराम का मित्र
भगवान शिव के आशीर्वाद के बाद गुह का जीवन पूरी तरह बदल गया। वह शिवभक्ति में लीन हो गया और आगे चलकर वह वही गुह बना, जो भगवान श्रीराम का घनिष्ठ मित्र बना। रामायण में गुह का जिक्र तब आता है जब श्रीराम, सीता और लक्ष्मण के साथ वनवास के दौरान उसके क्षेत्र में पहुंचते हैं। गुह पूरे आदर-सत्कार के साथ उनका स्वागत करता है।
आज भी होती है इस कथा की पूजा में महत्ता
सावन शिवरात्रि के दिन इस कथा को सुनना और उसका स्मरण करना बहुत शुभ माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस कथा के माध्यम से भक्तों को सच्चे मन, दया, करुणा और भक्ति की शक्ति का अनुभव होता है। इस कथा को सुनने वाले को शिव कृपा का विशेष आशीर्वाद मिलता है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।