शुक्रवार को आयोजित हुई इस नीलामी में बैंकों ने 1.42 लाख करोड़ रुपये की मांग दर्शाई, जबकि रिजर्व बैंक ने सिर्फ 1.25 लाख करोड़ रुपये की अधिसूचित राशि रखी थी। यह अतिरिक्त बोली यह संकेत देती है कि बैंकों के पास नकदी की स्थिति अभी मजबूत है और वे इसे आरबीआई में सुरक्षित जमा करने को तैयार हैं।
नीलामी का कटऑफ रेट 5.49 प्रतिशत रहा, जो इस बात को दर्शाता है कि बैंकों को मिले ब्याज का स्तर नीतिगत दरों के आसपास बना हुआ है। एक सरकारी बैंक के वरिष्ठ डीलर ने बताया कि इस नीलामी में मांग का प्रमुख कारण पिछले सप्ताह RBI द्वारा वापस लिए गए 2 लाख करोड़ रुपये हैं।
पहले की वापसी से बढ़ी नकदी, नीलामी में दिखा असर
पिछले सप्ताह की 2 लाख करोड़ रुपये की वापसी ने इस सप्ताह नकदी को लेकर बैंकों के पास अधिशेष की स्थिति पैदा कर दी। रिजर्व बैंक ने यह राशि VRRR ऑपरेशन के तहत वापस ली थी। इस अधिशेष लिक्विडिटी को फिर से सही दिशा देने के लिए बैंकों ने इस नीलामी में बड़े पैमाने पर भागीदारी की।
बाजार जानकारों के मुताबिक, यह एक सामान्य प्रक्रिया है जिसमें बैंक अतिरिक्त लिक्विडिटी को ब्याज अर्जित करने के लिए आरबीआई के पास जमा करते हैं, ताकि बिना जोखिम के उन्हें एक निश्चित रिटर्न मिल सके।
मनी मार्केट रेट्स में दिखा नरमी का रुख
नीलामी के बाद मुद्रा बाजार यानी मनी मार्केट में ओवरनाइट कॉल मनी रेट घटकर 5.39 प्रतिशत पर आ गया, जबकि इससे पिछले कारोबारी दिन यह 5.54 प्रतिशत था। यह गिरावट इस बात का संकेत है कि सिस्टम में लिक्विडिटी अभी भी पर्याप्त मात्रा में बनी हुई है और शॉर्ट टर्म फंड की जरूरतों को लेकर कोई दबाव नहीं है।
यह भी देखा गया कि ओवरनाइट रेट कई मौकों पर नीतिगत रेपो रेट से ऊपर पहुंच गई थी, जिसकी वजह से आरबीआई ने सप्ताह के दौरान दो बार वैरिएबल रेट रेपो नीलामी भी करवाई।
वीआरआर नीलामी ने कसा सिस्टम को
बुधवार को दो दिन की VRR नीलामी के बाद ओवरनाइट मनी मार्केट में रेट्स में गिरावट दर्ज की गई। इससे पहले यह रेट 5.75 प्रतिशत तक पहुंच गया था, जो RBI के मार्जिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी (MSF) रेट के बराबर था। यह दर्शाता है कि बैंकों के बीच शॉर्ट टर्म फंड्स को लेकर प्रतिस्पर्धा तेज हो गई थी।
VRR नीलामी से रिजर्व बैंक ने तरलता के प्रवाह को नियंत्रित किया, जिससे बाजार में संतुलन बना। इसी तरह, शुक्रवार की VRRR नीलामी भी उसी नीति का हिस्सा थी, जिसमें केंद्रीय बैंक बैंकों से उनकी अतिरिक्त नकदी कुछ निश्चित समय के लिए जमा करवाकर प्रणाली में संतुलन लाने की कोशिश करता है।
एलएएफ कॉरिडोर में मौजूदा स्थिति
रिजर्व बैंक की लिक्विडिटी एडजस्टमेंट फैसिलिटी यानी एलएएफ व्यवस्था में तीन प्रमुख दरें होती हैं - रीपो रेट, स्टैंडिंग डिपॉजिट फैसिलिटी (SDF) और मार्जिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी (MSF)। वर्तमान में पॉलिसी रीपो रेट 5.5 प्रतिशत है। इससे 25 आधार अंक नीचे SDF रेट 5.25 प्रतिशत है, जबकि MSF रेट 5.75 प्रतिशत है।
MSF रेट को एलएएफ कॉरिडोर की सीलिंग माना जाता है, जहां बैंक अंतिम विकल्प के रूप में आरबीआई से उधारी लेते हैं। इस हफ्ते जब मनी मार्केट रेट्स MSF रेट तक पहुंच गए, तब RBI को VRRR और VRR दोनों तरह की नीलामियों का सहारा लेना पड़ा।
बैंकों की रणनीति में बदलाव
इस बार बैंकों की ओर से अधिक बोली लगाने के पीछे एक और वजह यह भी मानी जा रही है कि उन्हें अपने फंड को शॉर्ट टर्म में सुरक्षित रखना है। लंबी अवधि के निवेश की तुलना में बैंकों को VRRR जैसे ऑपरेशनों में अधिक भरोसा रहता है क्योंकि इसमें आरबीआई से सीधे लेन-देन होता है और जोखिम न के बराबर होता है।
इससे साफ होता है कि बैंक फिलहाल सतर्क रुख अपना रहे हैं और अपने फंड का सुरक्षित इस्तेमाल कर रहे हैं। इससे यह भी झलकता है कि उन्हें लंबी अवधि में ब्याज दरों को लेकर थोड़ी अनिश्चितता महसूस हो रही है।
बाजार की नजर अब आगे की नीतियों पर
हाल के VRRR और VRR ऑपरेशनों के जरिए जो संकेत मिले हैं, उनसे यह समझा जा सकता है कि रिजर्व बैंक फिलहाल सिस्टम में अतिरिक्त लिक्विडिटी को नियंत्रित करने की कोशिश में लगा है। हालांकि पॉलिसी रेट्स में कोई बड़ा बदलाव नहीं किया गया है, लेकिन इन शॉर्ट टर्म टूल्स के जरिए केंद्रीय बैंक अपनी सतर्क निगरानी बनाए हुए है।
अब बाजार की नजर अगले महीने आने वाली मॉनिटरी पॉलिसी रिव्यू पर होगी, जहां आगे की दिशा को लेकर ज्यादा स्पष्टता मिल सकती है।