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सुप्रीम कोर्ट का केंद्र को निर्देश, निर्विरोध चुने जाने वाले उम्मीदवारों के लिए जरूरी होंगे मिनिमम वोट?

सुप्रीम कोर्ट का केंद्र को निर्देश, निर्विरोध चुने जाने वाले उम्मीदवारों के लिए जरूरी होंगे मिनिमम वोट?
अंतिम अपडेट: 7 घंटा पहले

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा है कि वह ऐसे नियम बनाए जिससे निर्विरोध चुने जाने वाले उम्मीदवारों को कम से कम कुछ वोट प्राप्त करना अनिवार्य हो। यह टिप्पणी सर्वोच्च अदालत ने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 53(2) की वैधता पर सुनवाई करते हुए की।

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को एक महत्वपूर्ण निर्देश देते हुए कहा है कि वह चुनावों में निर्विरोध चुने जाने वाले उम्मीदवारों के लिए ऐसे नियम बनाए, जिसके तहत इन उम्मीदवारों को कम से कम कुछ वोट प्राप्त करने की आवश्यकता हो। यह निर्णय जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 53(2) की वैधता पर हुई सुनवाई के दौरान आया। 

अदालत ने यह भी कहा कि निर्विरोध चुने जाने वाले उम्मीदवारों को केवल सीट पर जीतने के बजाय, उन्हें कुछ प्रतिशत वोट भी प्राप्त करने चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनका चुनाव वास्तविक जनसमर्थन पर आधारित हो।

क्या है जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 53(2)?

जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 53(2) चुनावी प्रक्रिया से जुड़ी एक विशेष धारा है, जो निर्विरोध चुनाव से संबंधित है। यह धारा कहती है कि अगर किसी सीट पर चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों की संख्या उसी सीटों की संख्या के बराबर हो, तो निर्वाचन अधिकारी उन सभी उम्मीदवारों को विजेता घोषित कर देता है। इसका मतलब यह हुआ कि यदि किसी क्षेत्र में एक ही उम्मीदवार है, तो उसे बिना किसी वोटिंग के विजेता घोषित किया जाता है।

यह प्रावधान बहुत से मामलों में सवाल उठाता है, खासकर तब जब कोई उम्मीदवार बिना किसी विपक्ष के निर्विरोध जीत जाता है। ऐसे मामलों में यह नहीं पता चलता कि उम्मीदवार को जनता का वास्तविक समर्थन कितने प्रतिशत प्राप्त है, जिससे चुनावी प्रक्रिया पर सवाल खड़े होते हैं। यही कारण है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस पर विचार करने के लिए केंद्र सरकार को निर्देश दिए हैं।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर विचार करते हुए केंद्र सरकार से कहा है कि वह चुनाव प्रक्रिया में सुधार के लिए नियम बनाए, जिसके तहत निर्विरोध चुनाव में भी उम्मीदवारों को कुछ वोट प्राप्त करने की आवश्यकता हो। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने यह बात जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 53(2) पर सुनवाई करते हुए कही। 

अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि निर्विरोध चुनाव में उम्मीदवारों को एक न्यूनतम प्रतिशत वोट प्राप्त करने की आवश्यकता होनी चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनकी जीत वास्तविक जनसमर्थन पर आधारित हो। पीठ ने यह भी कहा कि चुनावी प्रक्रिया में यह एक जरूरी सुधार हो सकता है, जिससे निर्विरोध चुनाव के मामलों में पारदर्शिता और सार्वजनिक विश्वास बढ़ सके। 

इसके साथ ही, अदालत ने निर्वाचन आयोग के जवाब पर भी विचार किया, जिसमें आयोग ने बताया कि संसदीय चुनावों में केवल नौ बार ही निर्विरोध उम्मीदवार जीते हैं। हालांकि, याचिकाकर्ता 'विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी' के वकील अरविंद दातार ने कहा कि विधानसभा चुनावों में ऐसे मामलों की संख्या अधिक होती है।

क्यों जरूरी है यह बदलाव?

निर्विरोध चुने जाने वाले उम्मीदवारों को जनसमर्थन के बिना जीतने की संभावना को लेकर हमेशा सवाल उठते रहे हैं। जब कोई उम्मीदवार बिना किसी प्रतिस्पर्धा के निर्विरोध जीतता है, तो यह निर्वाचित प्रतिनिधि के लिए जनसमर्थन और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भागीदारी की कमी को दर्शाता है। ऐसे मामलों में यह स्पष्ट नहीं हो पाता कि वह उम्मीदवार वास्तव में जनता का पसंदीदा है या नहीं।

यहां तक कि कई बार स्थानीय चुनावों में, जहां विपक्ष कमजोर होता है या उम्मीदवारों की संख्या सीमित होती है, ऐसे में उम्मीदवार निर्विरोध जीत जाते हैं। यह स्थिति लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के खिलाफ जा सकती है, क्योंकि वास्तविक चुनावी प्रक्रिया में जनता का मत जरूरी है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट का यह निर्देश काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता आएगी और यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि कोई भी उम्मीदवार केवल सीट की संख्या के आधार पर नहीं, बल्कि जनमत के आधार पर विजेता घोषित हो।

क्या प्रभाव पड़ेगा?

यदि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार केंद्र सरकार नए नियम बनाती है, तो यह चुनाव प्रक्रिया में एक बड़े बदलाव की ओर इशारा करता है। इससे चुनावों में निष्पक्षता और पारदर्शिता बढ़ेगी, और जनता का विश्वास चुनावी प्रणाली में मजबूत होगा। इसके अलावा, इससे निर्विरोध चुने जाने वाले उम्मीदवारों को यह सुनिश्चित करने का अवसर मिलेगा कि उनका समर्थन वास्तविक है और जनता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा उनका समर्थन करता है।

इसके अलावा, यह उन उम्मीदवारों के लिए भी एक चुनौती होगी, जो चुनावी प्रक्रिया में अपने पक्ष में विपक्ष को खड़ा नहीं कर पाते हैं। इससे यह संदेश जाएगा कि राजनीति में वास्तविक संघर्ष और प्रतिस्पर्धा की आवश्यकता है, और निर्विरोध जीतने के लिए भी जनसमर्थन आवश्यक होगा।

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