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सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: किन्नरों को रोजगार और स्वास्थ्य सेवाओं में मिलेगा समान अधिकार

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: किन्नरों को रोजगार और स्वास्थ्य सेवाओं में मिलेगा समान अधिकार

सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़े फैसले में ट्रांसजेंडरों के समान अधिकार सुनिश्चित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया है। शुक्रवार को सर्वोच्च अदालत ने किन्नरों के लिए रोजगार में समान अवसर, इलाज में समान सुविधा और लैंगिक भेदभाव से बचाव सुनिश्चित करने हेतु विशेष समिति गठित की है।

नई दिल्ली: भारत के सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। अदालत ने कहा कि किन्नरों और थर्ड जेंडर के लोगों के साथ किसी भी प्रकार का लैंगिक भेदभाव स्वीकार्य नहीं होगा। इसके लिए अदालत ने विशेष समिति गठित की है, जो रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सेवाओं में उनके अधिकारों की निगरानी करेगी।

यह फैसला एक ऐसे मामले से जुड़ा है, जिसमें एक ट्रांसवुमन को टीचर के रूप में दो अलग-अलग राज्यों में नियुक्ति मिलने से रोका गया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका में उन्हें मुआवजा भी दिया और कहा कि भविष्य में ऐसे भेदभाव को रोकने के लिए ठोस कदम उठाए जाएं।

जॉब और स्वास्थ्य सेवाओं में समान अधिकार

सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसमें जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस केवी विश्वनाथन शामिल थे, ने अपने आदेश में कहा कि थर्ड जेंडर के लोगों के समान अवसर, सुरक्षा और समावेशी चिकित्सा सुविधा सुनिश्चित करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। अदालत ने निर्देश दिया कि कोई भी संस्था, चाहे वह सरकारी हो या निजी, किन्नरों के साथ भेदभाव नहीं करेगी।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, हमने याचिकाकर्ता को मुआवजा इसलिए दिया क्योंकि उसे नौकरी से हटा दिया गया। यह एक गंभीर समस्या है और हम चाहते हैं कि भविष्य में थर्ड जेंडर का भविष्य सुरक्षित रहे। हम गाइडलाइंस तैयार कर चुके हैं और सभी संस्थाओं को इनका पालन करना होगा। इस फैसले से अब रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य सार्वजनिक सेवाओं में किन्नरों के अधिकार सुरक्षित होंगे। अदालत ने कहा कि यह समिति सुनिश्चित करेगी कि कोई भी व्यक्ति लिंग के आधार पर भेदभाव का सामना न करे।

समिति में कौन-कौन शामिल

किन्नरों और थर्ड जेंडर के अधिकारों की निगरानी के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एक विशेष समिति गठित की है। इसके प्रमुख सदस्यों में शामिल हैं:

  • रिटायर्ड जस्टिस आशा मेनन – समिति की अध्यक्ष
  • ट्रांसजेंडर एक्टिविस्ट ग्रेस बानु
  • अकाई पद्माशाली
  • गौरव मंडल
  • मेंबर ऑफ CLPR, बेंगलुरु डॉ. संजय शर्मा
  • वरिष्ठ वकील जयना कोठारी (एमिकस क्यूरी)

समिति का कार्य होगा कि किन्नरों को रोजगार और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सेवाओं में समान अवसर मिले और उनके साथ किसी प्रकार का भेदभाव न हो। सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले के पीछे एक गंभीर मामला है। एक ट्रांसवुमन को टीचर के रूप में उत्तर प्रदेश और गुजरात की प्राइवेट स्कूलों में नियुक्त किया गया था। उत्तर प्रदेश में उन्हें केवल 6 दिन पढ़ाने दिया गया। 

गुजरात में तो ज्वाइनिंग भी नहीं होने दी गई। इस घटना ने दिखा दिया कि किन्नर होना रोजगार में बाधक बन सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने इसे गंभीरता से लिया और कहा कि यह समस्या केवल व्यक्तिगत स्तर की नहीं है, बल्कि सामाजिक और संस्थागत भेदभाव का संकेत है।

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