छत्तीसगढ़ के धमतरी में शुक्रवार को मड़ई मेला आयोजित किया गया, जिसमें 52 गांवों के देव विग्रह शामिल हुए और 1000 से अधिक महिलाओं ने संतान सुख की कामना के लिए परण किया। इस अनोखी आदिवासी परंपरा में महिलाएं पेट के बल लेटीं और बैगा जनजाति के लोग उनके ऊपर से होकर गुजरे। माता अंगारमोती के आशीर्वाद की यह परंपरा सदियों से चली आ रही है।
Tulsi Vivah Mela: छत्तीसगढ़ के धमतरी में शुक्रवार को मड़ई मेला आयोजित किया गया, जिसमें 52 गांवों के देव विग्रह और 1000 से अधिक महिलाओं ने भाग लिया। महिलाओं ने संतान सुख की कामना करते हुए परण किया, जिसमें वे हाथ में पूजा सामग्री लेकर पेट के बल लेटीं और बैगा जनजाति के लोग उनके ऊपर से होकर गुजरे। यह परंपरा मां अंगारमोती के आशीर्वाद के लिए निभाई जाती है। मेला दिवाली के बाद प्रथम शुक्रवार को आयोजित होता है और आदिवासी संस्कृति और धार्मिक विश्वास का अद्भुत संगम प्रस्तुत करता है।
हजारों महिलाएं पहुंचीं माता अंगारमोती के दरबार
मड़ई मेला दिवाली के बाद प्रथम शुक्रवार को आयोजित किया गया। आदिवासी परंपरा के अनुसार, इस दिन निसंतान महिलाएं माता अंगारमोती के मंदिर में संतान सुख की कामना के साथ परण करती हैं। महिलाओं के हाथ में नारियल, नींबू और अन्य पूजा सामग्री होती है और वे मंदिर के सामने कतार में खड़ी होकर पेट के बल लेट जाती हैं। बैगा जनजाति के लोग उनके ऊपर से गुजरते हैं, जिन्हें मान्यता है कि माता सवार होकर आशीर्वाद प्रदान करती हैं।
इस साल मेला में भाग लेने वाली महिलाओं की संख्या पिछले वर्षों के मुकाबले काफी बढ़ गई है। पिछले साल लगभग 300 महिलाएं परण करने पहुंची थीं, जबकि इस बार 1000 से अधिक श्रद्धालु छत्तीसगढ़ और अन्य राज्यों से मेला देखने और परण करने आई थीं।
52 गांवों की देवी अंगारमोती
मां अंगारमोती को 52 गांवों की देवी माना जाता है। प्राचीन कथाओं के अनुसार, इन गांवों के लोग किसी भी समस्या या संकट के समय माता के पास मन्नत मांगते हैं। सन् 1965 में गंगरेल बांध निर्माण के दौरान गांवों को विस्थापित किया गया और 1974-75 में माता अंगारमोती को पुजारियों एवं श्रद्धालुओं की मदद से नए स्थान पर पुनः स्थापित किया गया। इस पुनर्स्थापना के बाद से परंपरा निभाई जा रही है और मेला का आयोजन आज भी उसी विधि-विधान से होता है।

परंपरा और आस्था का अनोखा संगम
मड़ई मेला आधुनिक तकनीक और धार्मिक विश्वास का अद्भुत मिश्रण प्रस्तुत करता है। जहां कुछ लोग संतान प्राप्ति के लिए IVF और अन्य आधुनिक तरीकों का सहारा लेते हैं, वहीं यहां हजारों महिलाएं धार्मिक परंपरा के अनुसार माता के आशीर्वाद की कामना करती हैं। परण की इस अनोखी रीति में आस्था और विश्वास की गहरी झलक देखने को मिलती है।
मेला का माहौल भक्तिमय होता है। ढोल-नगाड़ों की ध्वनि के बीच महिलाएं बाल खोलकर और हाथ जोड़कर पेट के बल लेटी रहती हैं। बैगा जनजाति के लोग उनके ऊपर से गुजरते हैं और श्रद्धालु इस पूरी प्रक्रिया को भगवान की कृपा और संतान सुख की प्राप्ति का प्रतीक मानते हैं।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
मां अंगारमोती वनदेवी और गोंड़ समाज की कुलदेवी मानी जाती हैं। उनके दरबार में संतान सुख के लिए परण करने से श्रद्धालुओं की मान्यता है कि माता आशीर्वाद देती हैं और उनकी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। यह मेला आदिवासी संस्कृति और धार्मिक परंपराओं को संरक्षित रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
धमतरी का मड़ई मेला संतान सुख की प्राचीन परंपरा और आस्था का अद्भुत उदाहरण है। हजारों महिलाओं की भागीदारी इस बात को दर्शाती है कि धार्मिक विश्वास और परंपराएं आज भी लोगों के जीवन में गहरे पैठी हैं। इस अनोखी रीति ने केवल धार्मिक महत्व ही नहीं रखा, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान को भी मजबूत किया है।













